इतिहास के पन्नों में दर्ज कई हत्याओं में, ग्रिगरी रासपुतिन की मौत सबसे ज्यादा रहस्यमयी और चर्चित रही है। वह एक ऐसा रहस्यमयी बाबा था जिसका रूस के रोमनोव शाही परिवार पर गहरा प्रभाव था। भले ही आधुनिक ऑटोप्सी रिपोर्ट सिर में गोली लगने से हुई त्वरित मौत का संकेत देती हैं, लेकिन उसके साजिशकर्ताओं के प्रत्यक्षदर्शी बयानों में ‘पागल साधु’ को मारने के एक लंबे, हताश और लगभग अलौकिक संघर्ष का वर्णन है।

दिसंबर 1916 की रात, सेंट पीटर्सबर्ग के मोइका पैलेस में, राजकुमार फेलिक्स युसुपोव के नेतृत्व में कुछ डरे हुए रईसों ने रासपुतिन को अपने षड्यंत्र को अंजाम देने के लिए आमंत्रित किया।
**कहानी और ऑटोप्सी: एक तुलना**
रासपुतिन की मृत्यु की वास्तविक घटनाओं का क्रम काफी हद तक उसके मुख्य हत्यारे की नाटकीय यादों के कारण किंवदंती बन गया था।
* **ऑटोप्सी के निष्कर्ष:** छोटी कहानियों के अनुसार, रासपुतिन को तीन गोलियां लगीं और वह तुरंत मर गया।
* **साजिशकर्ताओं का बयान (किंवदंती):** हत्यारों के अनुसार, यह एक बहु-चरणीय, लगभग असफल हत्या थी।
**ज़हर का असफल प्रयास और पहली गोली**
राजकुमार फेलिक्स युसुपोव के अनुसार, रासपुतिन को ज़हर देने का पहला प्रयास बुरी तरह विफल रहा।
* **सायनाइड की विफलता:** सबसे पहले, रासपुतिन को चाय और उसके पसंदीदा केक दिए गए, जिनमें भारी मात्रा में सायनाइड मिलाया गया था। लेकिन उसे कोई परेशानी नहीं हुई।
* **ज़हरीली शराब:** इसके बाद उसने सायनाइड से लबालब भरे तीन गिलास वाइन पी, फिर भी वह नहीं हिला, जिससे उसके हत्यारे ‘हैरान’ रह गए।
* **पहली गोली:** सुबह 2:30 बजे के बाद, युसुपोव ने कथित तौर पर रिवॉल्वर निकाली, साधु से “प्रार्थना करने” को कहा और उसे सीने में गोली मार दी। वह और उसके साथी यह मानकर भाग गए कि वह चमत्कारी व्यक्ति मर चुका है।
**रासपुतिन का ‘पुनरुत्थान’ और अंतिम क्षण**
हत्या का नाटकीय अंत तब हुआ जब युसुपोव शरीर की जांच करने लौटा।
* **हमला:** युसुपोव तहखाने में लौटा तो उसने देखा कि रासपुतिन की पलकें फड़क रही हैं। रहस्यमयी बाबा अचानक गुर्राते हुए “जानवर की तरह” उठा और युसुपोव पर हमला कर दिया, राजकुमार की गर्दन पकड़ ली।
* **पीछा:** इसके बाद, रासपुतिन सीढ़ियों से बाहर आंगन की ओर भागा, जिसका पीछा उसके हत्यारे कर रहे थे, जिनमें से एक ड्यूमा डिप्टी व्लादिमीर पुरिश्केविच भी था।
* **अंतिम गोलियां:** पुरिश्केविच ने दो और गोलियां चलाईं, जिनमें से एक आखिरकार रासपुतिन के सिर में लगी, जिससे वह गिर गया।
* **मृत्यु का असली कारण:** अंत में, साजिशकर्ताओं ने भारी कालीनों में लपेटा, जंजीरों से बांधा और बर्फीली नेवा नदी में फेंक दिया। अंततः हाइपोथर्मिया (अत्यधिक ठंड) ही मौत का कारण बना।
**सत्ता में उदय: पागल साधु और रोमनोव**
रासपुतिन साइबेरिया का एक किसान था जिसने कभी कोई धार्मिक दीक्षा नहीं ली, लेकिन अपनी कथित रहस्यमयी शक्तियों के कारण वह सेंट पीटर्सबर्ग के उच्च वर्ग में तेजी से ऊपर उठा।
* **रोमनोव से जुड़ाव:** उसने अपने संपर्कों का इस्तेमाल करके ज़ार निकोलस द्वितीय और ज़ारिना एलेक्जेंड्रा से मुलाकात की।
* **उत्तराधिकारी की बीमारी:** जर्मन मूल की ज़ारिना अपने बेटे एलेक्सी की गंभीर हीमोफिलिया से परेशान थी और वह हताशा में इलाज की तलाश कर रही थी।
* **अपरिहार्य साधु:** रासपुतिन ने अज्ञात तरीकों – विश्वास-उपचार या लोक चिकित्सा – से एलेक्सी के लक्षणों को नियंत्रित करने में कामयाबी हासिल की, जिससे वह शासक परिवार के लिए अपरिहार्य हो गया।
* **राजनीतिक तबाही:** रासपुतिन ने अपने प्रभाव का इस्तेमाल रोमनोव को विनाशकारी राजनीतिक सलाह देने के लिए किया, जिसने रूस में राजशाही की वैधता को तेजी से कमजोर कर दिया।
**भविष्यवाणी और राजनीतिक उथल-पुथल**
राजशाही को बचाने के इरादे से की गई हत्या का उल्टा असर हुआ, जिसने रूसी क्रांति का मार्ग प्रशस्त किया।
* **रासपुतिन की भविष्यवाणी:** अपनी मृत्यु से ठीक पहले, रासपुतिन ने कथित तौर पर युसुपोव से कहा था, “जो कोई भी मुझ पर उंगली उठाएगा, उस पर विपत्ति आएगी।”
* **सार्वजनिक उत्सव:** हत्या का प्रेस और सड़कों पर खुलेआम जश्न मनाया गया, जिससे साजिशकर्ताओं को राजनीतिक बहाली की प्रारंभिक आशा मिली।
* **पतन:** रासपुतिन के राज्य की विफलताओं का दोषी न होने के कारण, जनता का गुस्सा पूरी तरह से ज़ार निकोलस द्वितीय पर केंद्रित हो गया।
**निर्वासन और मोहभंग:** ज़ारिना अपराध साबित नहीं कर सकी, लेकिन उसने युसुपोव और अन्य को निर्वासित कर दिया। बाद में अपने जीवन में, युसुपोव को एहसास हुआ कि रासपुतिन की मृत्यु ने विश्वास बहाल नहीं किया, बल्कि केवल जनता और बर्बाद ज़ार के बीच अंतिम बाधा को दूर कर दिया। मार्च 1917 में आई क्रांति ने राजशाही के पूर्ण अस्वीकृति की मांग की।






