देशभर में धान की कई किस्में उगाई जाती हैं, जिनकी अपनी अलग पहचान है। लेकिन इस समय, देश के अधिकांश किसान अपनी धान की फसल को लेकर चिंतित हैं। इसकी वजह चीन से आया एक वायरस है, जिसे पहली बार 2001 में पहचाना गया था। इस वायरस के कारण धान की फसल काली पड़ रही है। यह वायरस सबसे पहले दक्षिणी चीन में पाया गया था, इसलिए इसका नाम सदर्न राइस ब्लैक स्ट्रीक्ड ड्वार्फ वायरस (SRBSD) पड़ा। अब हरियाणा में सरकार और कृषि वैज्ञानिक इस वायरस को लेकर सतर्क हो गए हैं। आइए इस लेख में समझते हैं कि यह वायरस क्या है और फसलों को कैसे नुकसान पहुंचाता है।
हरियाणा में धान की खेती बड़े पैमाने पर होती है। धान यहां के किसानों की मुख्य फसल है। यहां का बासमती चावल पूरी दुनिया में अपनी पहचान रखता है। लेकिन अब इस पहचान पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। सरकार भी इस बात को मानती है। हाल ही में हरियाणा विधानसभा में इस वायरस का मुद्दा उठाया गया था। कृषि मंत्री श्याम सिंह राणा ने बताया कि राज्य में 40 लाख एकड़ में बोई गई धान की फसल में से लगभग 92,000 एकड़ की फसल पर इस वायरस का असर हुआ है।
सरकार का कहना है कि वह इस वायरस पर नजर रख रही है। यदि किसान कृषि वैज्ञानिकों की सलाह और समय-समय पर जारी किए जाने वाले सरकारी निर्देशों का पालन करते हैं, तो इस तरह की बीमारियों से काफी हद तक बचा जा सकता है।
**SRBSD वायरस क्या है?**
सदर्न राइस ब्लैक स्ट्रीक्ड ड्वार्फ वायरस (SRBSD) नामक इस वायरस को पहली बार चीन में पहचाना गया था। 2008 तक, इस वायरस का प्रकोप केवल दक्षिणी चीन तक ही सीमित था। 2009 में यह वायरस चीन से बाहर वियतनाम में पाया गया। उसके बाद से ही इस वायरस का असर अन्य देशों में भी देखने को मिला है।
**यह वायरस धान पर क्या असर डालता है?**
यह वायरस व्हाइट-बैक्ड प्लांट हॉपर (डब्ल्यूबीपीएच) नामक कीट के माध्यम से फैलता है, जो धान के पौधों का रस चूसता है और संक्रमित पौधों से स्वस्थ पौधों में वायरस फैलाता है। आसान शब्दों में कहें तो, यह वायरस धान के पौधे को बढ़ने नहीं देता। इस बीमारी से प्रभावित फसल में धान के पौधे 40 प्रतिशत तक छोटे हो जाते हैं और पैदावार भी बुरी तरह प्रभावित होती है।
यह माना जाता है कि यह वायरस फसल की बुआई के बाद जितनी तेजी से फैलता है, उतनी ही तेजी से फसल को नुकसान पहुंचाता है। इस वायरस के कारण गंभीर रूप से रोगग्रस्त पौधे मुरझाकर मर जाते हैं, और पौधों का निचला हिस्सा काला पड़ जाता है। संक्रमित पौधे के तनों पर छोटी धारीदार सफेद या काले मोमी गांठें भी साफ दिखाई देती हैं।
**यह वायरस कब तक प्रभावी रहता है?**
SRBSD वायरस पर किए गए अध्ययनों से पता चला है कि यह शुरुआती समय में बहुत प्रभावी होता है। यह फसलों की उत्पादन क्षमता को 50 प्रतिशत तक कम कर देता है। हालांकि, समय के साथ इसका प्रभाव कम हो जाता है। यह तभी गंभीर होता है जब फसल अंकुरित हो रही हो। अगर उस समय आपकी फसल बच जाती है, तो फिर डरने की कोई जरूरत नहीं है। इस बीमारी को भारत में आज से ठीक 3 साल पहले पहचाना गया था।
**अपनी फसल को वायरस से कैसे बचाएं?**
वैज्ञानिकों ने इस वायरस से बचाव के लिए कई सलाह जारी की हैं। लगभग हर साल, धान की बुआई के समय कृषि वैज्ञानिक इस वायरस के बारे में किसानों को जानकारी देते हैं। सलाह के अनुसार, यदि खेत में व्हाइट बैक्ड प्लांट हॉपर दिखाई दे, तो उससे बचाव के लिए पैक्सोलैम 10 एससी (ट्राइफ्लूमेजोपाइरिन) 235 मिली प्रति हेक्टेयर या ओशीन टोकेन 20एसजी (डाइनोटेफरॉन) 200 ग्राम प्रति हेक्टेयर या चेस 50 डब्ल्यू जी (पाइमेट्रोजीन) 300 ग्राम प्रति हेक्टेयर का छिड़काव किया जाना चाहिए। इसके अलावा, यदि आप फसल को पूरी तरह से सुरक्षित और बेहतर परिणाम प्राप्त करना चाहते हैं, तो पौधे की जड़ों में ही दवा का छिड़काव करें। इससे वायरस को बढ़ने का समय नहीं मिलता है।
**चावल की इन किस्मों पर असर पड़ा**
इस वायरस के कारण चावल की कई किस्में प्रभावित हो रही हैं। IARI की जांच में बासमती (पूसा-1962, 1718, 1121, 1509, 1847 और CSR-30) और गैर-बासमती (PR-114, 130, 131, 136, पायनियर हाइब्रिड और एराइज स्विफ्ट गोल्ड) सहित कई चावलों पर इस वायरस का असर देखने को मिला है। इसके कारण उत्पादन घटा है और बाजार की मांग भी पूरी नहीं हो सकी है।