ऑल इंडिया मुस्लिम जमात के राष्ट्रीय अध्यक्ष Maulana Shahabuddin Razvi Bareilvi ने घोषणा की है कि बकरीद यानी ईद-उल-अज़हा इस साल 7 जून 2025 को मनाई जाएगी। उसी दिन देशभर में बकरीद की नमाज अदा की जाएगी और परंपरागत रूप से कुर्बानी दी जाएगी। इस्लामी कैलेंडर के अनुसार यह पर्व हर साल ज़िल-हिज्जा माह की 10वीं तारीख को आता है।
त्योहार के खिलाफ बयानबाज़ी पर भड़के मौलाना रजवी
मौलाना रजवी ने कुछ राजनेताओं और धार्मिक हस्तियों के बयान पर तीखी प्रतिक्रिया दी है जिन्होंने बकरीद पर कुर्बानी रोकने की मांग की थी। हैदराबाद के विधायक टी. राजा, मुंबई के नितेश राणे, गाजियाबाद के विधायक नंद किशोर गुर्जर और स्वामी रामभद्राचार्य जैसे नेताओं के बयानों पर मौलाना ने कहा कि “ऐसी मांग करने वाले सांप्रदायिक मानसिकता से ग्रसित हैं।” उन्होंने साफ शब्दों में कहा कि यह 1450 वर्षों से मनाया जा रहा पर्व है और इसे कोई नया त्योहार नहीं समझना चाहिए।
‘कुर्बानी इस्लाम का अहम हिस्सा, मुसलमान इसे नहीं छोड़ सकते’
मौलाना ने कहा, “कुर्बानी इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा है। यह त्याग और समर्पण की भावना का प्रतीक है। कोई भी मुसलमान इसे नहीं छोड़ सकता।” इसके साथ ही उन्होंने सभी मुसलमानों से संयम बरतने और कानून का पालन करने की भी अपील की।
मौलाना रजवी की अपील: ‘धार्मिक सौहार्द बनाए रखें, खुले में न करें कुर्बानी’
मौलाना रजवी ने देश के तमाम मुसलमानों से अपील करते हुए कहा कि वे प्रतिबंधित पशुओं की कुर्बानी न करें और दूसरे धर्मों की भावनाओं का सम्मान करें। उन्होंने आगे कहा:
खुले में कुर्बानी न करें, बंद स्थानों पर ही करें।
जानवरों के अवशेषों को उचित तरीके से जमीन में दफन करें।
सड़क और गलियों में कुर्बानी न करें, इससे सार्वजनिक असुविधा होती है।
“धर्म की आड़ में राजनीति बंद होनी चाहिए।” उन्होंने चेतावनी दी कि कुछ लोग इस मुद्दे को हवा देकर सांप्रदायिक तनाव फैलाना चाहते हैं, जिसे देश का मुसलमान किसी कीमत पर बर्दाश्त नहीं करेगा।
इतिहास और महत्व: कुर्बानी का त्योहार क्यों है खास?
ईद-उल-अज़हा की परंपरा का सीधा संबंध हजरत इब्राहीम (अलैहिस्सलाम) से जुड़ा है, जिन्होंने अपने बेटे हजरत इस्माईल की कुर्बानी देने की तैयारी की थी। यह पर्व त्याग, समर्पण और अल्लाह के हुक्म की तामीर का प्रतीक है। यही कारण है कि इस्लामी दुनिया में इस पर्व को अत्यंत श्रद्धा और भक्ति से मनाया जाता है।
बकरीद पर बवाल क्यों? कौन हैं विरोध के सुर में बोलने वाले?
हर साल की तरह इस साल भी कुछ नेताओं ने कुर्बानी पर रोक लगाने की मांग कर राजनीति को गरमा दिया है। इनमें से कुछ प्रमुख नाम हैं:
टी. राजा सिंह (विधायक, हैदराबाद): हमेशा से विवादित बयानों के लिए चर्चित।
नितेश राणे (विधायक, मुंबई): खुले मंच से पशु कुर्बानी का विरोध।
नंद किशोर गुर्जर (विधायक, गाजियाबाद): सामाजिक सौहार्द के नाम पर प्रतिबंध की वकालत।
स्वामी रामभद्राचार्य: धार्मिक आस्थाओं के नाम पर विरोध दर्ज किया।
इन सभी नेताओं की मांग है कि जन भावनाओं को देखते हुए कुर्बानी पर प्रतिबंध लगे, जबकि मुस्लिम संगठनों का कहना है कि यह एक धार्मिक स्वतंत्रता का मसला है और इसमें हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए।
धार्मिक स्वतंत्रता बनाम राजनीतिक बयानबाज़ी: संवैधानिक अधिकार पर बहस
भारत का संविधान सभी नागरिकों को धर्म की आज़ादी और उसके पालन की स्वतंत्रता देता है। ऐसे में कुर्बानी पर रोक लगाने की मांग संविधान के मूल अधिकारों का उल्लंघन मानी जा सकती है। मौलाना रजवी ने कहा, “धार्मिक स्वतंत्रता पर हमला करने वाले देश के मूल ढांचे को कमजोर करना चाहते हैं।”
सरकार की चुप्पी और प्रशासन की जिम्मेदारी
इस पूरे विवाद पर अभी तक केंद्र या राज्य सरकार की ओर से कोई स्पष्ट बयान नहीं आया है। हालांकि, स्थानीय प्रशासन और पुलिस को त्योहार के दौरान शांति व्यवस्था बनाए रखने के निर्देश दिए गए हैं।
समाज की भूमिका: धार्मिक सहिष्णुता ही भारत की असली ताकत
भारत एक विविधताओं से भरा देश है, जहां हर धर्म और समुदाय के लोगों को अपने रीति-रिवाज निभाने की स्वतंत्रता है। ऐसे में आपसी सम्मान और सौहार्द बनाए रखना सबसे बड़ा कर्तव्य है। त्योहारों पर राजनीति करने की बजाय समाज को एक-दूसरे की भावनाओं को समझने की आवश्यकता है।
ईद-उल-अज़हा के त्योहार पर निगाहें: क्या फिर गरमाएगी सियासत या बढ़ेगा भाईचारा?
त्योहार के नजदीक आते ही देश भर में प्रशासन सक्रिय हो गया है। त्योहार पर किसी तरह का अव्यवस्था या सांप्रदायिक तनाव ना हो, इसके लिए खास निर्देश जारी किए जा रहे हैं। लोगों से भी अपील की गई है कि सोशल मीडिया पर भड़काऊ पोस्ट साझा न करें और किसी अफवाह पर ध्यान न दें।
बकरीद सिर्फ एक त्योहार नहीं, बल्कि यह समर्पण, इंसानियत और परंपरा की मिसाल है। मौलाना रजवी के बयान ने जहां मुसलमानों को आत्मनिरीक्षण का मौका दिया है, वहीं उन लोगों को भी एक सख्त संदेश मिला है जो धर्म के नाम पर देश को बांटना चाहते हैं। इस बार बकरीद पर सभी की निगाहें रहेंगी—क्या होगा भाईचारे का बोलबाला या फिर सियासत की चिंगारी?