भारतीय थल सेना, नौसेना और वायु सेना ने अपने संयुक्त ‘त्रिशूल’ अभ्यास के निर्णायक चरण में प्रवेश कर लिया है। यह बहु-सेवा अभ्यास 3 नवंबर को शुरू हुआ था और 13 नवंबर तक चलेगा। इस सप्ताह से शुरू हुआ यह अंतिम चरण, गुजरात और राजस्थान में फैले पश्चिमी सीमा क्षेत्र में चल रहा है।
इस अभ्यास की सबसे खास बात स्वदेशी ड्रोनों का लाइव फील्ड ट्रायल रहा। सेना द्वारा डिजाइन किए गए और भारतीय कंपनियों द्वारा निर्मित इन ड्रोनों ने कठोर परीक्षणों में अपनी श्रेष्ठता साबित की। इन मानव रहित हवाई प्रणालियों (UAS) ने सटीक लक्ष्य भेदने की क्षमता, लंबी उड़ान अवधि, मिशनों में लचीलापन और कठिन परिस्थितियों में मजबूत प्रदर्शन का उत्कृष्ट परिचय दिया।
यह परीक्षण ‘आत्मनिर्भर भारत’ पहल को बढ़ावा देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। सेना का सदर्न कमांड एक विशेष ड्रोन हब का संचालन करता है, जो अगली पीढ़ी के यूएएस के डिजाइन और उत्पादन पर केंद्रित है। ये ड्रोन निगरानी, सटीक हमले और इलेक्ट्रॉनिक युद्ध जैसे महत्वपूर्ण कार्यों को अंजाम देने में सक्षम हैं। त्रिशूल अभ्यास में इन क्षमताओं का वास्तविक समय में प्रदर्शन किया गया।
अभ्यास में दो नई इकाइयों, अग्नि पलटन और भैरव बटालियन ने भी भाग लिया। अग्नि पलटन ने निगरानी, खुफिया जानकारी जुटाने और हमले के मिशनों के लिए बनाए गए विभिन्न ड्रोनों का संचालन किया। वहीं, भैरव बटालियन, जो नियमित पैदल सेना और विशेष बलों के बीच की खाई को भरती है, ने तनावपूर्ण सीमावर्ती क्षेत्रों में तीव्र और सटीक कार्रवाई के लिए प्रशिक्षण लिया। इन बटालियनों ने सीमा पार अभियानों में दुश्मन की खुफिया जानकारी जुटाने और शत्रुतापूर्ण गतिविधियों को बाधित करने की अपनी क्षमता का भी प्रदर्शन किया।
त्रिशूल अभ्यास अब उच्च-तीव्रता वाले संयुक्त अभ्यासों की ओर बढ़ रहा है। तीनों सेवाओं के जवान संयुक्त अभियानों का अभ्यास कर रहे हैं। यह अभ्यास वास्तविक युद्ध की परिस्थितियों का अनुकरण करने के लिए डिज़ाइन किया गया है, जिसका उद्देश्य अंतर-सेवा समन्वय को मजबूत करना और पश्चिमी सीमा पर जटिल मिशनों को सफलतापूर्वक अंजाम देने की क्षमता को बढ़ाना है।




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