Sambhal ज़िले में एक ऐसा सनसनीखेज मामला उजागर हुआ है जिसने कानून व्यवस्था और बीमा सेक्टर दोनों की नींव हिला दी है। पुलिस की जांच में सामने आया है कि एक संगठित गिरोह गांव-गांव जाकर कैंसर जैसी जानलेवा बीमारियों से पीड़ित लोगों की तलाश करता था। ये ठग पीड़ितों के परिवार को झूठी बीमा योजनाओं का झांसा देकर उनके नाम पर बीमा करवाते और मौत के बाद भारी क्लेम खुद हड़प लेते।
दो मास्टरमाइंड गिरफ्तार, पर ये तो बस शुरुआत है
संभल पुलिस ने इस गिरोह के दो कुख्यात आरोपियों — अंकित शर्मा और शीलू — को गिरफ्तार कर सलाखों के पीछे भेज दिया है। ये दोनों आरोपी लंबे समय से ऐसे बीमा फ्रॉड को अंजाम दे रहे थे। दोनों बबराला और कैलादेवी कस्बे के रहने वाले बताए जा रहे हैं।
पुलिस ने खोला जाल: अब तक 40 आरोपी दबोचे जा चुके हैं
एएसपी अनुकृति शर्मा ने प्रेस वार्ता में बताया कि इस अंतर्राज्यीय गिरोह के तार कई ज़िलों तक फैले हुए हैं। अब तक कुल 40 से अधिक आरोपियों की गिरफ्तारी हो चुकी है। गिरोह में शामिल लोग ग्राम प्रधान, आशा बहुएं, आंगनबाड़ी कार्यकर्ता और पंचायत सचिवों की मदद से अपने शिकार तक पहुंचते थे।
केस स्टडी 1: सुनीता देवी को मिला सिर्फ 20 हज़ार, ठग ले गए 10 लाख!
बुलंदशहर ज़िले के भीमपुर गांव की रहने वाली सुनीता देवी ने जब शिकायत दर्ज कराई तो पूरे मामले का बड़ा खुलासा हुआ। उनके पति सुभाष की 2024 में कैंसर से मौत हो गई थी। इसी का फायदा उठाकर आरोपी गिरोह ने उनके नाम से ICICI प्रूडेंशियल से ₹10 लाख का बीमा क्लेम निकाला, जिसमें सुनीता को केवल ₹20,000 दिए गए और बाकी रकम हड़प ली गई।
केस स्टडी 2: रुकसार के पति के नाम पर बीमा, फर्जी खाता खोलकर उड़ा दी रकम
दूसरा मामला बुलंदशहर के ही पहासू क्षेत्र की रहने वाली रुकसार का है। उनके पति असलम की मौत के बाद, गिरोह ने अनूपशहर में यश बैंक में फर्जी खाता खोलकर पूरे बीमा की राशि खुद निकाल ली। रुकसार को इस बीमा के बारे में कोई जानकारी तक नहीं थी।
गांव की सत्ता से लेकर बैंक तक फैला था नेटवर्क
जांच में यह भी सामने आया कि इस गिरोह ने बैंक कर्मचारियों, बीमा एजेंटों, ग्राम प्रधानों और आशा कार्यकर्ताओं तक को शामिल कर रखा था। ये लोग कैंसर पीड़ितों की पहचान कर उन्हें योजना के नाम पर भ्रमित करते और फिर उनसे पहचान पत्र व डॉक्यूमेंट्स एकत्र कर फर्जी पॉलिसी तैयार करते।
बीमा कंपनी से छिपाते थे बीमारी, बनवाते थे फर्जी मेडिकल रिकॉर्ड
इन जालसाजों का अगला कदम था बीमा कंपनी को अंधेरे में रखना। कैंसर जैसी बीमारी को छुपाकर फर्जी हेल्थ डिक्लेयरेशन फॉर्म भरे जाते थे। इसके बाद जब मरीज की मौत होती, गिरोह तैयार बैठा होता और तुरंत क्लेम कर मोटी रकम ऐंठ लेता।
पुलिस के पास दर्जनों शिकायतें, 50 करोड़ से अधिक की ठगी का अनुमान
एएसपी के अनुसार, अब तक बीमा घोटाले से जुड़े मामलों में दर्जनों शिकायतें सामने आ चुकी हैं। जांच एजेंसियों को आशंका है कि इस गिरोह ने पिछले 2 वर्षों में करीब ₹50 करोड़ से अधिक की ठगी की है। अलग-अलग बीमा कंपनियों से किए गए फर्जी क्लेम की जांच भी शुरू कर दी गई है।
केंद्र सरकार से भी सहयोग की मांग, ED और IRDA की जांच संभव
चूंकि मामला अब राष्ट्रीय स्तर का रूप ले चुका है, संभल पुलिस ने केंद्र सरकार के बीमा नियामक IRDAI और प्रवर्तन निदेशालय (ED) को भी सूचित किया है। बहुत संभव है कि आने वाले हफ्तों में इस केस की जांच राष्ट्रीय जांच एजेंसियां अपने हाथ में ले लें।
जनता को चेतावनी: कैंसर मरीजों के नाम पर कोई भी दस्तावेज़ न दें
पुलिस ने आमजन से अपील की है कि किसी भी अनजान व्यक्ति को अपने परिवार के बीमार सदस्य के दस्तावेज़ न दें। अगर कोई बीमा या सहायता योजना के नाम पर जानकारी मांगे, तो तुरंत अपने नज़दीकी थाने को सूचित करें।
बीमा कंपनियों को भी अलर्ट मोड पर लाया गया
सभी प्रमुख बीमा कंपनियों को इस मामले के मद्देनज़र सतर्क किया गया है। खासकर ICICI प्रूडेंशियल और यश बैंक जैसे नाम इसमें शामिल होने के बाद बीमा प्रक्रिया की निगरानी और दस्तावेज़ सत्यापन को और कड़ा किया गया है।
चेतावनी है: मौत को मत बनने दीजिए मुनाफे का ज़रिया
यह बीमा घोटाला सिर्फ एक वित्तीय अपराध नहीं, बल्कि मानवीय संवेदनाओं की हत्या है। जहां एक परिवार अपने किसी प्रियजन को खो रहा होता है, वहीं कुछ लोग उसकी मौत पर भी रुपये की गिनती कर रहे होते हैं। पुलिस की सक्रियता से भले ही इस गिरोह की कमर टूटी हो, पर इसने एक चेतावनी तो दे ही दी है — अब मौत भी सुरक्षित नहीं है।
—क्या आप भी किसी बीमा घोटाले का शिकार हुए हैं? अपने अनुभव साझा करें, और दूसरों को जागरूक करें।
सरकार की योजनाएं बनीं ठगी का औजार, बीमारियों पर भी मुनाफाखोरी!
संभल जिले में कैंसर मरीजों के नाम पर बीमा घोटाला सामने आने के बाद अब एक और चौंकाने वाला खुलासा हुआ है। आयुष्मान भारत और अन्य सरकारी स्वास्थ्य योजनाओं के नाम पर गरीब, गंभीर रूप से बीमार मरीजों को लूटा जा रहा है। फर्जी अस्पताल, डॉक्टरों का गिरोह और दलाल मिलकर एक ऐसा तंत्र चला रहे हैं जिसमें मरीज की बीमारी सिर्फ कागज़ों पर होती है और क्लेम से करोड़ों की कमाई हो जाती है।
फर्जी अस्पतालों का खुलासा: इलाज बिना भर्ती, दावा लाखों का
पुलिस सूत्रों और स्वास्थ्य विभाग की जांच में यह सामने आया कि कई फर्जी अस्पतालों ने कैंसर और किडनी फेलियर के मरीजों को दिखाकर उनके नाम पर लाखों रुपये का क्लेम लिया, जबकि मरीजों ने कभी इलाज ही नहीं करवाया। सिर्फ कार्ड स्वाइप, फर्जी भर्ती और दस्तावेजों के आधार पर बिल बना लिया गया।
आशा और पंचायत कार्यकर्ताओं की मिलीभगत: डॉक्युमेंट्स के बदले मिलते थे कमीशन
इस नेटवर्क में ज़मीनी स्तर पर काम करने वाली आशा बहुएं, पंचायत सचिव और ग्राम प्रधानों की भूमिका भी सामने आई है। वे गंभीर बीमारियों से पीड़ित लोगों की जानकारी इकट्ठा कर फर्जी अस्पतालों को देते थे और प्रति मरीज ₹2,000 से ₹5,000 तक का कमीशन लेते थे।
मरीजों की हालत और भी खराब: न इलाज मिला, न पैसा, उल्टा बना केस
जिन मरीजों के नाम पर ये ठगी होती है, उन्हें बाद में जब सरकारी योजना के असली लाभ की ज़रूरत पड़ती है, तब पता चलता है कि उनका कार्ड तो पहले ही ‘उपयोग’ हो चुका है। कई मामलों में तो आयुष्मान हेल्थ कार्ड ब्लैकलिस्ट तक हो गए, जिससे उन्हें आगे इलाज भी नहीं मिल पाया।
फर्जी मेडिकल रिकॉर्ड बनाने की फैक्ट्री: लैब रिपोर्ट, MRI तक नकली
जांच में पता चला है कि कुछ निजी डायग्नोस्टिक लैब्स और डॉक्टर्स फर्जी मेडिकल रिपोर्ट बनाते थे जिनमें मरीज को लिवर कैंसर, स्टेज-3 ब्रेन ट्यूमर या हार्ट ब्लॉकेज जैसी गंभीर बीमारियां बताई जाती थीं। इन्हीं कागज़ों के आधार पर फर्जी अस्पताल लाखों रुपये का क्लेम बना लेते थे।
क्लेम में शामिल निजी बीमा एजेंसियां भी शक के घेरे में
आयुष्मान भारत के तहत कई निजी बीमा कंपनियां इलाज का क्लेम प्रोसेस करती हैं। अब सवाल यह उठने लगा है कि क्या कंपनियों ने आंख मूंदकर फर्जी क्लेम पास किए? या कहीं वे भी इस जाल में शामिल थीं? कई कंपनियों से पूछताछ शुरू हो चुकी है और कुछ अधिकारियों को सस्पेंड भी किया गया है।
आम जनता के लिए चेतावनी और सुझाव:
किसी भी अनजान अस्पताल या एजेंट को अपने आयुष्मान कार्ड की जानकारी न दें
इलाज से पहले पोर्टल पर चेक करें कि कार्ड पर क्या-क्या क्लेम हो चुके हैं
मेडिकल रिपोर्ट बनवाने से पहले जांच करें कि लैब रजिस्टर्ड है या नहीं
किसी भी योजना में नाम आने की पुष्टि स्वास्थ्य विभाग या CSC से करें
अपने नजदीकी थाने या जिलाधिकारी कार्यालय में तुरंत सूचना दें
एक और इशारा: सिस्टम के भीतर सिस्टम चल रहा है!
यह मामला सिर्फ फर्जी बीमा क्लेम का नहीं, बल्कि भारत के हेल्थ सेक्टर में छिपे उस काले सच का आइना है जहां बीमारी के नाम पर व्यापार चल रहा है। सरकारी योजनाओं के लाभार्थी अब शिकार बन चुके हैं और फर्जी नेटवर्क मुनाफा कमा रहा है।
जनता को अब केवल इलाज से नहीं, इलाज देने वालों से भी सतर्क रहने की ज़रूरत है।
क्या आप या आपके क्षेत्र में किसी को आयुष्मान भारत योजना के नाम पर ठगा गया है? बताइए हमें — ताकि अगला फ्रॉड रुक सके।
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