
लंदन में भारतीय, पाकिस्तानी और बांग्लादेशी मुसलमानों की आबादी पिछले कुछ वर्षों में तेजी से बढ़ी है। 2021 के आंकड़ों के अनुसार, लंदन में लगभग 13 लाख मुसलमान रहते हैं, जो शहर की कुल जनसंख्या का लगभग 15% है। इन मुसलमानों में सबसे बड़ी संख्या पाकिस्तान, बांग्लादेश और भारत से आए लोगों की है।
पूरे ब्रिटेन की बात करें तो, मुसलमानों की आबादी लगभग 27 लाख है, जिनमें से लगभग 40% सिर्फ लंदन में रहते हैं, यानी करीब 10.8 लाख से ज्यादा। इनमें भी एशियाई मूल के मुसलमानों की संख्या लगभग 68% है। टॉवर हैमलेट्स, न्यूहैम, रेडब्रिज और वॉल्थम फॉरेस्ट जैसे इलाके उनकी सबसे बड़ी बस्तियां हैं, जहां मुस्लिम आबादी 30% से भी ज्यादा है।
आबादी बढ़ने के कारण
भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश के साथ ब्रिटेन का ऐतिहासिक संबंध रहा है। आजादी के बाद और फिर 1960-70 के दशक में मजदूरों, फैक्ट्री कामगारों और अप्रवासियों की बड़ी संख्या लंदन पहुंची। बाद में भी शरणार्थियों, छात्रों और व्यापारियों के यहां पहुंचने का सिलसिला जारी रहा। अब ये लोग लंदन के व्यापार, राजनीति, शिक्षा समेत हर क्षेत्र में अपनी छाप छोड़ रहे हैं।
सामाजिक प्रभाव और प्रभाव
लंदन के मुसलमान कारोबार, खानपान, कपड़ा, टैक्सी, मेडिकल और काउंसिल जैसी जगहों पर सक्रिय हैं। इन इलाकों में मस्जिदें, खानपान की दुकानें, बाजार और सांस्कृतिक कार्यक्रम इस समुदाय की स्पष्ट छवि बनाते हैं। कई इलाकों में तो मुस्लिम नेता और काउंसिलर भी चुने जाते हैं।
लंदन में अशांति क्यों हो रही है?
लंदन में विभिन्न समुदायों के बीच धर्म, राजनीति और पहचान को लेकर तनाव रहता है। लंदन के मूल निवासी यहां प्रवासियों की बढ़ती आबादी को लेकर चिंतित हैं। लंदन में 13 सितंबर को 1 लाख से ज्यादा लोगों ने यूनाइट द किंगडम नाम की रैली निकाली। सड़कों पर डेढ़ लाख से ज्यादा लोग उतर आए। इन्होंने प्रवासियों और मुस्लिमों के खिलाफ नारे लगाए। हिंसक झड़प में 26 पुलिस वाले भी घायल हो गए। प्रदर्शनकारी ब्रिटेन में अवैध अप्रवासन के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं। इनकी मांग है कि अवैध अप्रवासियों को देश से बाहर किया जाए।