बलूचिस्तान की जानी-मानी मानवाधिकार कार्यकर्ता, सम्मी डीन बलूच ने पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में राज्य की बर्बरता की एक भयावह घटना की कड़ी निंदा की है।
पंजगुर में सुरक्षा बलों द्वारा कथित तौर पर अपहरण और क्रूर यातना के बाद एक युवा महिला, नज़िया शफ़ी की मौत हो गई है। स्थानीय सूत्रों के अनुसार, दोनों महिलाओं को अवैध रूप से हिरासत में लिया गया था और गंभीर यातना दी गई थी, जिससे उनकी हालत नाजुक हो गई थी। कुछ ही घंटों के भीतर नज़िया ने चोटों के कारण दम तोड़ दिया, जिससे पूरे क्षेत्र में आक्रोश और शोक की लहर दौड़ गई।
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर सम्मी डीन बलूच ने इस घटना को मानवाधिकारों और नैतिक सिद्धांतों का घोर उल्लंघन बताया। उन्होंने इसे उस सरकारी दमन का हिस्सा करार दिया जो लंबे समय से प्रांत को जकड़े हुए है। उन्होंने कहा, “बलूचिस्तान में क्रूरता एक नीतिगत औजार बन गई है,” इस बात पर जोर देते हुए कि महिलाएं विशेष रूप से उन ताकतों द्वारा हिंसा और भयभीत करने का नया निशाना बन गई हैं जो पूर्ण मनमानी से काम कर रही हैं।
उन्होंने कहा कि बलूचिस्तान में व्यवस्थित अपहरण, गुमशुदगी और यातना एक गंभीर वास्तविकता बन गई है, जिसमें जवाबदेही या निगरानी का कोई प्रावधान नहीं है। पीड़ितों के परिवार अक्सर निराशा में डूबे होते हैं, उन्हें न्याय से वंचित किया जाता है और डर के मारे चुप करा दिया जाता है। नज़िया शफ़ी की दुखद मौत ने एक बार फिर उन कार्यकर्ताओं द्वारा बताए जा रहे गहरे मानवाधिकार संकट पर अंतर्राष्ट्रीय ध्यान देने की तत्काल आवश्यकता को उजागर किया है। सम्मी डीन बलूच ने वैश्विक मानवाधिकार संगठनों और महिला अधिकार आंदोलनों से भी आग्रह किया है कि वे इस मामले पर अपनी चुप्पी तोड़ें और व्यवस्थित हिंसा और उत्पीड़न का सामना कर रही बलूच महिलाओं की आवाज़ को बुलंद करें।
नज़िया शफ़ी और उनकी माँ का मामला उन महिलायों की दुर्दशा पर चर्चा को फिर से शुरू कर रहा है जो संघर्ष क्षेत्रों में रहती हैं, जहाँ सुरक्षा अभियानों के नाम पर दुर्व्यवहार और दंडमुक्ति जारी है। नज़िया के लिए न्याय, बलूच महिलाओं के खिलाफ राज्य-प्रायोजित हिंसा को समाप्त करने और बुनियादी मानवीय गरिमा और न्याय में विश्वास बहाल करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम होगा।






