मलेशिया के तेरेंगानू राज्य ने जुमे की नमाज़ से गैरहाज़िर रहने वालों के लिए बेहद सख्त कानून लागू किया है। नए नियमों के तहत, अगर कोई पुरुष बिना किसी वैध कारण के शुक्रवार की नमाज़ में शामिल नहीं होता है, तो उसे दो साल तक की जेल हो सकती है। जेल के साथ-साथ जुर्माना भी भरना पड़ सकता है। इस फैसले को लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आलोचना हो रही है और इसे मानवाधिकारों के खिलाफ बताया जा रहा है। इस कदम ने मलेशिया की छवि को पाकिस्तान और सऊदी अरब जैसी इस्लामी व्यवस्थाओं से भी अधिक कठोर बना दिया है।
नये नियम के अनुसार, पहली बार अपराध करने वाले को दो साल तक जेल या 3,000 रिंग्गिट (लगभग 60,000 रुपये) का जुर्माना या दोनों हो सकते हैं। पहले, लगातार तीन बार जुमे की नमाज़ छोड़ने पर अधिकतम छह महीने की सजा या 1,000 रिंग्गिट (लगभग 20,000 रुपये) का जुर्माना था। अब कानून को और सख्त किया गया है। मस्जिदों में इस नियम की जानकारी देने के लिए साइनबोर्ड लगाए जाएंगे। धार्मिक गश्ती दल और जनता की शिकायतों के आधार पर कार्रवाई की जाएगी। तेरेंगानू इस्लामिक अफेयर्स डिपार्टमेंट भी इन अभियानों में शामिल रहेगा।
मानवाधिकार संगठनों ने इस कदम को चौंकाने वाला और मानवाधिकारों का उल्लंघन बताया है। एशिया ह्यूमन राइट्स एंड लेबर एडवोकेट्स (AHRLA) के निदेशक फिल रॉबर्टसन ने कहा कि धर्म की स्वतंत्रता का मतलब है कि व्यक्ति को न मानने या न शामिल होने का अधिकार है। उन्होंने प्रधानमंत्री अनवर इब्राहिम से इन दंडात्मक नियमों को तुरंत वापस लेने की अपील की। सरकार का कहना है कि ये सजा आखिरी विकल्प के तौर पर ही लागू की जाएगी।
यह कानून पहली बार 2001 में लागू हुआ था और 2016 में इसमें संशोधन कर इसे और कठोर बनाया गया। मलेशिया में दोहरी कानूनी व्यवस्था है – एक तरफ सिविल लॉ और दूसरी तरफ शरिया लॉ, जो मुस्लिम आबादी (लगभग 66%) पर लागू होता है। पड़ोसी राज्य केलंतान ने 2021 में शरिया अपराध कानून को और बढ़ाने की कोशिश की थी, लेकिन मलेशिया की फेडरल कोर्ट ने 2024 में उसे असंवैधानिक करार दिया।