लेबनान की सरकार और सेना के बीच हाल ही में हुई बैठक में सेना ने प्रस्ताव रखा कि देश में हथियारों का अधिकार केवल सरकार और सेना के पास होना चाहिए, जिसका मतलब था कि हिजबुल्लाह जैसे अन्य समूहों के पास हथियार नहीं होंगे।
लेबनान के एक प्रमुख राजनीतिक और सशस्त्र संगठन हिजबुल्लाह ने इस प्रस्ताव का सीधे विरोध नहीं किया। संगठन के नेता महमूद कमती ने एक समाचार एजेंसी से कहा कि वे इस बैठक को समझदारी और तर्क पर लौटने का अवसर मानते हैं, जिससे संकेत मिलता है कि वे फिलहाल टकराव से बचना चाहते हैं। उनका मानना है कि संघर्ष बढ़ने से देश अराजकता में डूब सकता है।
हिजबुल्लाह ने पहले घोषणा की थी कि वह सेना को हथियारों पर एकमात्र नियंत्रण देने के सरकार के फैसले को स्वीकार नहीं करेगा, और इसे ‘अस्तित्वहीन’ और ‘बड़ा पाप’ बताया था।
अंतरराष्ट्रीय दबाव के बावजूद, संगठन हथियार छोड़ने के लिए तैयार नहीं है। ईरान समर्थित इस समूह ने पिछले साल इज़राइल के साथ युद्ध में कमजोरी दिखाई थी, लेकिन फिर भी अपने शस्त्रागार को सौंपने से इनकार कर दिया। हिजबुल्लाह का यह नरम बयान हार मानने का संकेत हो सकता है।
हालांकि, योजना के सफल होने पर सवालिया निशान है। लेबनानी सेना स्वयं स्वीकार करती है कि उसके पास सीमित संसाधन और क्षमता है। इसके अलावा, इज़राइल लगातार सैन्य कार्रवाई कर रहा है, जिससे स्थिति तनावपूर्ण बनी हुई है। इसलिए, योजना को कब और कैसे लागू किया जाएगा, यह स्पष्ट नहीं है। सरकार चाहती है कि हथियार केवल सेना के पास हों, जबकि हिजबुल्लाह फिलहाल इसका विरोध नहीं कर रहा है। हालांकि, सेना के पास पूरी ताकत नहीं है और इज़राइल का दबाव भी है, जिससे यह फैसला तत्काल लागू होने की बजाय भविष्य की दिशा दिखाने जैसा लगता है।