कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी ने इजराइल और फिलिस्तीन के बीच जारी संघर्ष पर केंद्र सरकार के रुख की कड़ी आलोचना की है। उन्होंने कहा कि भारत को फिलिस्तीन के मुद्दे पर खुलकर बोलना चाहिए। कांग्रेस नेता ने सरकार पर इस मुद्दे पर ‘गहरी चुप्पी’ साधने का आरोप लगाया, जिसे उन्होंने मानवता और नैतिकता दोनों का त्याग बताया।
सोनिया गांधी ने एक लेख में लिखा कि सरकार के फैसले भारत के संवैधानिक मूल्यों या हितों से अधिक दोस्ती पर आधारित होते हैं। उन्होंने कहा कि फिलिस्तीन के मुद्दे पर सरकार की चुप्पी इजराइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच दोस्ती का नतीजा है।
सोनिया गांधी ने इस लेख में इजराइल और भारत के साथ-साथ मोदी और ट्रंप की दोस्ती पर भी निशाना साधा। उन्होंने लिखा कि केंद्र सरकार की व्यक्तिगत कूटनीति का यह तरीका सही नहीं है और यह भारत की विदेश नीति के लिए मार्गदर्शक नहीं बन सकता। उन्होंने कहा कि इसका परिणाम हाल ही में देखा गया, जब अमेरिका ने दोस्ती के प्रयासों को विफल कर दिया।
सोनिया गांधी ने बताया कि अब फ्रांस ने भी फिलिस्तीन को राष्ट्र के रूप में मान्यता दे दी है, जैसे ब्रिटेन, कनाडा, पुर्तगाल और ऑस्ट्रेलिया ने दी है। उन्होंने कहा कि संयुक्त राष्ट्र के 193 सदस्य देशों में से 150 से अधिक देशों ने फिलिस्तीन को मान्यता दी है।
कांग्रेस नेता ने जोर देकर कहा कि भारत ने लंबे समय तक फिलिस्तीन मुक्ति संगठन (पीएलओ) का समर्थन किया था, जिसके बाद 8 नवंबर 1988 को भारत ने औपचारिक रूप से फिलिस्तीनी राष्ट्र को मान्यता दी थी। उन्होंने उदाहरण देते हुए बताया कि कैसे भारत ने आजादी से पहले दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद का मुद्दा उठाया था और अल्जीरियाई स्वतंत्रता संग्राम (1954-62) के दौरान भी अल्जीरिया का समर्थन किया था। उन्होंने यह भी बताया कि 1971 के बांग्लादेश और पाकिस्तान के युद्ध में भारत ने हस्तक्षेप करके बांग्लादेश को पूर्ण समर्थन दिया और उसे एक अलग देश बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
सोनिया गांधी ने कहा कि भारत को फिलिस्तीन के मुद्दे पर नेतृत्व दिखाने की आवश्यकता है, जो अब न्याय, पहचान, सम्मान और मानवाधिकारों की लड़ाई है। उन्होंने कहा कि भारत लंबे समय से इजराइल और फिलिस्तीन जैसे महत्वपूर्ण और संवेदनशील मुद्दों पर सैद्धांतिक और संतुलित रुख अपनाता रहा है।
सोनिया गांधी ने इजराइल-फिलिस्तीन संघर्ष पर पिछले कुछ महीनों में तीसरी बार लेख लिखा है, जिनमें उन्होंने हर बार इस मुद्दे पर मोदी सरकार के रुख की तीखी आलोचना की है।