डर एक मूलभूत भावना है जो हमें खतरों से बचाती है। लेकिन अगर किसी को डर का एहसास ही न हो, तो क्या होगा? यह कुछ लोगों के लिए एक हकीकत है, जो दुर्लभ बीमारियों से जूझ रहे हैं।
ब्रिटेन के जोर्डी सरानिक को कुशिंग सिंड्रोम के इलाज के बाद डर महसूस होना बंद हो गया। वहीं, अमेरिका की एस.एम. नाम की महिला एक आनुवंशिक बीमारी से पीड़ित है, जिसके कारण उसके दिमाग का वह हिस्सा नष्ट हो गया जो डर को नियंत्रित करता है।
वैज्ञानिकों ने एस.एम. पर कई प्रयोग किए, जिसमें उसे डरावनी फिल्में दिखाई गईं और खतरनाक जानवरों के सामने रखा गया, लेकिन उसे कोई डर नहीं लगा। एस.एम. का व्यवहार भी असामान्य है, वह दूसरों के बहुत करीब रहती है।
वैज्ञानिकों का मानना है कि डर दो तरह से काम करता है – बाहरी खतरों और आंतरिक खतरों के प्रति। एस.एम. में डर की भावना की कमी सामाजिक व्यवहार को भी प्रभावित करती है। इन मामलों से पता चलता है कि डर न केवल खतरे से बचाता है, बल्कि हमारे सामाजिक और भावनात्मक जीवन को भी प्रभावित करता है।