
उत्तर प्रदेश के Agra जिले में उभरते हथियार कांड ने न केवल सुरक्षा व्यवस्था पर सवाल खड़े किए हैं, बल्कि पुलिस और एसटीएफ की कार्यप्रणाली को भी कठघरे में खड़ा कर दिया है। अवैध विदेशी हथियारों और फर्जी हथियार लाइसेंस के इस गंभीर मामले में तीन अलग-अलग थानों में मुकदमे दर्ज हैं, लेकिन हफ्ते भर बाद भी न कोई गिरफ्तारी हुई है और न ही कोई हथियार जब्त हो सका है।
जांच की धीमी गति से बढ़ा संदेह, आरोपियों को मिला बचाव का मौका
विवेचना की गति इतनी धीमी है कि इसे कछुआ चाल कहा जा रहा है। आरोपियों को भागने का पूरा अवसर मिल गया है, और इसी वजह से सवाल उठ रहे हैं कि कहीं ये सब किसी ‘सिस्टमेटिक प्रोटेक्शन’ के तहत तो नहीं हो रहा?
पहले दिन ही जांच STF को सौंपी, फिर भी कोई कार्रवाई नहीं
डीजीपी के स्पष्ट निर्देशों के बाद 24 मई को थाना नाई की मंडी में दर्ज पहले केस की जांच एसटीएफ को ट्रांसफर कर दी गई थी। बावजूद इसके, अब तक एक भी गिरफ्तारी नहीं हो सकी। यहां एसटीएफ निरीक्षक यतेंद्र शर्मा की तहरीर पर मामला दर्ज किया गया था, जिसमें सात आरोपियों को नामजद किया गया — मोहम्मद जैद खान, मोहम्मद अरशद खान, राजेश कुमार बघेल, भूपेंद्र सारस्वत, शिवकुमार सारस्वत, शोभित चतुर्वेदी और सेवानिवृत्त एएलसी प्रथम संजय कपूर।
शोभित चतुर्वेदी: सफेदपोशों से लेकर पुलिस तक संबंधों वाला आरोपी
इस पूरे मामले में शोभित चतुर्वेदी नाम सबसे ज्यादा चर्चित है। उसके पुलिसकर्मियों और राजनैतिक हस्तियों से संबंधों के चलते शिकायतकर्ता लगातार आरोप लगा रहे हैं कि जांच में जानबूझकर लापरवाही बरती जा रही है।
सिकंदरा थाने में हत्या की साजिश का आरोप, अपराधी को दी गई थी सुपारी
28 मई को थाना सिकंदरा में दर्ज दूसरे मुकदमे ने इस मामले को और भी खतरनाक बना दिया। यहां भूपेंद्र सारस्वत, अमित, सोनू गौतम और शोभित चतुर्वेदी को नामजद किया गया। विशाल भारद्वाज नामक शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया कि कुख्यात अपराधी सोनू गौतम को 20 लाख रुपये की सुपारी दी गई थी।
भाजपा नेता की तहरीर पर तीसरा मुकदमा: अवैध पिस्टल की बिक्री का आरोप
तीसरा मामला 30 मई को थाना जगदीशपुरा में दर्ज किया गया। यहां भाजपा के पूर्व जिलाध्यक्ष श्याम भदौरिया ने तहरीर दी कि भूपेंद्र के पिता शिवकुमार सारस्वत ने उन्हें एक पिस्टल बेची थी, जिसके वैध दस्तावेज नहीं दिए गए। उन्होंने आशंका जताई कि पिस्टल अवैध है।
जांच में पुलिसकर्मियों की मिलीभगत के गंभीर आरोप
इस पूरे घटनाक्रम में पुलिस पर गंभीर आरोप लग रहे हैं कि वह आरोपियों को बचाने में लगी है। खासतौर से शोभित चतुर्वेदी और भूपेंद्र सारस्वत जैसे नामों की पहुंच बहुत ऊपर तक है, और यही वजह है कि गिरफ्तारी और हथियार जब्ती जैसी मूल कार्रवाई भी नहीं हो सकी है।
हथियार जब्त क्यों नहीं हुए?
इतने बड़े केस में अभी तक एक भी हथियार जब्त नहीं किया गया है। यहां तक कि जिन हथियारों को अवैध बताया गया है, वे अब भी आरोपियों के पास हैं। लाइसेंस तक निरस्त नहीं कराए गए हैं, जो कि एक सामान्य प्रक्रिया होती है।
पुलिस की छवि पर बट्टा, जनता में बढ़ रहा रोष
जनता में इस पूरे मामले को लेकर काफी रोष है। लोग सोशल मीडिया से लेकर जनप्रतिनिधियों तक से सवाल कर रहे हैं कि आखिर इन रसूखदार आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं हो रही?
क्या यह जांच ‘सिस्टम के भीतर’ दबा दी जाएगी?
जब एक सप्ताह में कोई गिरफ्तारी न हो, जब आरोपी खुलेआम घूम रहे हों और जब पीड़ितों की शिकायतें नजरअंदाज हो रही हों — तो यह तय मानिए कि मामला कहीं न कहीं ‘सिस्टम के भीतर’ ही दम तोड़ता नजर आ रहा है।
क्या कह रहे हैं विशेषज्ञ?
अपराध विशेषज्ञों का कहना है कि जब फर्जी हथियार लाइसेंस और विदेशी हथियारों की तस्करी जैसे गंभीर मामलों में भी कार्रवाई इतनी धीमी हो, तो यह न केवल कानून व्यवस्था पर सवाल खड़ा करता है, बल्कि सुरक्षा तंत्र की विश्वसनीयता पर भी आघात पहुंचाता है।
पुलिस की भूमिका बनी संदेहास्पद, एसटीएफ की निष्क्रियता पर सवाल
एसटीएफ जैसी विशेष जांच एजेंसी की निष्क्रियता भी इस केस में सवालों के घेरे में है। आखिर किस दबाव में एजेंसी हाथ पर हाथ धरे बैठी है?
निष्क्रियता की इस तस्वीर ने पूरे मामले को रहस्यमय और गंभीर बना दिया है। पुलिस की चुप्पी, आरोपियों की पहुंच और धीमी जांच ने इस अवैध हथियार कांड को एक राजनीतिक और प्रशासनिक साज़िश का रूप दे दिया है। जनता अब जवाब मांग रही है – क्या यह मामला भी बाकी मामलों की तरह ठंडे बस्ते में चला जाएगा, या फिर कभी इन्साफ भी मिलेगा?