17 वर्षों के बाद, नेपाल में लोकतांत्रिक सरकार भी लड़खड़ा रही है। केपी शर्मा ओली के तख्तापलट ने उन सिद्धांतों को चुनौती दी है, जो लोकतंत्र को नेपाल की सबसे उत्तम शासन प्रणाली मानते थे। नेपाल में लोकतंत्र की स्थापना के बाद से, पिछले 17 वर्षों में 13 प्रधान मंत्री बदल चुके हैं। कोई भी प्रधान मंत्री अपने 5 साल का कार्यकाल पूरा नहीं कर पाया है।
प्रधानमंत्रियों के कार्यकाल पूरा न कर पाने की वजह से नेपाल में अस्थिरता बनी हुई है। इस वर्ष में अब तक दो बड़े प्रदर्शन हो चुके हैं। जून 2025 में राजतंत्र की बहाली के लिए राजधानी काठमांडू सहित पूरे देश में आंदोलन हुआ था। इस आंदोलन के तीन महीने बाद ही युवाओं का हिंसक प्रदर्शन देखा गया।
सवाल यह है कि 82 प्रतिशत हिंदू आबादी वाले नेपाल में लोकतंत्र क्यों सफल नहीं हो पा रहा है? क्या नेपाल को फिर से शासन चलाने के लिए नेहरू मॉडल का सहारा लेना होगा?
नेपाल में शासन चलाने का नेहरू मॉडल क्या है?
1950 में, जवाहर लाल नेहरू भारत के प्रधान मंत्री थे। उस समय नेपाल में राजनीतिक उथल-पुथल मची हुई थी। नेहरू ने इसमें हस्तक्षेप किया। नेहरू के कारण उस समय राणा शासन का अंत हुआ। त्रिभुवन शाह को राजा बनाया गया। 1951 में, नई दिल्ली में त्रिभुवन शाह और अन्य नेताओं के साथ पंडित नेहरू ने मध्यस्थता की।
इस मध्यस्थता में अंतरिम सरकार के गठन और अन्य मुद्दों पर चर्चा हुई। इस समझौते में यह तय हुआ कि नेपाल की अधिकांश सैन्य और विदेश संबंधी शक्तियां राजा के पास होंगी, जबकि प्रधान मंत्री चुने जाएंगे और कार्यपालिका के प्रमुख होंगे। प्रधान मंत्री राजा को सीधे रिपोर्ट करेंगे। प्रधान मंत्री को सरकार चलाने के लिए पर्याप्त अधिकार देने की बात कही गई।
मातृका प्रसाद कोइराला को प्रधान मंत्री नियुक्त किया गया, लेकिन राजनीतिक उथल-पुथल के कारण वे अधिक समय तक पद पर नहीं रह सके। 1955 में त्रिभुवन शाह का निधन हो गया। उनकी जगह उनके बेटे राजा महेंद्र शाह को गद्दी सौंपी गई। महेंद्र शाह ने अपने पिता के शासनकाल में स्थापित नियमों को और मजबूती से लागू किया।
नेपाल के पूर्व चुनाव आयुक्त वीरेंद्र पी मिश्रा ‘नेहरू और नेपाल’ में लिखते हैं- पंडित नेहरू ने नेपाल के शासक को स्पष्ट रूप से कहा कि चीन और सोवियत संघ के साथ जो भी संबंध आपको बनाने होंगे, उस पर भारत की प्रतिक्रिया जरूर लें।
नेहरू का कहना था कि नेपाल भारत का पड़ोसी देश है, जिसकी 1751 किलोमीटर की सीमाएँ एक दूसरे से लगती हैं। यदि नेपाल में कोई उथल-पुथल होती है, तो इसका सीधा असर भारत पर पड़ेगा। नेपाल में भी भारत की तरह ही अधिकांश निवासी हिंदू हैं। दोनों देशों के बीच रोटी-बेटी का संबंध है।
उथल-पुथल के बाद भी 3 दशक तक शांत रहा नेपाल
त्रिभुवन शाह की मृत्यु के बाद, नेपाल में महेंद्र और फिर बीरेंद्र विक्रम शाह को नेपाल का राजा बनाया गया। महेंद्र ने अपने शासन में बीपी कोइराला की सरकार का तख्तापलट कर दिया। नेहरू इससे नाराज हुए और भारत की राज्यसभा में 1960 में खुलकर नेपाल के राजा पर निशाना साधा। नेहरू के रहते नेपाल में कोई बड़ा राजनीतिक उलटफेर नहीं हुआ। न ही कोई बड़ी हिंसक घटनाएं हुईं।
नेहरू के जाने के बाद 1980 तक कुछ छोटी-छोटी राजनीतिक उथल-पुथल जरूर हुई, लेकिन इसके बावजूद नेपाल शांत रहा। लेकिन 1980 के बाद नेपाल की राजनीति में तूफान शुरू हो गया। 1989 में नेपाल में रोजगार और रोटी को लेकर बड़ा प्रदर्शन हुआ। नेपाल के राजा ने इसे दबाने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री मारीच मान सिंह श्रेष्ठ को बर्खास्त कर दिया, लेकिन बात नहीं बनी।
1990 की शुरुआत में नेपाल के राजा बीरेंद्र विक्रम शाह के परिवार से कुछ राजनीतिक गलतियाँ हुईं। इसका नतीजा यह हुआ कि नेपाल में लोकतंत्र की लड़ाई मजबूत हो गई। 2005 तक आते-आते नेपाल के राजा ने लोकतंत्र सेनानियों के सामने आत्मसमर्पण करने का फैसला किया। आखिरकार, 2006 में इस पर सहमति बनी। हालांकि, इसके बावजूद नेपाल में अशांति का माहौल है।