राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के प्रमुख मोहन भागवत ने युवाओं से आग्रह किया है कि वे संघ को किसी भी तरह के पूर्वाग्रह या प्रायोजित विमर्शों के प्रभाव से दूर रहकर देखें। गुवाहाटी में आयोजित एक युवा नेतृत्व सम्मेलन को संबोधित करते हुए, भागवत ने कहा कि भारत की परंपरा सिखाती है कि भले ही आपका रास्ता सही हो, लेकिन दूसरों के हालात के अनुसार उनके रास्ते भी सही हो सकते हैं।

भागवत ने कहा कि भारत का समाज विविधता का सम्मान करता है, और इसी तरह का समाज बनाना RSS का एक प्रमुख उद्देश्य है। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि जो देश भारत से अलग हुए, उन्होंने धीरे-धीरे अपनी विविधता खो दी, जैसे पाकिस्तान में पंजाबी और सिंधी समुदायों को अब उर्दू बोलने के लिए मजबूर होना पड़ता है। उन्होंने जोर देकर कहा कि ‘भारतीय समाज’ के एकजुट और योग्य होने पर ही भारत की दिशा बदलेगी।
चरित्र निर्माण पर बल देते हुए, भागवत ने कहा कि भ्रष्टाचार को केवल कानूनों से नहीं, बल्कि मजबूत चरित्र निर्माण से ही खत्म किया जा सकता है। इसी प्रकार, गौ रक्षा के लिए भी केवल कानूनी उपाय पर्याप्त नहीं हैं, बल्कि समाज में जागरूकता सबसे महत्वपूर्ण है।
‘भारत प्रथम’ के सिद्धांत का पालन करने का आह्वान करते हुए, भागवत ने कहा कि विदेश नीति पूरी तरह से राष्ट्रीय हितों पर आधारित होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि भारत को किसी भी देश के प्रति पक्षपाती या विरोधी नहीं होना चाहिए। अमेरिका और चीन जैसे देश अपने राष्ट्रीय हितों को सर्वोपरि रखते हैं, और उनके बीच प्रतिद्वंद्विता भी इसी का परिणाम है। हमारी विदेश नीति पूरी तरह से ‘प्रो-इंडिया’ होनी चाहिए, न कि अमेरिका या चीन के पक्ष में या विपक्ष में।
भागवत ने यह भी कहा कि जब भारत अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा करता है, तो स्वाभाविक रूप से वैश्विक कल्याण भी होता है। एक मजबूत और आत्मनिर्भर भारत किसी भी चुनौती का सामना करने और अंतर्राष्ट्रीय संघर्षों को हल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है, जिससे अधिक सामंजस्यपूर्ण वैश्विक व्यवस्था बनाने में मदद मिलेगी।






