भारत में इंटरनेट कनेक्टिविटी को नई ऊंचाइयों तक ले जाने की तैयारी हो चुकी है। अमेज़ॅन अपनी सैटेलाइट इंटरनेट सर्विस, प्रोजेक्ट कुइपर के साथ भारतीय बाजार में प्रवेश करने वाली है। माना जा रहा है कि कंपनी अगले साल से यहां अपनी शुरुआत कर सकती है। इस कदम के बाद भारत में सैटेलाइट इंटरनेट का मुकाबला और भी दिलचस्प हो जाएगा, क्योंकि पहले से ही स्टारलिंक, वनवेब और जियो सैटेलाइट जैसे खिलाड़ी सक्रिय हैं।
अमेज़ॅन की तैयारियों में अभी थोड़ा समय लगेगा। कंपनी के पास अभी तक भारत में कमर्शियल सर्विस को लॉन्च करने के लिए सैटेलाइट नेटवर्क नहीं है। इसके साथ भारतीय सरकार की सिक्योरिटी और लाइसेंसिंग शर्तों को पूरा करना भी एक बड़ी चुनौती है। अमेज़ॅन फिलहाल सरकार के साथ कम्प्लायंस और लाइसेंसिंग मुद्दों पर चर्चा कर रही है। भारत में डेटा को लोकली स्टोर करने जैसी शर्तों पर भी कंपनी विचार कर रही है। अक्टूबर 2023 में कंपनी ने GMPCS (Global Mobile Personal Communication by Satellite) लाइसेंस के लिए अप्लाई किया था और IN-SPACe से भी परमिशन मांगी है।
भारत सरकार ने अभी तक तीन कंपनियों को सैटेलाइट कम्युनिकेशन सर्विस शुरू करने की परमिशन दी है, जिनमें वनवेब, जियो-SES जॉइंट वेंचर और एलन मस्क का स्टारलिंक शामिल हैं। हालांकि, ग्राहकों को सर्विस तब मिलेगी जब सरकार स्पेक्ट्रम आवंटित करेगी और प्राइस तय होगा। रिपोर्ट के मुताबिक, भारत का सैटेलाइट कम्युनिकेशन सेक्टर 2028 तक 20 बिलियन डॉलर तक पहुंच सकता है। ऐसे में यह बाजार इतना बड़ा है कि इसमें कई कंपनियों के लिए जगह है। मई 2024 में TRAI ने सुझाव दिया था कि सैटेलाइट कंपनियों को अपने AGR (Adjusted Gross Revenue) का 4 प्रतिशत सरकार को स्पेक्ट्रम चार्ज के रूप में देना होगा। इसके साथ शहरी ग्राहकों से प्रति यूजर 500 रुपये का एक्स्ट्रा ईयरली चार्ज भी लिया जा सकता है। अमेज़ॅन ने इस प्रोजेक्ट में अब तक 10 अरब डॉलर से ज्यादा का निवेश करने का वादा किया है। अभी तक 100 से ज्यादा सैटेलाइट ऑर्बिट में भेजे जा चुके हैं। कंपनी का प्लान है कि करीब 3,200 सैटेलाइट्स का एक बड़ा नेटवर्क बनाया जाए। कंपनी का लक्ष्य है कि साल के अंत तक कुछ देशों में सर्विस शुरू करने के लिए सैटेलाइट तैयार हो जाएं। तुलना करें तो स्टारलिंक के पास 6,700 से ज्यादा सैटेलाइट हैं, जबकि वनवेब के पास 648 सैटेलाइट हैं।