नई दिल्ली/बरेली: भारतीय राजनीति में इन दिनों ‘समान नागरिक संहिता’ यानी Uniform Civil Code (UCC) को लेकर चर्चाएं जोरों पर हैं। इसी कड़ी में ऑल इंडिया मुस्लिम जमात के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना शहाबुद्दीन रजवी बरेलवी ने एक बार फिर इस विवादास्पद मुद्दे पर अपनी दो टूक राय रखी है।
हाल ही में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) द्वारा सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ (पूर्व में ट्विटर) पर UCC से संबंधित एक वीडियो जारी किया गया था, जिस पर मौलाना रजवी ने तीखी प्रतिक्रिया देते हुए स्पष्ट कहा कि “UCC मुसलमानों को किसी भी कीमत पर मंजूर नहीं है।”
उनके मुताबिक, यह कानून अगर बिना किसी धार्मिक भावनाओं की कद्र किए लागू किया जाता है, तो इससे ना सिर्फ मुस्लिम समाज, बल्कि भारत के अन्य धर्मों के अनुयायियों की भावनाएं भी आहत होंगी।
‘UCC शरीयत में दखल है’ – मौलाना रजवी
मौलाना शहाबुद्दीन रजवी ने कहा,
“यूसीसी शरीयत में सीधा हस्तक्षेप है। यदि इस कानून को लागू किया गया, तो यह भारत के संविधानिक ढांचे और लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ होगा।“
उन्होंने आगाह किया कि भारत एक धार्मिक विविधता वाला लोकतांत्रिक देश है, जहां हर धर्म को अपनी परंपराएं और धार्मिक नियमों के अनुसार जीवन जीने की आज़ादी है। ऐसे में एक समान नागरिक संहिता थोपना किसी धर्म पर जबरदस्ती करने जैसा होगा।
शरीयत को दरकिनार करने की साजिश?
मौलाना ने आगे कहा कि अगर सरकार वास्तव में ऐसा कानून लाना चाहती है जो सभी नागरिकों के लिए समान हो, तो पहले उन धर्मों के मूल सिद्धांतों और परंपराओं की गहराई से समझ होनी चाहिए।
उनके अनुसार,
“अगर कानून बनाना ही है, तो उसमें शरीयत के वसूलों का ख्याल जरूर रखा जाए। तभी वह सभी धर्मों के मानने वालों को स्वीकार्य हो सकता है। वरना यह कानून सिर्फ एक समुदाय को निशाना बनाने का हथियार बन जाएगा।“
राजनीतिक बयानबाज़ी या साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण?
राजनीतिक गलियारों में कई जानकारों का मानना है कि 2024 के आम चुनावों के मद्देनज़र इस तरह के मुद्दों को उछालकर धार्मिक ध्रुवीकरण की कोशिश की जा रही है।
भाजपा द्वारा UCC को बार-बार उठाना और उसके समर्थन में प्रचार करना, मुस्लिम समुदाय के बीच अविश्वास का माहौल पैदा कर रहा है। मौलाना रजवी का यह बयान भी इसी असंतोष का परिणाम है।
UCC का प्रभाव: क्या बदलेगा भारत का सामाजिक ढांचा?
UCC लागू होने से देश में विवाह, तलाक, उत्तराधिकार और संपत्ति के नियमों में एकरूपता आएगी। लेकिन इसका सीधा असर उन समुदायों पर पड़ेगा, जो अपने धार्मिक कानूनों के तहत इन मामलों का निपटारा करते हैं, खासकर मुस्लिम समुदाय।
मौलाना का कहना है कि
“इस तरह के कानून लागू करके सरकार भारत के गंगा-जमुनी तहज़ीब पर प्रहार कर रही है। भारत की खूबसूरती ही इसकी विविधता में है, न कि एकरूपता में।“
ऑल इंडिया मुस्लिम जमात की भूमिका
ऑल इंडिया मुस्लिम जमात एक प्रतिष्ठित संगठन है जो देशभर में मुस्लिम समाज के धार्मिक और सामाजिक हितों की रक्षा के लिए सक्रिय है। इसके अध्यक्ष मौलाना रजवी का बयान सिर्फ उनकी व्यक्तिगत राय नहीं, बल्कि एक बड़े वर्ग की भावनाओं को दर्शाता है।
उन्होंने देशभर के मुसलमानों से अपील की कि
“संविधान और शरीयत की रक्षा के लिए संगठित रहें और इस कानून के खिलाफ शांतिपूर्ण, लोकतांत्रिक तरीके से अपनी आवाज़ बुलंद करें।“
युवाओं में गुस्सा और सोशल मीडिया पर बवाल
भाजपा द्वारा जारी वीडियो के बाद सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर तीखी बहस छिड़ गई है। कई मुस्लिम युवाओं ने इसे एकतरफा प्रचार बताया और ट्विटर, इंस्टाग्राम, फेसबुक पर हैशटैग #RejectUCC और #ShariahIsOurLaw ट्रेंड करने लगे।
इन हैशटैग्स के माध्यम से मुस्लिम युवाओं ने यह स्पष्ट किया कि वे शरीयत के सिद्धांतों से समझौता नहीं करेंगे और किसी भी हालत में ‘समानता के नाम पर धार्मिक पहचान मिटाने’ की कोशिशों को बर्दाश्त नहीं करेंगे।
राजनीतिक दलों की चुप्पी या रणनीति?
जहां एक ओर भाजपा UCC को लेकर मुखर है, वहीं विपक्षी पार्टियां इस मुद्दे पर या तो चुप्पी साधे हुए हैं या फिर बड़ी सधी हुई भाषा में बयान दे रही हैं।
कुछ राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि UCC को लेकर बहस छेड़ना एक राजनीतिक मास्टरस्ट्रोक हो सकता है, लेकिन अगर इसे धार्मिक भावनाओं को आहत करने के उद्देश्य से इस्तेमाल किया गया, तो इसका उल्टा असर भी हो सकता है।
आगे की राह: टकराव या समाधान?
मौलाना शहाबुद्दीन रजवी के अनुसार, भारत को चाहिए कि वह अपने लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा करे और सभी धर्मों के लोगों को समानता और सम्मान के साथ जीने का हक दे।
उन्होंने अंत में यह भी कहा कि
“हम देश के संविधान का सम्मान करते हैं, लेकिन शरीयत हमारी रूह है। अगर कानून शरीयत को दरकिनार करेगा, तो मुस्लिम समाज उसे कभी नहीं मानेगा।“
लेकिन सवाल जरूर…
क्या UCC भारत को एकजुट करेगा या फिर धार्मिक असंतुलन को बढ़ावा देगा? क्या मुस्लिम समाज की धार्मिक पहचान को दरकिनार कर एक ‘समान’ समाज बनाना वास्तव में मुमकिन है?
जवाब जल्द मिलेंगे, लेकिन फिलहाल ये साफ है कि मौलाना शहाबुद्दीन रजवी के इस बयान ने UCC की बहस को एक नए उबाल पर पहुंचा दिया है।