नेपाल, भारत का एक पड़ोसी देश, इस समय गंभीर राजनीतिक संकट से गुजर रहा है। प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने इस्तीफे का ऐलान कर दिया है। राजधानी काठमांडू से लेकर देश के कई हिस्सों में युवाओं का गुस्सा शांत नहीं हो रहा है। सरकार द्वारा सोशल मीडिया पर प्रतिबंध लगाने के फैसले ने जैसे आग में घी का काम किया और लाखों छात्र-युवा सड़कों पर उतर आए।
संसद भवन का घेराव हुआ, कई जगहों पर हिंसक झड़पें और आगजनी हुई। हालात इतने बिगड़ गए कि वित्त मंत्री और विदेश मंत्री तक को लोगों ने घेर लिया। इसी बेकाबू माहौल के बीच ओली ने सत्ता छोड़ने का ऐलान कर दिया। अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि नेपाल की कमान किसके हाथ जाएगी। इस कड़ी में फिलहाल दो नाम सबसे ज्यादा चर्चा में हैं – काठमांडू के मेयर बालेंद्र शाह (बालेन शाह) और नेपाली कांग्रेस के वरिष्ठ नेता डॉ. शेखर कोईराला।
बालेंद्र शाह, जिन्हें लोग बालेन शाह के नाम से जानते हैं, मौजूदा दौर में नेपाल की राजनीति का सबसे चमकता चेहरा बनकर उभरे हैं। वे काठमांडू के मेयर हैं और युवाओं के बीच उनकी लोकप्रियता अपार है। उनकी खासियत यह है कि वे किसी पारंपरिक राजनेता की तरह नहीं, बल्कि एक युवा नेता की तरह लोगों से जुड़ते हैं। टाइम मैगजीन ने उन्हें 2023 में अपनी टॉप 100 ग्लोबल पर्सनैलिटीज की लिस्ट में जगह दी थी। द न्यूयॉर्क टाइम्स समेत कई अंतरराष्ट्रीय मीडिया ने भी उनके काम और प्रभाव पर लिखा है। युवाओं के बीच उनकी सोशल मीडिया मौजूदगी इतनी मजबूत है कि उनके एक पोस्ट से ही देशभर में बहस छिड़ जाती है।
इंजीनियरिंग से शुरुआत कर उन्होंने बतौर रैपर अपनी पहचान बनाई और फिर राजनीति में कदम रखकर काठमांडू के मेयर का चुनाव जीत लिया। मौजूदा आंदोलन के दौरान भी उन्होंने खुले तौर पर युवाओं का समर्थन किया। यही वजह है कि प्रदर्शनकारी अब उन्हें नई राजनीति का चेहरा मानकर राष्ट्रीय नेतृत्व की कमान सौंपने की मांग कर रहे हैं।
दूसरी ओर, नेपाली कांग्रेस के नेता डॉ. शेखर कोईराला का नाम भी जोर पकड़ रहा है। वे पार्टी की केंद्रीय कार्यसमिति के सदस्य और नेपाल की दूसरी संघीय संसद के सांसद हैं। मोरंग जिले से उनका मजबूत जनाधार है। शेखर कोईराला सिर्फ राजनेता ही नहीं, बल्कि एक शिक्षाविद भी रहे हैं। उन्होंने बीपी कोइराला स्वास्थ्य विज्ञान संस्थान के उपकुलपति के तौर पर भी सेवाएं दीं। पार्टी के भीतर उनकी पकड़ का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि वे केंद्रीय कार्यसमिति में सबसे ज्यादा वोट पाने वाले नेता रहे हैं। पार्टी की 14वीं आम अधिवेशन में उन्होंने अध्यक्ष पद के लिए शेरबहादुर देउबा को चुनौती दी थी। हालांकि वे हार गए, लेकिन युवाओं के साथ मिलकर उन्होंने संगठन में मजबूत पकड़ बनाई। इस वक्त भी कांग्रेस के भीतर उनका नाम सत्ता के लिए सबसे आगे चल रहा है।