रांची: ईद उल अजहा जिसे बकरीद के नाम से जाना जाता है। यह इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार जिल हिज्ज़ा महीने की दसवीं से 12वीं तारीख तक अर्थात तीन दिनों तक मनाने जाने वाला त्यौहार है। इस तीन दिनों में अल्लाह के राह पर जानवर की कुर्बानी दी जाती है, हर मुसलमान पर कुर्बानी अनिवार्य है, जो आर्थिक रूप से सबल हो। यह पैगम्बर हजरत इब्राहिम अलैहिस्सलाम की सुन्नत है, जिसमें उन्होंने ईश्वर के आदेश पर अपने इकलौते पुत्र हजरत इस्माइल को अल्लाह के राह पर भेजा। हजरत इब्राहिम ने अपने बेटे मोह को कुर्बान करने के लिए इस परीक्षा में बलिदान कर दिया। परन्तु अल्लाह के हुकुम पर पुत्र के स्थान पर मुंबा की क़ुरबानी अल्लाह को इतनी पसंद आई कि यह त्याग और समर्पण सुन्नते इब्राहिम के रूप में जाना जाने लगा। यह त्यौहार पूरी दुनिया में मुसलमानों को यह संदेश देता है कि हर मुसलमान अल्लाह की राह में समर्पित रहता है। बंदे का समर्पण अल्लाह को पसंद है इसी महीने लाखों लोग मक्का जाकर हज पूरी करते हैं और हजरत इब्राहिम की सुन्नत को पूरी दुनिया के मुसलमान जानवर कहते हैं। पूरी दुनिया में इस सुन्नत को कुर्बानी के रूप में मनाया जाता है और इस्लाम धर्मावलंबियों का यह दूसरा सबसे बड़ा त्योहार है। यह त्यौहार हमें यह संदेश देता है कि ईश्वर द्वारा ली गई कठिन परीक्षा के समय भी धैर्य और संयम से काम लेना चाहिए और ईश्वर के प्रति समर्पित होकर उनके पालन का पालन करना चाहिए।
प्रसाद -महबूब आलम
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