एक गुप्त रिपोर्ट ने चीन और पाकिस्तान में हड़कंप मचा दिया है। ऑस्ट्रेलिया के नेशनल सिक्योरिटी कॉलेज द्वारा जारी 87 पन्नों की इस रिपोर्ट ने चीनी वायु रक्षा प्रणालियों की असलियत उजागर कर दी है। सैन्य विशेषज्ञों ने इसे ‘दशक का सबसे बड़ा रक्षा घोटाला’ करार दिया है, जिसमें भारत की मिसाइलों ने वो कर दिखाया जो अमेरिका और रूस भी असंभव मानते थे।

यह राज़ खुल गया है कि चीन की ‘विश्व स्तरीय’ वायु रक्षा प्रणालियाँ ‘ऑपरेशन सिंधूर’ के दौरान भारतीय मिसाइलों को रोकने में पूरी तरह विफल रहीं। वह तकनीक, जिसे बीजिंग ने पाकिस्तान को ‘अभेद्य’ बताकर बेचा था, भारतीय मिसाइलों के सामने कबाड़ साबित हुई। इस रिपोर्ट को हर भारतीय को गर्व से पढ़ना चाहिए।
**87 पन्नों की रिपोर्ट जिसने चीनी प्रतिष्ठा को तोड़ा**
ऑस्ट्रेलिया के नेशनल सिक्योरिटी कॉलेज ने ‘Air and Missile Warfare in the 2025 Subcontinental Conflict: Observations and Consequences’ नामक एक वर्गीकृत रिपोर्ट प्रकाशित की है। इसमें चीन की YL-8E काउंटर-स्टील्थ रडार, HQ-16FE और HQ-9BE मिसाइल प्रणालियों की विफलता का खुलासा हुआ है। ये वही सिस्टम हैं जिन्हें चीन ने वैश्विक स्तर पर ‘सबसे सक्षम’ बताकर बेचा था।
पाकिस्तान ने 2021 से 2024 के बीच चीन से ये उन्नत रडार और मिसाइल सिस्टम खरीदे थे। चीन के दावों के विपरीत, ये सिस्टम भारतीय राफेल जेट और ब्रह्मोस-ए मिसाइलों का पता लगाने और उन्हें बेअसर करने में पूरी तरह विफल रहे। रिपोर्ट के निष्कर्ष बताते हैं कि ये क्षमताएं अत्यधिक बढ़ा-चढ़ाकर बताई गई थीं और वास्तविक युद्ध की परिस्थितियों में ये सिस्टम काम नहीं आए।
**ऑपरेशन सिंधूर: जब भारतीय मिसाइलों ने चीनी तकनीक का मज़ाक उड़ाया**
7 मई, 2025 को शुरू हुए 4 दिवसीय संघर्ष के दौरान, भारतीय वायु सेना और नौसेना के राफेल (SCALP मिसाइलों से लैस) और Su-30MKI (ब्रह्मोस-ए के साथ) ने पाकिस्तानी हवाई क्षेत्र में “अपेक्षित आसानी” से प्रवेश किया। एक भी भारतीय क्रूज मिसाइल को इंटरसेप्ट नहीं किया जा सका।
पाकिस्तान के चीनी-निर्मित सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल (SAM) HQ-9BE और HQ-16FE सिस्टम, जो नूर खान, सरगोधा और जैकोबाबाद जैसे महत्वपूर्ण हवाई अड्डों की रक्षा के लिए तैनात थे, भारतीय क्रूज मिसाइलों को रोकने में पूरी तरह नाकाम रहे। पाकिस्तान ने चीन से जो ‘अभेद्य ढाल’ खरीदी थी, वह वास्तव में अदृश्य साबित हुई क्योंकि उसने कुछ भी नहीं किया।
इससे भी बदतर, YL-8E रडार ने पहाड़ी और समुद्री इलाकों में इतने झूठे सिग्नल उत्पन्न किए कि पाकिस्तानी ऑपरेटरों ने वास्तविक खतरों के बजाय नकली लक्ष्यों और डिकॉय पर मिसाइलें दागीं। चीन की ‘उन्नत’ तकनीक एक ब्रह्मोस मिसाइल और एक छाया के बीच अंतर नहीं बता पाई।
**चीनी मिसाइलें भी साबित हुईं बेकार**
पाकिस्तान के JF-17 ब्लॉक-III लड़ाकू विमानों से दागी गई चीन की CM-400 मिसाइलें या तो अपने लक्ष्य से पूरी तरह चूक गईं या भारतीय इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर सिस्टम और बराक-8 इंटरसेप्टर्स द्वारा रोक दी गईं। बहुप्रचारित चीनी एयर-टू-सरफेस मिसाइलें अपने इच्छित लक्ष्यों तक पहुँचने में भी विफल रहीं।
वहीं, भारतीय हारोप लोइटरिंग मूनिशंस (आत्मघाती ड्रोन) ने जमीन पर ही कम से कम दो HQ-9BE लॉन्चरों को नष्ट कर दिया, क्योंकि उन्हें तेजी से स्थानांतरित नहीं किया जा सका। इसने सिस्टम की धीमी तैनाती क्षमता को उजागर किया।
**निष्कर्ष: चीनी तकनीक एक ‘पेपर टाइगर’ है**
ऑस्ट्रेलिया की रिपोर्ट इस बात की पुष्टि करती है जो भारत ने युद्ध के मैदान में साबित किया है: चीनी वायु रक्षा प्रणालियाँ अतिरंजित, निम्न-प्रदर्शन वाली विफलताएं हैं जो आधुनिक भारतीय हथियारों को नहीं रोक सकतीं। पाकिस्तान ने अरबों डॉलर के चीनी उपकरण खरीदे जो वास्तविक युद्ध में परीक्षण के दौरान बेकार साबित हुए।






