मध्य प्रदेश में राजनीति और संस्कृति को लेकर एक बार फिर नई बहस छिड़ गई है। राज्य सरकार हिंदू धर्म की एक लोकप्रिय पौराणिक अवधारणा को प्रस्तुत करने के लिए एक विशेष अभियान शुरू करने जा रही है। इस बार विवाद भगवान कृष्ण की “माखनचोर” छवि को लेकर है, जिसे सरकार अब बदलना चाहती है। सरकार का मानना है कि भगवान कृष्ण की बाल लीलाएँ वास्तव में चोरी नहीं थीं, बल्कि अन्याय के खिलाफ विरोध दिखाने का एक तरीका था।
मुख्यमंत्री मोहन यादव ने इस अभियान को एक सांस्कृतिक सुधारात्मक कदम बताया है और कहा है कि वर्षों से श्रीकृष्ण की लीलाओं की गलत व्याख्या की गई है। वहीं, कांग्रेस ने इस पहल की कड़ी आलोचना की है और आरोप लगाया है कि सरकार राजनीतिक लाभ के लिए पौराणिक कथाओं की गलत व्याख्या कर रही है।
कांग्रेस नेता उमंग सिंघार ने सरकार पर राजनीतिक उद्देश्यों के लिए पौराणिक कथाओं को गलत तरीके से पेश करने का आरोप लगाते हुए कहा, “मुख्यमंत्री कृष्ण की लीला बदलना चाहते हैं। ऐसे अभियान केवल ध्यान भटकाने के लिए बनाए जाते हैं। हम भी मानते हैं कि कृष्ण ने मक्खन नहीं चुराया, लेकिन क्या मुख्यमंत्री बता सकते हैं कि उन्होंने सत्ता में आने के लिए जनता का जनादेश कैसे चुराया?”
मध्य प्रदेश सरकार भगवान कृष्ण को “माखनचोर” कहने से लोगों को रोकने के लिए एक अभियान की घोषणा करने वाली है। सरकार का मानना है कि उनकी बचपन की हरकतें चोरी नहीं थीं बल्कि अन्याय के खिलाफ विरोध था।
एनडीटीवी ने मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव के हवाले से कहा, “गोकुल में हजारों गायें थीं और वहां से मक्खन कंस के घर भेजा जाता था। श्रीकृष्ण ने अपने ग्वाल मित्र से कहा, अपना मक्खन खाओ, बर्तन तोड़ो, लेकिन मक्खन हमारे दुश्मन तक मत पहुंचने दो। यह विरोध का प्रतीक था, चोरी का नहीं।”
मुख्यमंत्री ने यह भी कहा कि भगवान कृष्ण ने एक धनी परिवार में अपना बचपन बिताया, और उन्हें कभी किसी चीज की कमी नहीं रही। उन्होंने हमेशा खुले में मक्खन खाया, यह सुनिश्चित करते हुए कि अन्य लोग इसे एक प्रतीकात्मक इशारा के रूप में देखें, न कि चोरी के रूप में।
यह अभियान राज्य के संस्कृति विभाग को सौंपा गया है। मुख्यमंत्री के सांस्कृतिक सलाहकार श्रीराम तिवारी ने कहा, “लोगों को समझाया जाएगा कि बर्तन तोड़ना कंस की नीतियों के खिलाफ कृष्ण का विरोध था। साधु-संत भी ‘माखनचोर’ शब्द छोड़ने पर सहमत हो गए हैं।”