लखनऊ में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के शताब्दी वर्ष के अवसर पर, ‘राष्ट्रधर्म’ पत्रिका द्वारा गोमती नगर स्थित भागीदारी भवन में एक विशेष कार्यक्रम आयोजित किया गया। इस कार्यक्रम में पत्रिका के विशेष अंक ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ: विचार यात्रा के 100 वर्ष’ का विमोचन हुआ।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि और संघ के सरकार्यवाह, श्री दत्तात्रेय होसबाले ने कहा कि राष्ट्रधर्म एक स्थायी धर्म है और भारत में जन्मे प्रत्येक व्यक्ति का कर्तव्य है कि वह राष्ट्र के लिए योगदान दे। उन्होंने जोर देकर कहा कि इस पत्रिका की शुरुआत 1948-49 के कठिन दौर में समाज में वैचारिक परिवर्तन लाने के लिए की गई थी, न कि आर्थिक लाभ के लिए।
होसबाले ने स्वयंसेवक के भाव पर जोर देते हुए कहा कि एक स्वयंसेवक स्वयं को समाज से अलग नहीं, बल्कि उसका अंग समझता है। उन्होंने संघ के 100 वर्षों के संघर्ष को याद करते हुए कहा कि कई कार्यकर्ताओं ने बलिदान दिया और कठिनाइयां झेलीं, लेकिन वे कभी भी अपने लक्ष्य से विचलित नहीं हुए। उन्होंने दीनदयाल उपाध्याय और अटल बिहारी वाजपेयी जैसे नेताओं के योगदान को भी याद किया।
सरकार्यवाह ने आगे कहा कि आज जब दुनिया भारत को विश्वगुरु के रूप में देख रही है, तो हमें अपनी आध्यात्मिकता, संस्कृति और मूल्यों के आधार पर दुनिया को सही दिशा दिखानी होगी। उन्होंने कहा कि संघ का उद्देश्य केवल संगठन बनाना नहीं है, बल्कि हर व्यक्ति को बेहतर बनाना है।
कार्यक्रम में राष्ट्रधर्म पत्रिका की ऐतिहासिक यात्रा पर भी प्रकाश डाला गया। बताया गया कि इसका पहला अंक 31 अगस्त, 1947 को प्रकाशित हुआ था, जिसमें दीनदयाल उपाध्याय का लेख ‘चिति’ और अटल बिहारी वाजपेयी की कविता ‘हिंदू तन मन’ प्रकाशित हुई थी। शुरुआती दिनों में, दीनदयाल जी स्वयं मशीन चलाते थे और अटल जी साइकिल से अंक वितरित करते थे।
इस अवसर पर कार्यक्रम की अध्यक्षता विनोद सोलंकी ने की। विशिष्ट अतिथि आरती राणा ने थारू जनजाति की महिलाओं के सशक्तिकरण पर अपने अनुभव साझा किए। कार्यक्रम में अखिल भारतीय प्रचारक प्रमुख स्वांतरंजन जी, कैबिनेट मंत्री असीम अरुण, महापौर सुषमा खर्कवाल सहित कई गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे। कार्यक्रम का समापन राष्ट्रगीत के साथ हुआ।