लखनऊ से उठी इस बार की सियासी तपिश ने फिर एक बार उत्तर प्रदेश की राजनीति को उबाल दिया है। सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) के राष्ट्रीय अध्यक्ष Om Prakash Rajbhar ने समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव को लेकर जो तीखे बोल बोले हैं, उसने न सिर्फ विरोधियों को चौकन्ना कर दिया है, बल्कि जातीय समीकरणों में भी खलबली मचा दी है।
गौरतलब है कि हाल ही में अखिलेश यादव ने एक बयान में कहा था कि सत्ता में आने पर गोमती रिवर फ्रंट पर महाराजा सुहेलदेव की भव्य प्रतिमा स्थापित की जाएगी। इस पर राजभर ने कड़ा पलटवार किया और कहा कि “अखिलेश को पिछड़ों और दलितों को ठगने की आदत है।” उन्होंने यह भी जोड़ा कि अगर उन्हें महाराजा सुहेलदेव की इतनी ही चिंता थी, तो सत्ता में रहते हुए उन्होंने यह काम क्यों नहीं किया?
राजभर की जुबानी आग: अखिलेश के बयान को बताया ‘राजनीतिक स्टंट’
राजभर ने साफ़ कहा कि अखिलेश यादव अब वोट बैंक बचाने के लिए नाटक कर रहे हैं। “जब तक सत्ता में थे, तब तक महाराजा सुहेलदेव की कोई याद नहीं आई। अब चुनाव आते ही उन्हें सब याद आने लगा है,” राजभर ने व्यंग्य करते हुए कहा।
उन्होंने तीखी टिप्पणी करते हुए कहा, “जो अपने पिता मुलायम सिंह यादव और चाचा शिवपाल यादव का नहीं हुआ, वह राजभर समाज का कैसे होगा?” यह बात सियासी गलियारों में तेज़ी से गूंजने लगी है और चर्चाओं का विषय बन चुकी है।
जातीय जनगणना पर सियासत गरम: ‘मोदी सरकार के फैसले से हिले अखिलेश’
राजभर ने कहा कि केंद्र सरकार द्वारा जातीय जनगणना कराए जाने के निर्णय ने सपा प्रमुख की नींद उड़ा दी है। “अखिलेश यादव भीतर से हिल गए हैं क्योंकि अब पिछड़ा और दलित वोट बैंक उनके हाथ से फिसलता दिख रहा है। इसलिए वह नए-नए हथकंडे अपना रहे हैं,” राजभर ने कहा।
उन्होंने यह भी दावा किया कि जातीय जनगणना के बाद सपा का वोट बैंक पूरी तरह से खिसक जाएगा। “जनगणना के आंकड़े सच्चाई उजागर कर देंगे कि किसे कितना प्रतिनिधित्व मिल रहा है और किसे नहीं। तब समाज को सपा की असलियत समझ में आ जाएगी।”
‘राजभर समाज को ठगने की कोशिश कर रहे हैं अखिलेश’
राजभर ने आरोप लगाया कि अखिलेश यादव अब राजभर समाज को गुमराह करने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन समाज अब जागरूक हो चुका है। “अब हम किसी के बहकावे में नहीं आने वाले। हमारा इतिहास, हमारे नायक और हमारी पहचान कोई हथियार नहीं, गर्व की बात है,” उन्होंने जोड़ा।
सपा की पुरानी शैली: ‘दलितों को गुलाम समझने की सोच’
राजभर ने यह भी कहा कि समाजवादी पार्टी की मानसिकता अब भी नहीं बदली है। “सपा दलितों को गुलाम समझती है। उन्हें सिर्फ चुनाव के समय याद किया जाता है, उसके बाद पांच साल तक उनके मुद्दों को भुला दिया जाता है।”
पूर्व गठबंधन की यादें: ‘हमने साथ देखा है अखिलेश का असली चेहरा’
राजभर ने कहा कि वह अखिलेश यादव के साथ गठबंधन में रह चुके हैं और उनकी कार्यशैली से भलीभांति परिचित हैं। “वह न बसपा के साथ टिके, न जयंत चौधरी के साथ, और न ही अपने परिवार के लोगों के साथ। उनकी फितरत ही ऐसी है – वादा करना और फिर मुकर जाना।”
अंदरूनी राजनीतिक समीकरण और दलित वोट बैंक की नई जंग
उत्तर प्रदेश की राजनीति में ओबीसी और दलित वोट बैंक हमेशा से निर्णायक रहा है। ऐसे में जब सुभासपा जैसे क्षेत्रीय दलों के नेता खुलकर अखिलेश यादव जैसे बड़े नाम पर हमला बोलते हैं, तो इसके पीछे सिर्फ बयानबाज़ी नहीं होती – यह आगामी चुनावों की बड़ी रणनीति का हिस्सा भी होता है।
विशेषज्ञों का मानना है कि सुभासपा जैसे दलों की पकड़ पूर्वांचल में गहरी है और राजभर समाज की भूमिका लोकसभा चुनाव में अहम होने वाली है। ऐसे में यह विवाद सिर्फ शब्दों की लड़ाई नहीं, बल्कि 2024 और 2027 की रणनीतिक बिसात पर एक बड़ा दांव है।
वोट बैंक की राजनीति और महापुरुषों की विरासत का उपयोग
चुनावी सीज़न आते ही राजनेताओं को अपने-अपने जातीय नायकों की याद आने लगती है। महाराजा सुहेलदेव, जो कि राजभर समाज के गौरव प्रतीक माने जाते हैं, को लेकर हो रही राजनीति भी इसी कड़ी का हिस्सा है। चाहे वह प्रतिमा स्थापना की बात हो या राजभर समाज के सम्मान की दुहाई – यह सब वोट बैंक की राजनीति का हिस्सा बन चुका है।
क्या यह हमला चुनावी मोर्चे की नई शुरुआत है?
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि Om Prakash Rajbhar की यह टिप्पणी सिर्फ एक बयान नहीं बल्कि आगामी चुनावों की रणनीति का हिस्सा है। यह सपा को पूर्वांचल में चुनौती देने की शुरुआत मानी जा रही है।
निष्कर्ष नहीं, अब अगली चाल की बारी
अखिलेश यादव और ओम प्रकाश राजभर के बीच जुबानी जंग में जिस तरह से जातीय जनगणना, महाराजा सुहेलदेव की प्रतिमा और दलित-पिछड़ा वोट बैंक के मुद्दे उछाले गए हैं, वह स्पष्ट संकेत हैं कि आने वाला समय उत्तर प्रदेश की राजनीति में और भी गर्मी लाएगा।