टैरिफ को लेकर डोनाल्ड ट्रंप की जिद ने भारत और अमेरिका के रिश्तों को खराब कर दिया है। बड़बोले ट्रंप टैरिफ पर भारत को धमकियां दे रहे हैं। वह हिंदुस्तान पर 50 प्रतिशत शुल्क लगाने की बात कर रहे हैं। टैरिफ के अलावा, अमेरिकी राष्ट्रपति भारत-पाकिस्तान के बीच सीजफायर कराने का श्रेय भी ले चुके हैं। ट्रंप चाहते हैं कि टैरिफ पर भारत उनके सामने झुके और सीजफायर पर वही बोले जो वो बोल रहे हैं। लेकिन भारत भी कम नहीं है, वह अमेरिका के सामने डटकर खड़ा है। भारत ट्रंप की दोनों बात नहीं मान रहा है और यही वजह है कि अमेरिकी राष्ट्रपति उखड़े हुए हैं। इस पूरे घटनाक्रम में दुनिया ने देख लिया कि ट्रंप कितने बड़बोले हैं और प्रधानमंत्री मोदी कितने मैच्योर हैं।
डोनाल्ड ट्रंप अपने दूसरे कार्यकाल में भारत को लेकर अलग रुख अपनाए हुए हैं। फरवरी तक वह ठीक थे। जब पीएम मोदी से उनकी मुलाकात हुई थी, तब बड़ी-बड़ी बातें बोली गई थीं। बांग्लादेश का भविष्य उन्होंने पीएम मोदी के हाथों सौंपा था। फिर इसके बाद जैसे-जैसे महीना बीतता गया वैसे-वैसे दोनों देशों के रिश्ते बिगड़ते गए और इसके लिए पूरी तरह से ट्रंप जिम्मेदार हैं।
अमेरिकी राष्ट्रपति लगातार बयानबाजी कर रहे हैं। रूस से तेल खरीदने की वजह से उन्होंने भारत पर टैरिफ का लिमिट 50 प्रतिशत पहुंचा दिया है। वह अपनी पीठ खुद थपथपाते हैं। नोबेल पाने के लिए बार-बार जंग रुकवाने का दावा कर रहे हैं। पाकिस्तान तो उनको श्रेय दे दिया, लेकिन भारत उनकी बात मानने को राजी नहीं है।
ये सब करके ट्रंप ने भारत-अमेरिका के संबंधों को डैमेज पहुंचाया है। वहीं उनके ही देश के कई ऐसे नेता हैं जो डैमेज कंट्रोल की कोशिश में लगे हैं। बीते दिनों जब ट्रंप ने सर्जियो गोर को भारत में अमेरिका का राजदूत नियुक्त किया तो उनके मंत्री मार्क रुबियो ने एक्स पर एक पोस्ट किया। उन्होंने अपनी पोस्ट में बताया कि भारत अमेरिका के लिए क्या मायने रखता है।
रुबियो ने कहा कि, ‘मैं राष्ट्रपति द्वारा सर्जियो गोर को भारत में हमारे अगले राजदूत के रूप में नामित करने के निर्णय से उत्साहित हूं। वह दुनिया में हमारे राष्ट्र के सबसे महत्वपूर्ण संबंधों में से एक (भारत) में अमेरिका के एक उत्कृष्ट प्रतिनिधि होंगे।’ इससे पहले UN में अमेरिका की राजदूत रहीं निक्की हेली ने ट्रंप को चेतावनी दी थी। उन्होंने दावा किया था कि भारत और अमेरिका के संबंध एक नाजुक मोड़ पर खड़े हैं। उन्होंने कहा था कि रूस से तेल खरीदने और टैरिफ विवाद को दोनों देशों के रिश्तों में स्थायी दरार का कारण नहीं बनने देना चाहिए। उन्होंने दावा किया था कि राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच सीधी बातचीत होनी चाहिए। अगर समय रहते कदम नहीं उठाए गए तो चीन इस मौके का फायदा उठा सकता है।
ट्रंप जहां बड़बोले हैं तो वहीं मोदी संयमित तरीके से पूरे हालात को संभाले हैं। उन्होंने टैरिफ पर अमेरिका को कई बार जवाब दिया है, लेकिन हमेशा राष्ट्रहित की बात की। पीएम मोदी ने संयमित भाषा का इस्तेमाल किया। उन्होंने अमेरिका और ट्रंप को ये बताया कि वो जो भी फैसला लेंगे राष्ट्रहित में लेंगे। हाल में उन्होंने किसानों से कहा था कि मोदी आपके हित के लिए सीना तानकर खड़ा है।
पीएम जहां अपने देश के लोगों को मैसेज दे रहे हैं और बता रहे हैं कि कैसे उनकी सरकार अमेरिका के सामने नहीं झुक रही है तो वहीं उनकी शक्तियां अमेरिका को सीधा जवाब देने में जुटी हैं। पीयूष गोयल से विदेश मंत्री एस जयशंकर तक समय-समय पर ट्रंप को दो टूक जवाब दे रहे हैं। पीयूष गोयल कह चुके हैं भारत किसी के सामने नहीं झुकेगा तो वहीं जयशंकर ने ट्रेड पर सीधा मैसेज देते हुए कहा कि अगर अमेरिका को नहीं पसंद है तो न खरीदे।
भारत ने अमेरिका को बता दिया कि उसकी विदेश नीति वो नहीं तय करेगा। रूस और चीन से संबंध कैसे रखना है, ये ट्रंप के हाथ में नहीं है। जब से अमेरिका से संबंधों में खटास आई है तब से भारत की चीन से दोस्ती बढ़ी है और रूस से मित्रता और मजबूत हुई है। सरकार के मंत्री चीन-रूस की यात्रा तो कर रहे हैं, लेकिन अमेरिका की तरफ देख तक नहीं रहे हैं। खुद पीएम मोदी चीन के दौरे पर जाने वाले हैं तो पुतिन भारत आने वाले हैं। ये सारे वो कार्य हैं जिससे अमेरिका को मैसेज जा रहा है। ये संदेश है दोस्ती के विकल्प का। ये अमेरिका को बताया है कि भारत उसपर निर्भर नहीं रहने वाला।