बांग्लादेश में राजनीतिक पारा चढ़ गया है क्योंकि शेख हसीना पर अदालत का अहम फैसला अगले 24 घंटों में आने वाला है। मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार ने 78 वर्षीय पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के लिए मौत की सज़ा की मांग की है। उन पर पिछले साल हुए हिंसक विरोध प्रदर्शनों के दौरान मानवता के खिलाफ गंभीर अपराध करने का आरोप है। इस फैसले को लेकर पूरे देश में हाई अलर्ट जारी कर दिया गया है, जिससे किसी भी अप्रिय घटना या अस्थिरता की आशंका को लेकर चिंताएं बढ़ गई हैं।

**अदालत के फैसले से पहले सुरक्षा कड़ी**
बांग्लादेश में सुरक्षा एजेंसियां किसी भी स्थिति से निपटने के लिए पूरी तरह तैयार हैं। संवेदनशील इलाकों में अतिरिक्त सुरक्षा बल तैनात किए गए हैं। अधिकारियों का कहना है कि कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए सभी आवश्यक कदम उठाए गए हैं। इंटरनेशनल क्राइम्स ट्रिब्यूनल (ICT-BD) सोमवार, 17 नवंबर 2025 को शेख हसीना के मामले में अपना फैसला सुनाएगा। उन पर जुलाई 2023 में हुए छात्र-आंदोलन, जिसे ‘जुलाई विद्रोह’ के नाम से भी जाना जाता है, के दौरान गंभीर अपराधों का आरोप है। इसी आंदोलन के बाद 5 अगस्त 2024 को उनकी आवामी लीग सरकार गिर गई थी।
**हसीना और अन्य पर लगे आरोप**
केवल शेख हसीना ही नहीं, पूर्व गृह मंत्री असदुज्जमान खान कमाल और पूर्व पुलिस महानिदेशक (IGP) चौधरी अब्दुल्ला अल-मामून पर भी पांच अलग-अलग मामलों में आरोप तय किए गए हैं। इन आरोपों में प्रदर्शनकारियों पर की गई कार्रवाई के दौरान हत्या, हत्या का प्रयास, यातनाएं और अन्य अमानवीय कार्य शामिल हैं। शेख हसीना और असदुज्जमान खान कमाल फरार घोषित कर दिए गए हैं और उन पर अनुपस्थिति में मुकदमा चलाया जा रहा है। माना जा रहा है कि दोनों इस समय भारत में शरण लिए हुए हैं। दूसरी ओर, चौधरी अब्दुल्ला अल-मामून मामले में सरकारी गवाह बन गए हैं।
**अभियोजन पक्ष की मौत की सज़ा की मांग**
मुख्य अभियोजक मोहम्मद ताजुल इस्लाम ने शेख हसीना के लिए मौत की सज़ा की मांग करते हुए कहा कि वह इस क्रूर कार्रवाई की ‘मुख्य सूत्रधार’ थीं। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार, 15 जुलाई से 15 अगस्त 2023 के बीच सुरक्षा अभियानों में 1400 लोगों की मौत हुई थी, जिन्हें हसीना सरकार ने आदेशित किया था। 23 अक्टूबर को फैसला सुरक्षित रखने से पहले, अभियोजन पक्ष ने 28 दिनों में 54 गवाहों के बयान सुने। हसीना के समर्थक इन आरोपों को राजनीतिक रूप से प्रेरित बताते हैं, जिसका उद्देश्य उन्हें राजनीति से दूर करना है।
**भारत से प्रत्यर्पण का अनुरोध अनसुना**
यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार ने भारत से शेख हसीना के प्रत्यर्पण का औपचारिक अनुरोध किया है, लेकिन नई दिल्ली की ओर से अभी तक कोई जवाब नहीं आया है। शेख हसीना ने हाल के साक्षात्कारों में ट्रिब्यूनल को ‘कंगारू कोर्ट’ बताते हुए कहा है कि उन पर लोकतांत्रिक वैधता विहीन चुनी हुई सरकार द्वारा प्रतिशोध के तहत मुकदमा चलाया जा रहा है।
**व्यापक राजनीतिक प्रभाव**
पिछले महीने, आवामी लीग ने अंतरिम सरकार के खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (ICC) में एक याचिका दायर की थी, जिसमें उस पर मानवता के खिलाफ अपराधों, जिसमें अवैध हत्याएं और सदस्यों की मनमानी गिरफ्तारियां शामिल हैं, का आरोप लगाया गया था। मूल रूप से 1971 के स्वतंत्रता संग्राम के सहयोगियों पर मुकदमा चलाने के लिए स्थापित ICT-BD में अंतरिम प्रशासन द्वारा संशोधन किया गया था, ताकि शेख हसीना सहित पूर्व राजनीतिक नेताओं पर मुकदमे चलाए जा सकें। कई पूर्व आवामी लीग के नेता या तो जेल में हैं या देश से बाहर फरार हैं।
**राष्ट्र की निगाहें टिकीं**
फैसले के कुछ ही घंटे शेष हैं, ऐसे में बांग्लादेश एक अनिश्चित और तनावपूर्ण दौर से गुजर रहा है। शेख हसीना को मौत की सज़ा सुनाए जाने से व्यापक अशांति फैल सकती है, राजनीतिक विभाजन गहरा सकता है और क्षेत्रीय समीकरण प्रभावित हो सकते हैं, खासकर जब वह इस समय भारत में हैं। अगले 24 घंटे बांग्लादेश के राजनीतिक भविष्य को आकार दे सकते हैं, क्योंकि पूरा देश अदालत के फैसले का बेसब्री से इंतजार कर रहा है।




