कश्मीर में धारा 370 और बाबरी विवाद जैसे ऐतिहासिक फ़ैसले लेने वाली सरकार हिंदी को राष्ट्रभाषा का दर्जा क्यों नहीं दे पा रही है? यह इच्छाशक्ति का मामला है, और इस सरकार से उम्मीद है। पिछले सत्तर वर्षों में, सरकारों ने हिंदी के मुद्दे पर देश को गुमराह किया है। हमारे पास राष्ट्रीय ध्वज, प्रतीक, पशु और पक्षी हैं, लेकिन राष्ट्रभाषा नहीं है। हिंदी हमारे आत्म-सम्मान और अस्मिता से जुड़ी है, जो पूरे देश को एकजुट करती है। हिंदी दिवस मनाने का क्या मतलब है, जबकि हिंदी हमेशा हमारे साथ रहती है? यह हमारी मातृभाषा है, हमारे विचारों में लहू की तरह बहती है, और दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी भाषा है।
एक मृत भाषा के रातोंरात राजभाषा बनने की कहानी: इजराइल का उदाहरण
इजराइल ने हिब्रू को रातोंरात राजभाषा बनाया। इजराइल की स्थापना 1948 में हुई थी, और हिब्रू एक मृत भाषा थी। प्रधानमंत्री डेविड बेन-गुरियन ने हिब्रू को राजभाषा बनाने का फैसला किया, और अगले ही दिन इसे लागू कर दिया गया, साथ ही अरबी को विशेष दर्जा दिया गया। आज हिब्रू इजराइल की आधिकारिक भाषा है।
मुंशी-आयंगर फॉर्मूला और हिंदी का सफर
भारत में, संविधान सभा में हिंदी को राजभाषा बनाने के पक्ष में 63 वोट पड़े थे, लेकिन विवादों के बाद, मुंशी-आयंगर फॉर्मूला पेश किया गया। इसके तहत हिंदी को संघ की आधिकारिक भाषा और नागरी को लिपि के रूप में स्वीकार किया गया, साथ ही अंग्रेजी को भी जारी रखने का फैसला किया गया। 78 साल बाद भी हिंदी को राष्ट्रभाषा नहीं बनाया जा सका है।
हिंदी के प्रति भावनाएँ
कवियों और लेखकों ने हिंदी के प्रति अपनी भावनाओं को व्यक्त किया है। भारतेंदु हरिश्चंद्र ने हिंदी के विकास को देश की उन्नति से जोड़ा, जबकि मैथिलीशरण गुप्त ने हिंदी को लेकर अपनी कसक व्यक्त की। कबीरदास और रहीम ने भी लोकभाषा की ताकत को पहचाना।
हिंदी का महत्व
हिंदी देश के एक बड़े हिस्से में संवाद की भाषा है। यह भाषा भौगोलिक विविधताओं के बावजूद व्यापक है। हिंदी ने हमेशा सभी भाषाओं को अपनाया है और सभी के साथ मिलकर चली है। हिंदी को अखबारों ने व्यापक बनाया। यह भारत की सनातन परंपरा की शाश्वत अभिव्यक्ति है।
हिंदी को गर्व की भाषा बनाने की आवश्यकता है
गैर-हिंदीभाषी नेताओं ने भी हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने की वकालत की थी। हमें हिंदी को अपने गर्व की भाषा बनाना होगा और इसे राष्ट्र की भाषा बनानी होगी। राजनीतिक इच्छाशक्ति की आवश्यकता है। हिंदी को स्वाभिमान और आत्म-सम्मान अर्जित करना होगा। हिंदी को विविधता में एकता स्थापित करने में अग्रणी भूमिका निभानी होगी।