रूस-यूक्रेन युद्ध ने वैश्विक सैन्य रणनीतियों को हिलाकर रख दिया है, और यूरोप के देश सदियों पुरानी रक्षा प्रणालियों को फिर से अपना रहे हैं। रूस की सीमाओं से लगे देशों में गश्तें बढ़ाई जा रही हैं, नाटो-शैली की सेनाओं को मजबूत किया जा रहा है, और अपने इलाकों को सुरक्षित करने के लिए असाधारण कदम उठाए जा रहे हैं। फिनलैंड और पोलैंड इस दिशा में सबसे आगे हैं, जो प्राकृतिक और आजमाए हुए अवरोधक, यानी ‘पीटलैंड्स’ (दलदली भूमि) का सहारा ले रहे हैं।
लगभग तीन साल पहले, यूक्रेन ने दुनिया को चौंका दिया था। कीव ने राजधानी के उत्तर में एक बांध तोड़ दिया, जिससे सैकड़ों गांव जलमग्न हो गए। इसका मकसद ऐसा दलदली इलाका बनाना था जिसे रूसी सेना पार न कर सके। ‘पीटलैंड रक्षा प्रणाली’ के नाम से जानी जाने वाली यह सदियों पुरानी रणनीति नदियों और आर्द्रभूमियों को घातक बाधाओं में बदल देती है।
अब, फिनलैंड और पोलैंड इसी रणनीति को अपना रहे हैं। दोनों देशों की रूस के साथ लंबी जमीनी सीमाएं हैं, और आक्रमण का डर उन्हें अपनी भूमि को मजबूत करने के लिए प्रेरित कर रहा है। फिनलैंड को अकेले 1,500 किलोमीटर लंबी सीमा की रखवाली करनी है। पीटलैंड रक्षा प्रणाली सरल लेकिन प्रभावी है। संतृप्त मिट्टी और वनस्पति ऐसे ज़मीन का निर्माण करते हैं जिस पर पैदल सेना, वाहन और तोपखाने का चलना लगभग असंभव होता है। भारत में भी प्राचीन काल में राजा अपने किलों के आसपास की ज़मीनों को इसी तरह जलमग्न करके रक्षा करते थे।
इतिहास पीटलैंड्स की शक्ति साबित कर चुका है। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, उत्तरी और पूर्वी यूरोप के दलदली इलाके, विशेष रूप से फिनलैंड, पोलैंड और सोवियत क्षेत्रों में, सेनाओं को रोक दिया था। 1941 में ऑपरेशन बारबरोसा के तहत यूएसएसआर पर आगे बढ़ने वाले जर्मन सैनिकों को बेलारूस और उत्तर-पश्चिमी रूस के गहरे और अस्थिर दलदल से गुजरने में भारी कठिनाई हुई थी। टैंक डूब गए, तोपें कीचड़ में फंस गईं, सैनिकों को मीलों तक कीचड़ में मार्च करना पड़ा और रसद व्यवस्था ध्वस्त हो गई। इन दलदली इलाकों ने बिना एक गोली चलाए युद्ध का रुख मोड़ दिया था।
पीटलैंड्स सदियों में स्वाभाविक रूप से बनते हैं। मृत पौधे, फंसा हुआ पानी और ऑक्सीजन की कमी धीरे-धीरे मोटी और स्पंजी परतें बनाती हैं। अब आधुनिक वैज्ञानिक इस धीमी प्राकृतिक प्रक्रिया को कृत्रिम रूप से फिर से बनाने का प्रयास कर रहे हैं। जर्मनी, फिनलैंड, स्कॉटलैंड और इंडोनेशिया सहित कई देश पीटलैंड बहाली परियोजनाओं पर काम कर रहे हैं। बांध, मिट्टी की सिंचाई और विशेष वनस्पति पुराने या सूखे दलदलों को पुनर्जीवित करने में मदद करते हैं। ये परियोजनाएं कार्बन को कैप्चर करने, बाढ़ के जोखिम को कम करने और पानी को संरक्षित करने का भी काम करती हैं, जिससे रणनीतिक और पर्यावरणीय दोनों तरह के लाभ मिलते हैं।
18वीं और 19वीं शताब्दी में यूरोप ने खेती और शहरों के लिए कई पीटलैंड्स को सुखा दिया था, जिससे उपजाऊ मिट्टी तो बनी लेकिन पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान पहुंचा। इसके बाद तापमान बढ़ने लगा और ज़मीन सूखी पड़ने लगी। अब फिनलैंड और पोलैंड इस सदियों पुरानी प्रक्रिया को उलट रहे हैं, रूस और बेलारूस के साथ अपनी सीमाओं पर आर्द्रभूमियों को पुनर्जीवित करके प्राकृतिक और रक्षात्मक परिदृश्य बना रहे हैं।
फिनलैंड में, विशेषज्ञ पूर्वी सीमा के उन क्षेत्रों का नक्शा बना रहे हैं जहां सूखी मिट्टी को फिर से जलमग्न करके नए पीटलैंड बनाए जा सकते हैं। पोलैंड बेलारूस और रूस के साथ अपनी पूर्वी सीमा पर ध्यान केंद्रित कर रहा है, आने वाले दशकों में यथासंभव अधिक से अधिक दलदली भूमि को बहाल करने के लक्ष्य के साथ रक्षा को मजबूत कर रहा है।
यह पहल दोहरे उद्देश्य को पूरा करती है: संभावित आक्रामकता के खिलाफ सीमाओं को सुरक्षित करना और जलवायु परिवर्तन से लड़ना। पुनर्जीवित पीटलैंड कार्बन को फंसाते हैं, पानी जमा करते हैं और ऐसा इलाका बनाते हैं जिस पर कोई भी पारंपरिक सैन्य मशीनरी आसानी से पार नहीं पा सकती।
यूरोप की नई-पुरानी रक्षा प्रणाली चुपचाप आकार ले रही है, यह साबित करते हुए कि 21वीं सदी में भी प्राकृतिक परिदृश्य में अपार रणनीतिक शक्ति निहित है।






