आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने बेंगलुरु में एक विशेष व्याख्यान श्रृंखला के दौरान एक महत्वपूर्ण बयान दिया है। उन्होंने कहा कि ‘हिंदू होने का मतलब भारत माता की संतान होना है, और हर हिंदू को यह अहसास होना चाहिए कि हिंदू पहचान के साथ देश के प्रति एक जिम्मेदारी जुड़ी होती है।’ भागवत ने जोर देकर कहा कि भारत एक हिंदू राष्ट्र है और यहाँ रहने वाले मुसलमान और ईसाई भी हिंदू पूर्वजों के ही वंशज हैं, इसलिए ‘कोई ‘अ-हिंदू’ नहीं है।’
उन्होंने यह भी बताया कि प्राचीन काल से ही यहाँ रहने वाले लोगों के लिए ‘हिंदू’ शब्द का प्रयोग किया जाता रहा है। भागवत ने हिंदू समाज को चार श्रेणियों में बांटा: पहले वे जो हिंदू होने पर गर्व करते हैं, दूसरे जो हिंदू तो हैं पर गर्व महसूस नहीं करते, तीसरे वे जो मन से हिंदू हैं पर खुले तौर पर पहचान नहीं बताते, और चौथे वे जो हिंदू होने की बात भूल गए हैं।
उन्होंने एक बार फिर दोहराया कि भारत एक हिंदू राष्ट्र है और सभी समुदायों के पूर्वज समान हैं। उन्होंने कहा कि एक मजबूत और आत्मविश्वासी हिंदू समाज को ‘वसुधैव कुटुंबकम’ (पूरी दुनिया एक परिवार है) के संदेश को दुनिया के साथ साझा करने का प्रयास करना चाहिए। उन्होंने नैतिकता और करुणा पर आधारित एक भारतीय जीवन शैली को अपनाने का आह्वान किया, जिससे दुनिया सीख सके।
यह कार्यक्रम आरएसएस की 100वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में आयोजित किया गया था, जिसमें दक्षिण भारत से लगभग 1200 गणमान्य व्यक्तियों ने भाग लिया। भागवत ने आरएसएस संस्थापक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार को भी याद किया और कहा कि संगठन स्वयंसेवकों के समर्पण और बलिदान से विकसित हुआ है, बिना किसी बाहरी समर्थन के।






