चीन ने अणु ऊर्जा के क्षेत्र में एक अभूतपूर्व उपलब्धि हासिल की है। वर्षों की कड़ी मेहनत के बाद, चीनी वैज्ञानिकों ने थोरियम को यूरेनियम में परिवर्तित करने में सफलता प्राप्त की है, जिससे एक विशाल और लगभग असीमित ऊर्जा स्रोत का द्वार खुल गया है। यह तकनीक, जिसे अमेरिका ने दशकों पहले छोड़ दिया था, अब चीन की ऊर्जा भविष्य की नींव बन रही है।
शंघाई इंस्टीट्यूट ऑफ एप्लाइड फिजिक्स द्वारा गोबी रेगिस्तान में स्थापित दो-मेगावाट थोरियम मोल्टेन सॉल्ट रिएक्टर (TMSR) ने यह साबित कर दिया है कि थोरियम एक स्थिर और व्यवहार्य परमाणु ईंधन के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। यह परियोजना 2011 में शुरू हुई थी और यह उस अमेरिकी अनुसंधान पर आधारित है जो 1960 के दशक में अधूरा छोड़ दिया गया था। चीन के मुख्य वैज्ञानिक, जू होंगजिया ने कहा कि अमेरिका ने अपना शोध सार्वजनिक रूप से उपलब्ध कराया था, और चीन उसका ‘उचित उत्तराधिकारी’ साबित हुआ है।
चीनी टीम ने डीक्लासिफाइड अमेरिकी दस्तावेजों का अध्ययन करके इस उपलब्धि को हासिल किया है। अब वे 10-मेगावाट के अधिक शक्तिशाली रिएक्टर पर काम कर रहे हैं, जो व्यावसायिक पैमाने पर बिजली उत्पादन में सक्षम होगा। पारंपरिक परमाणु संयंत्रों के विपरीत, TMSR को शीतलन के लिए बड़ी मात्रा में पानी की आवश्यकता नहीं होती है, जो इसे चीन के शुष्क क्षेत्रों के लिए आदर्श बनाता है।
यह सफलता स्वच्छ ऊर्जा के भविष्य के लिए महत्वपूर्ण है। यूरेनियम, जो पारंपरिक रूप से परमाणु ऊर्जा का आधार रहा है, दुर्लभ, विषाक्त और खनन में महंगा है। इसके विपरीत, थोरियम पृथ्वी की पपड़ी में प्रचुर मात्रा में पाया जाता है, कम रेडियोधर्मी होता है, और कम मात्रा में लंबे समय तक रहने वाला रेडियोधर्मी कचरा उत्पन्न करता है।
चीन के लिए, यह केवल एक तकनीकी जीत नहीं है, बल्कि सतत और आत्मनिर्भर ऊर्जा भविष्य की ओर एक बड़ी छलांग है। यह परियोजना इस बात का प्रतीक है कि कैसे एक भूला हुआ अमेरिकी नवाचार अब चीन में पुनर्जीवित हुआ है और वैश्विक ऊर्जा परिदृश्य को हमेशा के लिए बदलने की क्षमता रखता है।





