जेजेएस कॉलेज में नारी अस्मिता विषय पर किया संगोष्ठी आयोजित मिहिजाम. जनजातीय संध्या डिग्री महाविद्यालय मिहिजाम में मंगलवार को संगोष्ठी का आयोजन किया गया. वक्ताओं ने कहा कि नारी का सम्मान केवल किताबों व लेखों में नहीं, बल्कि व्यावहारिक जीवन में देने की आवश्यकता है. संगोष्ठी का आयोजन हिन्दी विभाग की ओर से किया गया था. संगोष्ठी आधुनिक हिन्दी साहित्य में नारी अस्मिता विषय पर आयोजित हुई थी. अध्यक्षता महाविद्यालय के प्राचार्य प्रो कृष्णमोहन साह ने की. बतौर मुख्य वक्ता कॉलेज के पूर्व सहायक प्राध्यापक डॉ उत्तम कुमार सिन्हा ने अपने वक्तव्य में नारी की अस्मिता के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की. उन्होंने मां दुर्गा, अहिल्या, माता सीता आदि से लेकर आधुनिक युग के हिन्दी कथाकारों की रचनाओं में नारी के अस्मिता को वर्णन पर प्रकाश डाला. कहा कि स्त्री स्वाभिमान को एहसास करने की आवश्यकता है. नारी अस्मिता लंबी लड़ाई की प्रक्रिया है. साहित्य में नारी को सम्मान से देखा गया है, जब हमने पुस्तकों में उन्हें स्थान दिया, लेकिन व्यावहारिक जीवन में ऐसा करने में समझौता करते गये हैं. वर्तमान पुरुषवादी व अर्द्धसामंतवादी समाज में स्त्रियों की हैसियत क्या है. स्त्री को दोयम दर्ज का क्यों माना गया. उसे दोयम दर्ज का मानने से ही उसके अस्मिता का प्रश्न खड़ा हुआ है. इस पर मंथन करने की आवश्यकता है. सभ्यता इतना विकसित नहीं हो पाया कि स्त्री को उसका मोल दे सके. कहा कि इतिहास को देखे तो चाहे द्रोपदी हो, कुंती हो या अहिल्या सभी को अपने होने के लिए प्रमाण पत्र देना पड़ा है. नारी अस्मिता की यह लडाई समाप्त नहीं हुई. यदि आप स्त्री का सम्मान नहीं कर सकते हैं तो काफी पीछे हैं. एक पत्नी के लिए सबसे बड़ी दुखदायी बात यह है कि उसका पति उसे उपेक्षित कर दें. कामायनी में नारी को श्रद्धारूप में देखा गया. स्त्रियां केवल सुंदरता व शृंगार की वस्तु नहीं है. वह पुरुष के लिए शक्ति और रोशनी है. मौके पर कॉलेज प्राचार्य ने अध्यक्षीय भाषण में नारी अस्मिता के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डाला. कॉलेज के छात्र-छात्राओं ने भी संगोष्ठी में विचार प्रस्तुत किये. मंच संचालन हिन्दी की सहायक प्राध्यापक शबनम खातून ने किया. मौके पर हिन्दी विभागाध्यक्ष जयश्री, नैक को-ऑर्डिनेटर डॉ राकेश रंजन, सतीश शर्मा, रंजीत यादव, शम्भू सिंह, बीपी गुप्ता, पूनम कुमारी, अमिता सिंह, पुष्पा टोप्पो, राम प्रकाश दास, डॉ किरण वर्णवाल आदि थे.
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