Bareilly के इज्जतनगर क्षेत्र में सोमवार सुबह एक ऐसा हादसा हुआ जिसने पूरे क्षेत्र को दहला दिया। दो किशोरों की दर्दनाक मौत ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि मोबाइल और सोशल मीडिया की लत बच्चों की जिंदगी को किस हद तक खतरे में डाल रही है। यह हादसा ‘बरेली रेल हादसा’ के नाम से अब चर्चा में है।
सुबहे-सुबह का समय था, जब गांव करमपुर चौधरी निवासी दो किशोर, 12 वर्षीय पंकज और 14 वर्षीय आदित्य, बाल कटवाने के बहाने घर से निकले। लौटते वक्त दोनों रेलवे लाइन के किनारे बैठकर मोबाइल में रील्स देखने लगे। उस वक्त वे इस बात से बेखबर थे कि उनकी यह लत उनकी जिंदगी का आखिरी अध्याय लिख रही है।
रेल इंजन की चपेट में आए, मौत हो गई मौके पर
काठगोदाम की ओर से आ रहे एक लोको इंजन ने जब उन्हें देखा तो पायलट ने जोर-जोर से हॉर्न बजाया, लेकिन दोनों किशोरों के कान में ईयरबड्स लगे होने के कारण वे न तो इंजन की आवाज सुन पाए और न ही खुद को बचा सके। अगले ही पल में इंजन की चपेट में आकर उनकी मौके पर ही मौत हो गई।
रेलवे ट्रैक पर क्षत-विक्षत शवों को देख स्थानीय लोगों की आंखों से आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे। कई लोग गम और आक्रोश में रेलवे ट्रैक पर जमा हो गए, जिन्हें पुलिस ने काफी मशक्कत के बाद हटाया।
दोस्ती थी गहरी, शौक था एक जैसा
पंकज और आदित्य न सिर्फ हमउम्र थे, बल्कि गहरे दोस्त भी थे। दोनों को मोबाइल देखने का बेहद शौक था। पास-पड़ोस के लोग बताते हैं कि वे अक्सर खाली समय में मोबाइल में रील्स देखा करते थे। हालांकि परिजनों का कहना है कि बच्चों को उन्होंने मोबाइल नहीं दिया था और जो मोबाइल घर में है, वह सुरक्षित है।
पंकज बदायूं के अकराबाद का मूल निवासी था और अपने राजमिस्त्री पिता ओमवीर के साथ बरेली के करमपुर चौधरी में किराए के मकान में रहता था। वह चौथी कक्षा में पढ़ता था। वहीं आदित्य सातवीं कक्षा का छात्र था, उसके पिता ऋषिदेव एक प्राइवेट सिक्योरिटी गार्ड हैं।
लापरवाह बुनियादें और प्रशासन की चुप्पी
इज्जतनगर से करमपुर चौधरी के बीच की रेलवे लाइन आबादी से सटी हुई है। कई जगह सुरक्षा के नाम पर कोई दीवार नहीं बनी है। लोगों का कहना है कि इस इलाके में आए दिन जानवर और लोग रेलवे ट्रैक पर पहुंच जाते हैं, जिससे दुर्घटनाओं का खतरा बना रहता है।
पिछले साल अक्तूबर में इसी इलाके में एक व्यक्ति की ट्रेन की चपेट में आकर मौत हो गई थी। इसके अलावा, कई बार गायों की भी ट्रैक पर कटकर मौत हो चुकी है। स्थानीय हिंदू संगठनों ने तब रेलवे अधिकारियों से ट्रैक के किनारे दीवार बनाने की मांग की थी। लेकिन तब से अब तक प्रशासन इस ओर गंभीरता से ध्यान नहीं दे पाया।
रेलवे ट्रैक के पास अंडरपास और सुरक्षा दीवार की पुरानी मांग फिर उठी
घटना के बाद एक बार फिर शहीद गेट और करमपुर चौधरी क्षेत्र के लोग आवाज उठाने लगे हैं कि रेलवे ट्रैक पर अंडरपास बनाया जाए और ट्रैक के किनारे सुरक्षा दीवार खड़ी की जाए। क्योंकि यह सिर्फ एक दुर्घटना नहीं, बल्कि सिस्टम की लापरवाही से उपजा एक दर्दनाक उदाहरण है।
स्थानीय निवासी रवि शर्मा ने कहा, “हर बार हादसे के बाद कुछ दिन शोक और चर्चा होती है, फिर सब भूल जाते हैं। अब वक्त आ गया है कि ट्रैक के किनारे सुरक्षा दीवार बनाई जाए और स्कूलों में मोबाइल की लत से बचाने के लिए जागरूकता अभियान चलाया जाए।”
मासूम जिंदगियों को निगलती मोबाइल रील्स की लत
यह सिर्फ बरेली की घटना नहीं है, बल्कि पूरे देश में मोबाइल रील्स की दीवानगी एक खतरनाक स्तर पर पहुंच चुकी है। हर दूसरा बच्चा सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स जैसे इंस्टाग्राम, यूट्यूब शॉर्ट्स आदि पर घंटों समय बर्बाद कर रहा है। और जब कानों में ईयरबड्स हों, आंखें स्क्रीन पर टिकी हों, तो असल दुनिया की आवाजें दब सी जाती हैं — जैसे इस घटना में हुआ।
जिम्मेदारी किसकी: अभिभावकों, प्रशासन या तकनीक की?
अब बड़ा सवाल यह है कि आखिर इन घटनाओं की जिम्मेदारी किसकी है? क्या अभिभावकों को और सख्त होना चाहिए? क्या प्रशासन को ऐसे खतरनाक इलाकों में चेतावनी बोर्ड, फेंसिंग और जागरूकता अभियान शुरू करने चाहिए? या फिर हमें तकनीकी कंपनियों से अपेक्षा करनी चाहिए कि वे बच्चों के लिए अलग से सीमित कंटेंट और टाइम लॉक जैसी सुविधाएं अनिवार्य करें?
पुलिस और रेलवे की प्रतिक्रिया
सीओ तृतीय पंकज श्रीवास्तव ने बताया कि, “रेलवे ट्रैक पर मोबाइल में रील देखते वक्त दोनों किशोरों की मौत बेहद दुर्भाग्यपूर्ण घटना है। हम स्थानीय प्रशासन से बातचीत कर इस क्षेत्र में सुरक्षा उपायों को मजबूत करने की कोशिश करेंगे।”
रेलवे अधिकारियों का कहना है कि अब इस क्षेत्र में फेंसिंग की योजना पर विचार किया जा रहा है और हादसे की विस्तृत जांच की जाएगी।
समाज और सिस्टम के लिए चेतावनी है यह हादसा
बरेली रेल हादसा सिर्फ एक खबर नहीं, एक सच्चाई है जिसे अब नज़रअंदाज़ करना संभव नहीं। यह उन तमाम अभिभावकों के लिए चेतावनी है जो बच्चों को मोबाइल देकर चुप करा देते हैं। यह प्रशासन के लिए संकेत है कि सुरक्षा उपायों को नजरअंदाज करना अब और नहीं चलेगा।
देश भर में ऐसी घटनाओं की रोकथाम के लिए स्कूलों, घरों, और प्रशासन को मिलकर काम करना होगा — ताकि अगली बार किसी पंकज या आदित्य की जिंदगी यूं अचानक खत्म न हो।