भाजपा (BJP) के निलंबित नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री आर. के. सिंह ने पार्टी द्वारा ‘पार्टी विरोधी गतिविधियों’ के आरोपों पर तीखा पलटवार किया है। उन्होंने कहा कि वे पार्टी से इस्तीफा दे चुके हैं और अब पार्टी नेतृत्व को स्पष्ट करना चाहिए कि वे किन गतिविधियों को पार्टी विरोधी मानते हैं। बिहार भाजपा द्वारा 15 नवंबर को की गई इस कार्रवाई पर सिंह ने सवाल उठाते हुए कहा कि क्या आपराधिक पृष्ठभूमि या भ्रष्टाचार में लिप्त लोगों को टिकट न देने की बात कहना पार्टी के हित के विरुद्ध है?

सिंह ने मीडिया से बातचीत में कहा, “पार्टी ने मुझसे जवाब मांगा था, और मैंने राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी. नड्डा को अपना इस्तीफा भेज दिया है। मैंने पूछा है कि ये पार्टी विरोधी गतिविधियां क्या हैं?” उन्होंने जोर देकर कहा कि ऐसे बयान पार्टी की छवि और हितों को नुकसान नहीं पहुंचाते, बल्कि उन्हें बेहतर बनाते हैं।
**उम्मीदवारों के चयन पर तीखी आलोचना**
आर. के. सिंह की यह प्रतिक्रिया तब आई है जब उन्होंने बिहार विधानसभा चुनावों के दौरान भाजपा और उसके सहयोगी दलों द्वारा ‘आपराधिक या भ्रष्ट पृष्ठभूमि वाले’ उम्मीदवारों को टिकट देने की खुले तौर पर आलोचना की थी। उन्होंने उप मुख्यमंत्री सम्राट चौधरी और गैंगस्टर से नेता बने अनंत सिंह जैसे लोगों का नाम लिए बिना उन पर निशाना साधा था। सिंह ने कुछ पार्टी नेताओं पर चुनावी लाभ के लिए नैतिकता से समझौता करने का आरोप लगाया था और कहा था कि इस तरह की प्रथाएं पार्टी की विश्वसनीयता को कमजोर करती हैं।
“जहां ऐसे लोगों को टिकट दिया जाता है, अगर आप उन पर सवाल उठाते हैं तो वहां बने रहने का कोई मतलब नहीं है,” उन्होंने कहा। “मेरे बयान पार्टी के हित में थे, उसके खिलाफ नहीं। ऐसे लोगों को टिकट देना राष्ट्रीय हित और जनता की इच्छा के विरुद्ध है।”
**बिहार चुनावों के बाद मचे बवाल का असर**
आर. के. सिंह का निलंबन बिहार विधानसभा चुनावों के ठीक बाद हुआ है, जिसमें राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) सत्ता में आया है, लेकिन आंतरिक कलह की खबरें भी सामने आई थीं। सूत्रों के अनुसार, सिंह द्वारा पार्टी नेतृत्व और चुनाव आयोग के खिलाफ लगातार की गई सार्वजनिक टिप्पणियों ने उनके और बिहार इकाई के नेतृत्व के बीच तनाव को और बढ़ा दिया था।
अभियान के दौरान, उन्होंने कानून व्यवस्था बनाए रखने में चुनाव आयोग की विफलता की आलोचना की थी। उन्होंने मोकामा में जन सुराज समर्थक दुलारचंद यादव की हत्या सहित चुनाव संबंधी हिंसा की घटनाओं पर प्रकाश डाला था। सिंह ने इस हिंसा को ‘जंगल राज’ करार दिया और प्रशासन को ‘शासन के पतन’ के लिए जिम्मेदार ठहराया था। इस घटना के संबंध में बाद में दो पुलिस अधिकारियों को निलंबित भी किया गया था।
**पार्टी की असंतुष्टों पर कार्रवाई**
यह कार्रवाई बिहार भाजपा के भीतर असंतोष पर अंकुश लगाने के व्यापक प्रयास का हिस्सा प्रतीत होती है। पार्टी की राज्य इकाई ने ‘पार्टी विरोधी गतिविधियों’ के आरोप में एमएलसी अशोक कुमार अग्रवाल और उनकी पत्नी, कटिहार की मेयर उषा अग्रवाल को भी निलंबित कर दिया है। दंपति पर अपने बेटे सौरभ अग्रवाल का समर्थन करने का आरोप है, जिसने कटिहार से वीआईपी उम्मीदवार के रूप में पार्टी लाइन के विरुद्ध चुनाव लड़ा था। दोनों से एक सप्ताह के भीतर नोटिस का जवाब मांगा गया है।
पार्टी के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि नेतृत्व चुनावों के बाद कड़ा अनुशासन लागू करने के लिए दृढ़ है, जो कैबिनेट गठन और राज्य के राजनीतिक पुनर्गठन से पहले आंतरिक नियंत्रण को मजबूत करने का संकेत देता है।
**बिहार भाजपा में गहरी बेचैनी का प्रतिबिंब**
आर. के. सिंह का निलंबन और उनकी मुखर प्रतिक्रिया बिहार भाजपा इकाई के भीतर वैचारिक और नैतिक दरारों को उजागर करती है। जहां पार्टी अपने कदमों को एकता और अनुशासन की दिशा में उठाए गए कदम के रूप में प्रस्तुत कर रही है, वहीं सिंह की टिप्पणियां पार्टी के नैतिक आधार के कथित क्षरण से कुछ लंबे समय से सेवा कर रहे नेताओं की बेचैनी को रेखांकित करती हैं। आने वाले सप्ताहों में पता चलेगा कि क्या सिंह की अवज्ञा व्यापक असंतोष को जन्म देती है या असंतुष्ट अनुभवी नेता के विरोध का एक अलग कार्य बनी रहती है।






