आज के दौर में, हर कोई ख्वाब देखता है। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ और फील्ड मार्शल आसिम मुनीर ने भी एक ख्वाब देखा है – इस्लामिक देशों का खलीफा बनने का।
दरअसल, गाजा में इजरायली नरसंहार का खौफनाक मंजर देखने को मिल रहा है। अमेरिका के समर्थन से इजराइल गाजा में भीषण तबाही मचा रहा है। ग्राउंड फोर्स ने ऑपरेशन शुरू कर दिया है, इमारतों को गिराया जा रहा है और गाजा के लोगों को दक्षिण में सिनाई की ओर विस्थापित किया जा रहा है। दूसरी ओर, मुस्लिम देशों की बैठकों में, पाकिस्तान अपनी गैर-जिम्मेदाराना हरकतों से बाज नहीं आ रहा है।
यही वजह है कि जब दोहा में इस्लामिक समिट में NATO की तर्ज पर सेना बनाने की बात छिड़ी, तो पाकिस्तान ने अपने परमाणु बमों का प्रदर्शन करना शुरू कर दिया और मुस्लिम देशों का नेता बनने की कोशिश करने लगा। एक तरफ, पाकिस्तान इस्लामिक देशों का रक्षक होने का दावा करता है, तो दूसरी तरफ, वह अमेरिका का पिछलग्गू बना हुआ है।
क्या पाकिस्तान वाकई इतना ताकतवर है?
ऐसे में सवाल उठता है कि क्या पाकिस्तान वाकई इस्लामिक देशों का नेता बन सकता है और कैसे वह गाजा की त्रासदी में खलीफा बनने का अवसर तलाश रहा है?
पाकिस्तान ने 9 सितंबर को दोहा पर इजराइल के हमले की कड़ी निंदा की। इसका स्पष्ट लक्ष्य मध्य पूर्व में शांति प्रयासों को विफल करना था। संयुक्त राष्ट्र में पाक के राजदूत आसिम इफ्तिखार अहमद ने कहा, “हम एक गैर-जिम्मेदार इजराइल की ओर से लगाए गए आरोपों को स्वीकार नहीं कर सकते, जो वास्तव में सबसे बड़ा अपराधी है, जिसे हम गाजा में और वास्तव में, दशकों से कब्जे वाले फिलिस्तीनी क्षेत्रों में देख रहे हैं।”
इजराइल को गाजा पर हमले के लिए अमेरिका का पूरा समर्थन मिला हुआ है। यही कारण है कि इजराइल गाजा के साथ-साथ वेस्ट बैंक पर भी आक्रामक हमले कर रहा है। इजराइल की जंगी तैयारी के मोर्चे पर गाजा-लेबनान-वेस्ट बैंक-ईरान और यमन थे, लेकिन अचानक इजराइल ने कतर के खिलाफ मोर्चा खोलकर अरब के रणनीतिक समीकरण को बदल दिया, वह कतर जो कल तक हमास और इजराइल के बीच शांति की मेजबानी कर रहा था।
दोहा की सड़कों पर इजरायली हमलों की गूंज ने मध्य पूर्व में एक नई आग को हवा दी और इजराइल के खिलाफ मिडिल ईस्ट में भड़की इस आग में पाकिस्तान रोटी सेंकने की कोशिशों में जुट गया।
दोहा में इस्लामिक देशों के नेताओं का महाजुटान हुआ, जिसमें पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ अपने मंत्रियों और पूरे लाव लश्कर के साथ समिट में हिस्सा लेने पहुंचे। दोहा में बुलाई गई इस्लामिक अरब समिट में पाकिस्तान समेत 50 इस्लामिक देश शामिल हुए।
इस समिट में इजराइल को कतर पर हमले का जवाब देने पर मंथन हुआ। साथ ही चर्चा के दौरान इस्लामी देशों द्वारा एक संयुक्त सैन्य गठबंधन, NATO की तर्ज़ पर, बनाने के प्रस्ताव पर विचार किया गया।
शहबाज शरीफ ने बैठक में क्या कहा?
इस बैठक में भाग लेने वाले पाकिस्तानी पीएम शहबाज शरीफ ने इजराइल के गाजा और दोहा में किए गए हमलों की निंदा की, साथ ही इस्लामिक देशों के साथ इजराइल के खिलाफ खड़े होने की प्रतिबद्धता जताई।
शहबाज शरीफ ने कहा कि हम बड़े ही दर्द भरे समय पर इकट्ठा हुए हैं। कतर पर इजराइल ने हमला किया, जो किसी अंतरराष्ट्रीय कानून को नहीं मानता और न ही उसे इसके नतीजे की परवाह है। पाकिस्तान इजराइल की तरफ से किए गए कतर पर हमले की निंदा करता है, जिसका मुख्य मकसद मध्य पूर्व में हो रही शांति वार्ता को खारिज करना था। यह कतर की स्वतंत्रता और संप्रभुता पर बड़ा हमला था, हम अपने कतर के भाई-बहनों का साथ देने का वादा करते हैं।
मुस्लिम देशों की बैठक में पाकिस्तान ने खुद को सैन्य सुपर पावर की तरह पेश किया। साथ ही, जब इस्लामिक NATO की बात छिड़ी तो अपने परमाणु बमों का प्रदर्शन किया। पाकिस्तान अकेला एटमी पावर देश है, जिसके पास कुल 170 एटमी हथियार हैं। इसी के दम पर वह इस्लामिक देशों का खलीफा बनने की फिराक में है।
खलीफा बनने का ख्वाब
पाकिस्तान के विदेश मंत्री इशाक डार ने विदेशी मीडिया से कहा कि परमाणु शक्ति वाला पाकिस्तान मुस्लिम देशों की रक्षा करने के लिए तैयार है।
उन्होंने कहा कि पाकिस्तानी सेना की पारंपरिक युद्ध क्षमताएं बहुत प्रभावशाली हैं। अगर मध्य पूर्व में इजराइली हमले को रोकने के लिए एक संयुक्त निकाय बनाया जाता है, तो पाकिस्तान मुस्लिम देशों की रक्षा के लिए पूरी तरह से तैयार है।
पाकिस्तान ने की अपने एटम बम की नुमाइश
गाजा में इजरायली नरसंहार का सबसे खौफनाक रूप देखने को मिल रहा है। अमेरिका की मदद से इजराइल इस वक्त गाजा में सबसे खौफनाक नरसंहार कर रहा है, तो दूसरी ओर मुस्लिम देशों की बैठक में इस्लामिक NATO की बात छिड़ी तो पाकिस्तान ने अपने परमाणु बमों का प्रदर्शन किया और मुस्लिम देशों का नेता बनने की कोशिश कर रहा है। लगातार खुद को सैन्य सुपरवापर की तरह पेश कर रहा है।
पाकिस्तान खुद को अरब देशों का रक्षक दिखा रहा है। ऐसा दिखा रहा है मानो उसकी धमकियों से इजराइल थर-थर कांपने लगेगा, लेकिन पाकिस्तान यह भूल गया है कि जिस इजराइल के खिलाफ वह अरब देशों का रक्षक बनने की बात कह रहा है, उस इजराइल पर अमेरिका का हाथ है, जिससे आज कल पाकिस्तान अपनी करीबियां बढ़ा रहा है।
पाकिस्तान का दोहरा रवैया
पाकिस्तान भले ही मुस्लिम देशों का खलीफा बनने की कोशिश कर रहा है, लेकिन सच्चाई यह है कि वह गाजा तबाही को हरी झंडी दिखाने वाले अमेरिका के तलवे चाट रहा है। पाकिस्तान के इस दोहरे रवैये का क्या मतलब है?
पाकिस्तान भले ही इस्लामिक देशों का चौधरी बनने का सपना देखे, लेकिन पाकिस्तान की हालत पूरी दुनिया जानती है। वह बहुत बड़े आर्थिक संकट से गुजर रहा है। ऐसे में इजराइल के खिलाफ खुद को मुस्लिम देशों का लीडर बनाने का ख्वाब क्या सिर्फ खयाली पुलाव है?
पाकिस्तान की सैन्य ताकत की बात करें तो भारत के ऑपरेशन सिंदूर के दौरान उसकी भी पोल खुल चुकी है, न तो उनके पास प्रशिक्षित सैनिक हैं और न ही ऐसे हथियार जो इजराइल और NATO का सामना कर सकें।
इस्लामिक NATO और असली NATO
वहीं, जिस इस्लामिक NATO को बनाने पर पाकिस्तान जोर दे रहा है। अगर वह बन भी जाए तो भी वह NATO का मुकाबला नहीं कर सकता, क्योंकि अगर इस्लामिक नाटो बनता है, तो उसके पास हवाई ताकत 7,100 होगी, वहीं नाटो की हवाई ताकत 22,377 है।
इस्लामिक नाटो के पास लगभग 300 युद्धपोत हैं, जबकि नाटो के पास 2,000 से अधिक युद्धपोत हैं। और परमाणु हथियारों के मामले में भी इस्लामिक नाटो बहुत पीछे है, क्योंकि उसमें केवल पाकिस्तान के पास ही न्यूक्लियर हथियार हैं, वो भी मात्र 170, जबकि नाटो देशों में अमेरिका, फ्रांस और ब्रिटेन के न्यूक्लियर हथियारों को मिला दें तो आंकड़ा 5,692 तक पहुंचता है।
ऐसे में, भले ही पाकिस्तान खुद को इस्लामिक देशों का खलीफा बनाने की सोच रहा हो, लेकिन हकीकत में ऐसा होता नहीं दिख रहा। यानी पाकिस्तान का यह सपना, सपना ही रहने वाला है।