मेरठ। उत्तर प्रदेश के हापुड़ स्थित Monad University एक बार फिर देश भर की सुर्खियों में है, इस बार वजह बनी है फर्जी डिग्री और अंकपत्रों का एक बड़ा जाल, जो देश के कई राज्यों तक फैला हुआ है। स्पेशल टास्क फोर्स (STF) की जांच में खुलासा हुआ है कि अब तक एक लाख से अधिक फर्जी डिग्रियां तैयार की जा चुकी हैं, जो छात्रों के भविष्य से भयानक खिलवाड़ है।
बाइक बोट घोटाले से कुख्यात चेयरपर्सन विजेंद्र सिंह फिर विवादों में
घोटाले के इस जाल में फंसा है बाइक बोट स्कैम का चर्चित नाम विजेंद्र सिंह, जो फिलहाल मोनाड यूनिवर्सिटी का चेयरपर्सन भी है। STF ने विजेंद्र के बैंक खातों को खंगालना शुरू कर दिया है और अब तक की कार्रवाई में उसकी बीस से अधिक कंपनियों में करोड़ों की निवेश राशि का पता चला है। अब इन सभी कंपनियों और खातों को फ्रीज़ करने की प्रक्रिया जारी है ताकि इस घोटाले से जुड़े पैसों की हेराफेरी रोकी जा सके।
140 फर्जी दस्तावेजों की बरामदगी ने मचाया हड़कंप
8 नवंबर 2024 को जब कोतवाली पुलिस ने एक कार्रवाई में तीन आरोपियों के पास से 140 फर्जी दस्तावेज बरामद किए, तो पूरा घोटाला उजागर हो गया। इनमें से आठ मार्कशीट मोनाड यूनिवर्सिटी की ही थीं। यह एक बड़ा इशारा था कि फर्जीवाड़ा संस्थागत रूप से चलाया जा रहा था।
देश भर में फैला है फर्जी डिग्रियों का नेटवर्क
पुलिस सूत्रों के अनुसार, इस घोटाले की जड़ें यूपी के बाहर तक फैली हैं। गुजरात समेत कई राज्यों की पुलिस टीमें मोनाड यूनिवर्सिटी में जांच कर चुकी हैं। हाल ही में गुजरात पुलिस की एक टीम कई दिन तक हापुड़ में डेरा डालकर जांच करती रही, जिससे यह स्पष्ट हो गया कि फर्जी डिग्री स्कैम केवल उत्तर प्रदेश का ही नहीं, बल्कि राष्ट्रीय स्तर का मुद्दा बन चुका है।
UGC से मान्यता प्राप्त विवि का ऐसा चेहरा!
यह हैरान करने वाली बात है कि मोनाड यूनिवर्सिटी को UGC से मान्यता प्राप्त है, और यहां हर साल हजारों छात्र विभिन्न कोर्सों में दाखिला लेते हैं। लेकिन छात्रवृत्ति घोटाले के बाद जब विजेंद्र सिंह ने इस विश्वविद्यालय को खरीदा, तब से विश्वविद्यालय की साख पर दाग लगने शुरू हो गए।
6,000 से ज्यादा छात्र, लेकिन शिक्षा के नाम पर फरेब!
फिलहाल यूनिवर्सिटी में फार्मेसी, इंजीनियरिंग, मानविकी, कानून, कृषि जैसे पाठ्यक्रमों में छह हजार से अधिक छात्र पढ़ाई कर रहे हैं। लेकिन एसटीएफ की जांच में अब ये स्पष्ट हो गया है कि इन छात्रों की डिग्रियों की वैधता पर भी सवाल उठ चुके हैं।
एसवीएस कॉलेज भी घेरे में: सर्वर कब्जे में लेने की तैयारी
घोटाले की जड़ें केवल मोनाड यूनिवर्सिटी तक ही सीमित नहीं हैं। जांच में सामने आया है कि मवाना स्थित एसवीएस कॉलेज भी इस रैकेट में शामिल हो सकता है। STF जल्द ही इस कॉलेज का सर्वर भी कब्जे में लेगी और वहां की गतिविधियों की गहन जांच करेगी।
विजेंद्र सिंह की संपत्ति और कंपनियां STF के निशाने पर
एसटीएफ ने अब तक विजेंद्र सिंह की बीस से ज्यादा कंपनियों का डाटा खंगाल लिया है, जिनमें उसने करोड़ों रुपये निवेश किए हैं। इन कंपनियों के खातों को फ्रीज करने के आदेश दिए जा रहे हैं ताकि घोटाले की रकम को इधर-उधर करने से रोका जा सके।
बैंक खातों की निगरानी और लेनदेन पर रोक
जांच एजेंसी की नजर अब मोनाड यूनिवर्सिटी और एसवीएस कॉलेज के बैंक खातों पर भी है, और इन पर किसी भी तरह का लेन-देन अब रोकने की तैयारी है। यह कदम घोटाले की रकम को बचाने और सबूतों को मजबूत करने के लिहाज से बेहद अहम माना जा रहा है।
छात्रों में बढ़ी चिंता, भविष्य पर मंडरा रहा संकट
जैसे-जैसे मामले की परतें खुल रही हैं, वैसे-वैसे यहां पढ़ने वाले छात्रों में गहरी चिंता देखी जा रही है। एक ओर उनकी डिग्रियों की मान्यता पर सवाल उठ चुके हैं, वहीं दूसरी ओर भविष्य में नौकरी और उच्च शिक्षा की संभावनाओं पर भी संकट गहरा गया है।
राजनीतिक और सामाजिक हलकों में हड़कंप
इतने बड़े स्कैम के खुलासे के बाद राजनीतिक गलियारों और सामाजिक संस्थाओं में भी हलचल मची है। कई संगठनों ने इस घोटाले में दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग की है। यह भी सवाल उठ रहे हैं कि आखिर कैसे विजेंद्र सिंह जैसे आरोपी को विश्वविद्यालय का नियंत्रण सौंप दिया गया।
क्या STF ला पाएगी सच्चाई को सामने?
अब निगाहें STF की कार्रवाई पर टिकी हैं, जिसने इस फर्जीवाड़े की तह तक जाने की ठानी है। अगर जांच एजेंसी विजेंद्र सिंह के नेटवर्क को पूरी तरह से उजागर कर पाती है, तो यह भारत में उच्च शिक्षा व्यवस्था की साख को बचाने में एक बड़ी जीत मानी जाएगी।
यह समाचार सोशल मीडिया से प्राप्त जानकारी पर आधारित है, जिसकी सत्यता की पूर्ण जांच आवश्यक है।