
सऊदी अरब द्वारा काबुल और इस्लामाबाद के बीच संघर्ष विराम कराने के प्रयासों के बावजूद, अफगानिस्तान से जुड़ी एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, रियाद में हुई बातचीत एक बार फिर विफल हो गई है। अफगानिस्तान इंटरनेशनल के सूत्रों के हवाले से मिली जानकारी के अनुसार, एक तालिबान प्रतिनिधिमंडल पाकिस्तानी अधिकारियों के साथ वार्ता के लिए सऊदी अरब पहुंचा था, लेकिन यह बैठक किसी भी सार्थक परिणाम तक नहीं पहुँच सकी और अंततः विफल रही।
हालांकि, इस नवीनतम बातचीत के नतीजों पर दोनों देशों की ओर से कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं की गई है। इससे पहले भी, तुर्की और कतर की मध्यस्थता में अफगानिस्तान और पाकिस्तान के वार्ता दलों ने एक स्थायी शांति समझौते पर पहुंचने की कोशिश की थी, लेकिन वे भी कोई आम सहमति बनाने में नाकाम रहे थे।
दोनों देशों के बीच एक अस्थिर सीमा है, जहाँ पिछले एक महीने से अधिक समय से भारी झड़पें हो रही हैं। इस्लामाबाद का आरोप है कि अफगान तालिबान शासन ऐसे तत्वों को शरण दे रहा है जो पाकिस्तान के लिए खतरा हैं और देश के भीतर घातक हमले कर रहे हैं। वहीं, काबुल इन आरोपों से इनकार करता रहा है और इस्लामाबाद पर अफगान शरणार्थियों को जबरन पाकिस्तान से खदेड़ने का आरोप लगाता है, जिससे पहले से ही आर्थिक और ढांचागत समस्याओं से जूझ रहे अफगानिस्तान पर दबाव बढ़ रहा है।
पहले की वार्ताओं में, 18-19 अक्टूबर को दोहा में हुई प्रारंभिक बैठक में दोनों देशों के बीच एक अस्थायी संघर्ष विराम पर सहमति बनी थी। हालांकि, इस्तांबुल में बाद में हुई दो बैठकों में स्थायी शांति के तौर-तरीकों पर आम सहमति नहीं बन पाई थी।
अफगानिस्तान के तोलो न्यूज के अनुसार, विवादास्पद डूरंड लाइन सीमा 47 दिनों से व्यापार के लिए बंद है। दोनों देशों के बीच चल रहे तनाव के कारण, न तो रास्ते खुलने की उम्मीद है और न ही रुके हुए माल की रिहाई की। अफगानिस्तान के अर्थव्यवस्था मंत्रालय ने पड़ोसी देशों से राजनीतिक मुद्दों को व्यापार और आर्थिक संबंधों से अलग रखने का आग्रह किया है, यह कहते हुए कि सीमा पारगमन का बंद होना दोनों पक्षों के लिए गंभीर आर्थिक नुकसान पहुंचा सकता है। पाकिस्तान-अफगानिस्तान संयुक्त चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री ने भी व्यापारियों के भारी नुकसान की चिंता व्यक्त की है।





