इस्तांबुल में पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच चार दिवसीय बातचीत बिना किसी ठोस समझौते के समाप्त हो गई, जिससे दोनों देशों के बीच तनाव कम करने के प्रयासों को बड़ा झटका लगा है। सूत्रों के अनुसार, पाकिस्तानी प्रतिनिधिमंडल प्रमुख मांगों पर असहमति के बाद वार्ता से बाहर निकल गया, जिसके कारण चर्चाएं ठप पड़ गईं और कोई निर्णायक परिणाम नहीं निकल सका।
यह वार्ता कतर और तुर्की द्वारा मध्यस्थता किए गए एक अस्थायी युद्धविराम के बाद हुई थी, जब पाकिस्तान ने इस महीने की शुरुआत में कथित तौर पर अफगान हवाई क्षेत्र का उल्लंघन किया था। इस्लामाबाद के इस कदम ने काबुल की ओर से जवाबी कार्रवाई को भड़काया था।
अफगानिस्तान ने इस बात पर जोर दिया कि वह अफगान क्षेत्र का उपयोग पाकिस्तान के खिलाफ करने से रोकेगा, लेकिन उसने इस्लामाबाद से अफगान हवाई क्षेत्र का उल्लंघन बंद करने और अफगान सीमाओं के भीतर अमेरिकी ड्रोन संचालन को रोकने की मांग की। हालांकि, सूत्रों ने बताया कि पाकिस्तान इन शर्तों को मानने से इनकार कर दिया।
अफगानिस्तान के पूर्व राजदूत उमर समद ने इस गतिरोध पर सवाल उठाते हुए कहा, “यह पूरी तरह से स्पष्ट नहीं है कि प्रत्येक पक्ष का इरादा क्या था। क्या पाकिस्तान वास्तव में व्यावहारिक समाधान की तलाश में था, या वह ऐसा दिखाने की कोशिश कर रहा था जैसे वह मुद्दों को हल करना चाहता था?”
इस्लामाबाद और काबुल के बीच यह कूटनीतिक गतिरोध तब और गहरा गया जब पाकिस्तान ने अफगानिस्तान से तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) को औपचारिक रूप से आतंकवादी संगठन घोषित करने और उसके खिलाफ सैन्य कार्रवाई करने को कहा। अफगानिस्तान के रक्षा मंत्री मौलवी मोहम्मद याकूब मुजाहिद ने इस मांग को खारिज करते हुए कहा कि “पाकिस्तान और अन्य देश अपने विरोधियों के खिलाफ राजनीतिक उद्देश्यों के लिए आतंकवाद के लेबल का इस्तेमाल करते हैं।”
वार्ता से पहले, पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा मोहम्मद आसिफ ने चेतावनी दी थी कि यदि संवाद से परिणाम नहीं निकले तो इस्लामाबाद सैन्य कार्रवाई का सहारा ले सकता है। इसके विपरीत, अफगानिस्तान ने जोर देकर कहा कि वह कूटनीतिक माध्यमों से विवादों को हल करने के लिए प्रतिबद्ध है।






