Noida-Greater Noida – एनसीआर की रियल एस्टेट इंडस्ट्री में भूचाल लाने वाली खबर सामने आई है। वर्षों से अपने सपनों का घर पाने के इंतजार में बैठे करीब 70 हजार फ्लैट बायर्स के लिए एक बड़ी राहत की खबर आई है। सुप्रीम कोर्ट ने बिल्डर्स और बैंकों/एनबीएफसी की सांठगांठ की जांच CBI से कराने के आदेश दिए हैं, जिससे पूरे रियल एस्टेट सेक्टर में हलचल मच गई है। यह कदम सुपरटेक, जेपी, यूनिटेक और आम्रपाली जैसे बड़े नामों के खिलाफ दर्ज हजारों शिकायतों के बाद उठाया गया है।
सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक आदेश: बिल्डर-बैंक गठजोड़ पर सख्त नजर
सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया कि जिन बायर्स ने सबवेंशन स्कीम के तहत फ्लैट बुक किए थे, उन्हें जानबूझकर गुमराह किया गया। इस योजना में घर खरीदारों को सिर्फ 10-20% भुगतान कर घर बुक करने का विकल्प दिया गया था। शर्त थी कि फ्लैट का पजेशन मिलने तक बिल्डर ही बैंक को ईएमआई का ब्याज देगा। मगर हुआ इसका उल्टा।
बिल्डर ने कुछ महीनों तक ब्याज भरकर बायर्स को भरोसे में लिया और फिर अचानक भुगतान बंद कर दिया। लोन की रकम को दूसरे प्रोजेक्ट्स में डायवर्ट कर दिया गया, जिससे निर्माण कार्य भी ठप पड़ गया। इससे फ्लैट बायर्स ना घर के मालिक बन पाए, ना ही ईएमआई की अदायगी कर सके और डिफॉल्टर घोषित हो गए।
सीबीआई को एसआईटी बनाने का निर्देश, हर महीने होगी सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट ने इस गड़बड़झाले की CBI जांच के लिए एक विशेष जांच टीम (SIT) बनाने का आदेश दिया है। कोर्ट ने यूपी और हरियाणा के DGPs को निर्देश दिया है कि वे जांच के लिए अनुभवी पुलिस अधिकारियों को सीबीआई को सौंपें। साथ ही हर महीने इस मामले की सुनवाई कर अंतरिम रिपोर्ट मांगी जाएगी, जिससे जांच की निगरानी बनी रहेगी।
हज़ारों बायर्स की बरसों की मेहनत और जीवन भर की कमाई दांव पर
एक अनुमान के अनुसार, नोएडा और ग्रेटर नोएडा में ऐसे 70,000 से ज्यादा फ्लैट बायर्स हैं जिनको आज तक घर नहीं मिला। इनमें से अधिकांश लोग मिडल क्लास से आते हैं जिन्होंने प्री-EMI योजना के तहत फ्लैट खरीदे थे। इन प्रोजेक्ट्स के नाम हैं:
-
Supertech के 21 प्रोजेक्ट्स, जिनमें से कई सालों से रुके हुए हैं
-
Jaypee Greens Wish Town, जो कभी लग्जरी का प्रतीक माना जाता था
-
Unitech और Amrapali, जिन पर पहले से ही कई घोटाले के मामले चल रहे हैं
बैंक और एनबीएफसी की संदिग्ध भूमिका: बायर्स पर डबल मार
रियल एस्टेट सेक्टर के इस घोटाले में बैंकों और NBFCs की भूमिका को भी जांच के घेरे में लिया गया है। सुप्रीम कोर्ट के अनुसार, कई बैंकों ने जानते-बूझते उन प्रोजेक्ट्स को लोन दिया जिनकी सॉल्वेंसी संदिग्ध थी। बिल्डर्स ने बैंक से मोटी रकम हासिल कर ली और बायर्स के नाम पर लोन चलाया गया, जिसके भुगतान का कोई ट्रैक रिकॉर्ड नहीं रहा।
एक रिपोर्ट के अनुसार, 19 वित्तीय संस्थानों ने सुपरटेक के प्रोजेक्ट्स में निवेश किया, जिसमें 800 से अधिक पीड़ित खरीदारों की शिकायतें सामने आईं हैं।
बायर्स का दर्द: “सपनों का घर अब डरावना सपना बन गया है”
फ्लैट खरीदारों की शिकायतें बेहद मार्मिक हैं। कई लोग तो सालों से किराया और लोन दोनों एक साथ भर रहे हैं। कुछ ने नौकरी खो दी, कुछ को मानसिक तनाव झेलना पड़ा।
अमिता शर्मा, जो ग्रेटर नोएडा वेस्ट में फ्लैट खरीद चुकी हैं, बताती हैं:
“2014 में फ्लैट बुक किया था। आज तक कब्जा नहीं मिला। EMI भी जा रही है और अब डिफॉल्टर बना दिया गया हूं। जिंदगी बर्बाद हो गई।”
सरकार पर भी सवाल: क्यों नहीं की समय रहते कार्रवाई?
रियल एस्टेट घोटालों की संख्या बढ़ने से राज्य सरकार और प्राधिकरणों की भूमिका पर भी सवाल उठते हैं। नोएडा और ग्रेटर नोएडा अथॉरिटीज ने समय रहते बिल्डर्स पर सख्त कार्रवाई नहीं की। रेरा एक्ट लागू होने के बावजूद ऐसे मामलों में पर्याप्त कार्रवाई नहीं होना सिस्टम की लापरवाही को दर्शाता है।
अब क्या होगा आगे? उम्मीद बनाम हकीकत
अब जबकि सुप्रीम कोर्ट ने मामले की CBI जांच का आदेश दिया है, फ्लैट बायर्स को राहत मिलने की उम्मीद है। अगर जांच पारदर्शी हुई और दोषियों पर कड़ी कार्रवाई की गई, तो यह कदम रियल एस्टेट सेक्टर में एक नया भरोसा पैदा करेगा।
हालांकि, सवाल यह भी है कि क्या इन बायर्स को उनका घर मिलेगा या फिर यह जांच भी लंबी न्यायिक प्रक्रिया में उलझ कर रह जाएगी?
न्याय की उम्मीद
ये मामला सिर्फ एक शहर या कुछ बिल्डर्स तक सीमित नहीं है। यह पूरे देश में चल रहे रियल एस्टेट मॉडल की कमियों को उजागर करता है। 70 हजार से ज्यादा बायर्स की पीड़ा आज एक न्यायिक कार्रवाई से राहत की ओर बढ़ी है। अगर यह कार्रवाई सही दिशा में गई, तो आने वाले समय में शायद भारत के हर मध्यमवर्गीय घर खरीदार को अपना हक और सपनों का घर मिल सके।