आज, न केवल यूक्रेन बल्कि यूरोप के भविष्य का भी फ़ैसला होगा। यही कारण है कि अमेरिकी राष्ट्रपति ने मुलाक़ात से पहले ही ज़ेलेंस्की पर दबाव बनाना शुरू कर दिया है। हालाँकि ज़ेलेंस्की ट्रंप के दबाव में आकर शर्तें मानेंगे, इसकी उम्मीद बहुत कम है। ऐसे में सवाल है कि अगर ट्रंप-ज़ेलेंस्की और यूरोप के बीच बात नहीं बनी तो क्या होगा। क्या पुतिन युद्ध का विस्तार यूरोप तक करने की हरी झंडी देंगे? अगर हाँ, तो अमेरिका का रुख क्या होगा?
यहां होने वाली मुलाक़ात न सिर्फ़ यूक्रेन बल्कि पूरे यूरोप का भविष्य तय करेगी। ऐसा माना जा रहा है कि ट्रंप ज़ेलेंस्की को राज़ी करने के लिए लालच, धमकी या दबाव की नीति का इस्तेमाल कर सकते हैं। ट्रंप ने ज़ेलेंस्की पर मुलाक़ात से पहले ही दबाव बनाना शुरू कर दिया है।
ट्रंप ने आखिरी फ़ैसला लेने का अधिकार ज़ेलेंस्की के हाथ में दिया है। साथ ही, चेतावनी भी दी है कि अगर उन्होंने पुतिन की शर्तों पर युद्ध विराम नहीं किया, तो क्रीमिया की तरह ही यूक्रेन की बाकी ज़मीन रूस बल से छीन लेगा और कोई कुछ नहीं कर सकेगा। दरअसल, पुतिन पहले ही साफ़ कर चुके हैं कि अगर युद्धविराम पर बात नहीं बनती, तब भी वे लुहांस्क, डोनेत्स्क, ज़ेपोरिज़िया, खेरसोन पर कब्ज़ा करके रहेंगे। ऐसे में सवाल है कि समझौता नहीं होने पर अमेरिका के पास क्या विकल्प होगा?
माना जा रहा है कि इसके बाद अमेरिका खुद को युद्ध से अलग कर सकता है। ठीक उसी तरह जैसे पहले और दूसरे विश्वयुद्ध के शुरुआती दौर में युद्ध से दूर रहा था। अमेरिका तब तक तटस्थ रहेगा, जब तक जंग का विस्तार यूरोप तक नहीं हो जाता। यूरोप तक जंग फैलने के बाद अमेरिका जीतने वाले पक्ष के साथ शामिल हो सकता है।
पहला विश्व युद्ध 1917 और दूसरे विश्व युद्ध अप्रैल 1917 दोनों विश्व युद्धों के दौरान अमेरिका ने शुरुआती दौर में दूरी बनाकर रखी थी। पहला विश्व युद्ध शुरू होने के 3 साल बाद अप्रैल 1917 में अमेरिका ने जर्मनी के ख़िलाफ़ युद्ध की घोषणा की। जबकि दूसरा विश्व युद्ध शुरू होने के क़रीब 2 साल बाद जापान के ख़िलाफ़ युद्ध का एलान किया और मित्र राष्ट्रों के साथ जंग में कूद पड़ा। दोनों बार अमेरिकी विजयी गुट का हिस्सा रहा, हालाँकि हर बार अमेरिका के युद्ध में शामिल होने की एक ख़ास वजह रही। लेकिन माना जा रहा है कि अमेरिका ने रणनीति के तहत मज़बूत दल का पक्ष लिया था।
अब माना जा रहा है कि अगर यूक्रेन युद्ध यूरोप तक फैला तो अमेरिका रूस या फिर यूरोप किसका साथ देगा। यह फ़ैसला युद्ध में उनकी आर्थिक और सैन्य मज़बूती के आकलन पर होगा।
व्हाइट हाउस में होने वाली मुलाक़ात से दुनिया को शांति की उम्मीद ज़रूर है। लेकिन इसकी संभावना बहुत कम है और इसकी वजह है, यूरोप की तैयारियां। जो यूक्रेन जंग के विस्तार की बड़ी वजह बन सकती हैं। दरअसल, फ़्रांस और ब्रिटेन ने युद्धविराम के बाद का प्लान तैयार किया है। वे यूक्रेन में रीअश्योरेंस फ़ोर्स तैनात करने की तैयारी में हैं।
यूरोपीय देशों ने फ़्रांस और ब्रिटेन के फ़ैसले पर सहमति जताई है।
ज़ेलेंस्की युद्धविराम के बाद सुरक्षा की गारंटी के लिए ट्रंप से इसकी माँग कर सकते हैं। हालाँकि पुतिन यूक्रेन में रीअश्योरेंस फ़ोर्स तैनात करने के लिए राज़ी होंगे, इसकी उम्मीद न के बराबर है। नाटो ने पूर्वी यूरोप के कुल 9 देशों में रीअश्योरेंस फ़ोर्स तैनात कर रखी है। यह सहयोगी देशों को सुरक्षा की गारंटी देती है।
रीअश्योरेंस फ़ोर्स एस्टोनिया, लातविया, लिथुआनिया, पोलैंड, फ़िनलैंड, बुल्गारिया, हंगरी, रोमानिया और स्लोवाकिया में तैनात है। इसमें 4 देशों की सेना जहाँ उत्तर-पश्चिमी रूस की सरहद से लगती है। वहीं पोलैंड की सीमा रूस के मित्र देश बेलारूस से सटी है। इसके अलावा रोमानिया और बुल्गारिया काला सागर से जुड़े हैं। यानी सिर्फ़ यूक्रेन ही वह हिस्सा है, जहाँ नाटो सैनिक रूसी बॉर्डर के पास नहीं हैं। ऐसे में इस हिस्से में पुतिन रीअश्योरेंस फ़ोर्स की तैनाती के लिए कभी हाँ नहीं भरेंगे।
ऐसे में यूरोप के सामने सिर्फ़ 1 ही विकल्प शेष है। वह लगातार यूक्रेन को हथियारों की सप्लाई देकर रूस को युद्ध में उलझाकर रखे। माना जा रहा है कि यूरोप ने इसकी तैयारी भी शुरू कर दी है। दावा है कि यूक्रेन ने अपनी लॉन्ग रेंज क्रूज़ मिसाइल फ़्लेमिंगो का प्रोडक्शन शुरू कर दिया है।
यूक्रेन इसे भले अपनी स्वदेशी मिसाइल बता रहा है, लेकिन माना जा रहा है कि इसकी तकनीक उसे यूरोप से मिली है ताकि वह रूस में 3000 किमी अंदर तक हमले कर सके और यूरोप पर कोई आरोप भी न लगे।