नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने आवारा कुत्तों से जुड़े एक अहम मामले में राज्यों के रवैये पर कड़ी नाराजगी जताई है। शीर्ष अदालत ने पश्चिम बंगाल, दिल्ली और तेलंगाना को छोड़कर बाकी सभी राज्यों के मुख्य सचिवों को तलब किया है। इन राज्यों ने आवारा कुत्तों के नियंत्रण और प्रबंधन को लेकर की गई कार्रवाई की रिपोर्ट (एक्शन-टेकन रिपोर्ट) जमा नहीं की है। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि अगर अगली सुनवाई, 3 नवंबर को संबंधित अधिकारी अदालत में हाजिर नहीं हुए तो उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी।
न्यायमूर्ति विक्रम नाथ, न्यायमूर्ति संदीप मेहता और न्यायमूर्ति एनवी अंजऱ्िया की पीठ ने इस बात पर गहरी चिंता व्यक्त की कि कई राज्यों ने पशु जन्म नियंत्रण नियम, 2023 के कार्यान्वयन पर अपने हलफनामे दायर नहीं किए हैं। केवल पश्चिम बंगाल, दिल्ली और तेलंगाना ने ही अब तक इस मामले में अनुपालन किया है। पीठ ने कहा कि इन अधिकारियों को मीडिया में लगातार आ रही खबरों से इस मामले की जानकारी होनी चाहिए थी।
‘देश की छवि खराब हो रही है’
अदालत ने कहा, “क्या अधिकारियों ने अखबार या सोशल मीडिया नहीं पढ़ा? भले ही उन्हें नोटिस तामील न हुआ हो, उन्हें यहाँ होना चाहिए था। सभी मुख्य सचिव 3 नवंबर को यहाँ उपस्थित हों। हम ऑडिटोरियम में अदालत लगाएंगे।” पीठ ने चेतावनी दी कि यदि मुख्य सचिव उपस्थित नहीं हुए तो अदालत जुर्माना लगा सकती है या जबरन कार्रवाई कर सकती है। न्यायमूर्ति विक्रम नाथ ने कहा, “लगातार ऐसी घटनाएं हो रही हैं और विदेशों की नजरों में हमारे देश की छवि खराब हो रही है। हम भी समाचार रिपोर्टें पढ़ रहे हैं।”
जब एक वकील ने कुत्तों के प्रति क्रूरता का उल्लेख किया, तो अदालत ने पलटवार करते हुए पूछा, “मनुष्यों के प्रति क्रूरता का क्या?” अदालत ने इस मामले में बड़ी संख्या में लोगों और संगठनों की हस्तक्षेप की इच्छा पर भी चिंता जताई। पीठ ने कहा, “अगर सभी आरडब्ल्यूए पार्टी बनना चाहते हैं, तो हम कितने करोड़ पार्टियों के साथ बैठेंगे? उचित सुझाव दें।”
क्या है आवारा कुत्तों का मामला?
यह मामला तब सामने आया जब 11 अगस्त को न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और आर महादेवन की पीठ ने दिल्ली के नगर निगम अधिकारियों को सभी क्षेत्रों से आवारा कुत्तों को पकड़ने और आठ सप्ताह के भीतर कम से कम 5,000 कुत्तों की क्षमता वाले आश्रय गृह बनाने का निर्देश दिया था। उस आदेश में नसबंदी किए गए कुत्तों को वापस सड़कों पर छोड़ने से मना किया गया था और आश्रय गृहों में सीसीटीवी कैमरे, पर्याप्त स्टाफ, भोजन और चिकित्सा सुविधाएं अनिवार्य की गई थीं। साथ ही पशु कार्यकर्ताओं द्वारा की जा रही “नैतिकता का प्रदर्शन” की आलोचना की गई थी, जिससे पशु अधिकार समूहों ने विरोध किया था। बाद में, यह मामला न्यायमूर्ति विक्रम नाथ की अध्यक्षता वाली एक नई पीठ को सौंपा गया, जिसने 22 अगस्त को पिछले आदेश को संशोधित करते हुए टीकाकरण और कृमिमुक्त कुत्तों को छोड़ने की अनुमति दी और मामले का दायरा बढ़ाकर पूरे देश को शामिल कर लिया। विभिन्न उच्च न्यायालयों में लंबित समान याचिकाओं को भी सुप्रीम कोर्ट में स्थानांतरित कर दिया गया।







