राहुल गांधी जी, बिहार चुनाव के नतीजे कांग्रेस के लिए एक बड़ा झटका हैं। केवल 61 में से 6 सीटों पर जीत और 8.71% वोट शेयर, यह दर्शाता है कि पार्टी की स्थिति चिंताजनक है। क्या आपने कभी सोचा है कि आखिर क्यों आपकी पार्टी बार-बार हार का सामना कर रही है? आपके यात्राएं, चाहे वह मखाना की खेती सीखना हो, जलेबी बनाना हो, या कड़ाके की ठंड में टी-शर्ट पहनकर चलना हो, चुनावी नतीजों में तब्दील नहीं हो पाईं।

यह स्वीकार करना मुश्किल हो सकता है, लेकिन राजनीति में जाति एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। जब तक आप इस सच्चाई को स्वीकार नहीं करते, तब तक जीत मुश्किल है। बिहार चुनाव के नतीजों ने स्पष्ट कर दिया कि जनता का भरोसा किस ओर है। भाजपा की जीत या उसका मजबूत जनादेश सवालों के घेरे में नहीं है, बल्कि कांग्रेस की स्थिति चिंता का विषय है, जो देश की मुख्य विपक्षी पार्टी है। एक स्वस्थ लोकतंत्र के लिए यह अच्छी स्थिति नहीं है।
देश एक पार्टी और एक गठबंधन की ओर बढ़ता दिख रहा है, जो विपक्ष के लिए एक गंभीर चिंता का विषय है। कांग्रेस कार्यकर्ताओं को शायद उतना सदमा न लगे, जितना आप जैसे शुभचिंतकों को लगता है। देश के कई लोग, यहां तक कि भाजपा समर्थक भी, कांग्रेस की गिरती स्थिति देखकर दुखी होते हैं। सवाल यह है कि आखिर कांग्रेस का पारंपरिक वोट बैंक कहां चला गया? जो लोग कभी ‘कांग्रेस का टेंपो हाई’ के नारे लगाते थे, वे कमल की ओर क्यों मुड़ गए?
**आपका कैडर कहां है?**
आपने कई चुनाव जीते हैं, आप जानते हैं कि पार्टी कैडर के दम पर चलती है। लेकिन क्या आज भी आपके पास वह मजबूत जमीनी कार्यकर्ता हैं? उत्तर प्रदेश का उदाहरण लीजिए। एक समय था जब ब्राह्मण, मुस्लिम और आदिवासी आपके साथ खड़े थे। फिर सपा ने यादवों को और बाद में मुस्लिमों के बड़े हिस्से को अपनी ओर खींच लिया। बसपा ने अपना सामाजिक आधार बनाया। भाजपा ने सवर्णों को एकजुट किया और फिर आदिवासियों तक पहुंची। इस बदलते परिदृश्य में, आप किसके साथ खड़े हैं?
**गुटबाजी और जाति का जहर**
पार्टी में गुटबाजी बढ़ी और फैसलों में जाति का रंग दिखने लगा। भले ही लोग खुलकर न बोलें, लेकिन यह सब दिखाई देता है। आपके दादा-दादी के समय में लोग कांग्रेस के प्रति समर्पित थे क्योंकि पार्टी ने सबको साथ लिया था। अब वह समावेशी छवि भाजपा के पास चली गई है।
**भाजपा ने आपकी चालें चलीं**
भाजपा ने आपका ही तरीका अपनाया। ‘पन्ना प्रमुख’ का विचार कांग्रेस के पुराने संगठन से प्रेरित है। कांग्रेस का ब्लॉक और गांव स्तर पर मजबूत नेटवर्क था, जिसे उसने बिखरने दिया। नेतृत्व का संकट भी स्पष्ट है। पिछले 20 सालों में पार्टी कोई नई नेतृत्व पंक्ति नहीं बना पाई, जबकि भाजपा ने पहली, दूसरी और तीसरी पीढ़ी का नेतृत्व तैयार किया है।
**बिहार की कहानी**
बिहार में, ईबीसी, कुर्मी, कुशवाहा, ब्राह्मण, ठाकुर और भूमिहारों ने अलग-अलग दलों का समर्थन किया। भाजपा और जद (यू) ने कल्याणकारी योजनाओं और लक्षित प्रचार के माध्यम से महिलाओं और युवा मतदाताओं को आकर्षित किया। चिराग पासवान ने दलितों और महादलितों को एकजुट किया। एनडीए ने मतदाताओं को एक ‘संपूर्ण थाली’ (राजनीतिक विकल्पों का पूरा पैकेज) पेश किया और जीत हासिल की। इस सब के बीच आप कहां थे?
**वोट बैंक की चिंता**
आप ईवीएम और चुनाव अनियमितताओं की बात करते हैं, लेकिन अब समय आ गया है कि आप अपने वास्तविक वोट बैंक के बारे में सोचें। मुस्लिम मतदाता सपा और राजद की ओर चले गए। सवर्णों ने भी यही निष्कर्ष निकाला है कि वे एक ऐसी पार्टी पर वोट बर्बाद नहीं करना चाहते जो जीत न सके।
**भाजपा की राह अपनाएं**
भाजपा के तरीके को अपनाएं। वह एक ‘चुनाव मशीन’ है। नए लोगों को आगे लाएं। भाजपा से नेताओं को तोड़ें, उन्हें भूमिकाएं दें। तभी कुछ हरकत होगी। कांग्रेस में न तो कोई तालमेल है, न कोई तत्परता। आपकी आवाज हिंदी में धीमी और हिचकिचाती हुई लगती है।
**पुनर्निर्माण का समय**
आपको परिवारवाद पर पुनर्विचार करना होगा, अपना आधार फिर से बनाना होगा, सकारात्मक राजनीति पर ध्यान देना होगा, हिंदी को गंभीरता से लेना होगा और कुछ नया पेश करना होगा। आपका वोट बैंक ढह गया है। इस हकीकत को स्वीकारें। एक ईमानदार टीम की मदद से आप इसे फिर से बना सकते हैं। कैडर को मजबूत करें।






