अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप कूटनीतिक स्तर पर अनिश्चित दिख रहे हैं। वह कब क्या कहेंगे, इसका कोई भरोसा नहीं है। उनकी कूटनीति में कोई दीर्घकालिक दृष्टिकोण नहीं है। एक दिन कुछ कहते हैं और दूसरे दिन कुछ और बोलते हैं, लेकिन हाल ही में, डोनाल्ड ट्रंप ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट की, जिससे पूरी दुनिया में भ्रम और बढ़ गया।
ट्रंप ने लिखा, ‘हमने भारत और रूस को चीन के हाथों खो दिया है।’ अब सवाल यह है कि ट्रंप ने ऐसा क्यों लिखा। यह ट्रंप का डर है, या कोई नया नाटक। भारत के साथ खराब होते संबंधों का पश्चाताप है, या रूस-चीन-भारत के बदलते समीकरणों से उनकी ईर्ष्या है।
ट्रंप ने ट्रुथ सोशल पर एक तस्वीर पोस्ट की जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग साथ में दिखाई दे रहे हैं। इस तस्वीर के साथ उन्होंने लिखा, ‘लगता है कि हमने भारत और रूस को दुष्ट चीन के हाथों खो दिया है। मेरी कामना है कि उनका यह गठबंधन लंबा और खुशहाल हो।’ सवाल यह है कि ट्रंप वास्तव में क्या कहना चाहते हैं?
क्या ट्रंप को टैरिफ से जुड़ी गलती का अहसास हुआ है, या फिर वह दबाव बनाने के लिए कोई नई चाल चल रहे हैं? लेकिन अधिक संभावना यह है कि ट्रंप भारत-रूस-चीन की बढ़ती नजदीकी से परेशान हैं। उनकी इस परेशानी की सबसे ताजा वजह एक तस्वीर है, जब SCO शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री मोदी, पुतिन और शी जिनपिंग से मिले। रूसी राष्ट्रपति पुतिन के साथ प्रधानमंत्री की द्विपक्षीय वार्ता भी हुई, जिसमें दोनों देशों के संबंधों को और मजबूत करने पर सहमति बनी। इतना ही नहीं, तीनों देशों ने मिलकर अमेरिका की धमकियों का सटीक जवाब भी दिया।
प्रधानमंत्री मोदी पहले ही कह चुके हैं कि कोई कितना भी दबाव डाले, भारत अपने हितों की रक्षा करेगा और किसी भी कीमत पर झुकेगा नहीं। शी जिनपिंग ने भी ट्रंप को कड़ा संदेश दिया और कहा कि हम किसी भी धमकी से नहीं डरते। पुतिन ने ट्रंप को कूटनीतिक आईना दिखाया और अमेरिका को समझाया कि चीन और भारत से धमकी भरे लहजे में बात नहीं की जा सकती।
इन सख्त तेवरों के बाद शायद ट्रंप को यह एहसास हो गया कि अब उनकी दबाव की रणनीति काम नहीं आएगी, लेकिन उन्हें यह बात बहुत देर से समझ में आई। अमेरिका में ही बहुत सारे विश्लेषकों और नेताओं ने उन्हें पहले से ही यह चेतावनी दी थी, लेकिन ट्रंप आसानी से कोई बात मान जाएं, ऐसा भला कैसे होता।
अमेरिकी विश्लेषक एड प्राइस ने कहा था कि अगर चीन, रूस और भारत किसी भी तरह के आर्थिक और सैन्य गठबंधन में साथ आ जाएं तो 21वीं सदी में अमेरिका उनका मुकाबला नहीं कर पाएगा।
वहीं, अमेरिका के पूर्व एनएसए जेक सुलिवन ने कहा है कि अगर हमारे दोस्त और दुनिया यह तय कर ले कि अमेरिका पर किसी तरह का भरोसा नहीं करना है, तो यह अमेरिका के हित में नहीं होगा। भारत जो कर रहा है, उसके सीधे गंभीर प्रभाव तो हैं ही, लेकिन इसका प्रभाव बाकी सभी वैश्विक साझेदारियों पर पड़ेगा।
अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति माइक पेंस ने कहा है कि ट्रंप प्रशासन इस बात का जश्न मना रहा है कि अमेरिकी परिवारों को सामान की कीमतों में लगभग 3 हजार डॉलर की वृद्धि देखने को मिलेगी क्योंकि हम वह भुगतान कर रहे हैं। इसलिए मैंने इसे ‘लिबरेशन डे’ कहा है।
अमेरिकी मीडिया ने भी एक तरह से ट्रंप के टैरिफ वाले फैसले को गलत ही बताया है। कई अमेरिकी मीडिया का कहना है कि अगर अमेरिका भारत पर बड़े टैरिफ लगाकर अपने बाजार बंद कर देता है, तो भारत को अपने निर्यात बेचने के लिए दूसरे स्थान खोजने पड़ेंगे। जैसे रूस ने अपनी ऊर्जा को बेचने के लिए नए बाजार तलाश कर लिए हैं, भारत अपने निर्यात अमेरिका को नहीं, बल्कि BRICS देशों को बेचेगा।
भारतीय विदेश मंत्रालय ने ट्रंप के बयान पर टिप्पणी करने से फिलहाल इनकार किया है। हो सकता है जल्द ही भारत इसका जवाब दे। हालांकि, ट्रंप के सलाहकार पीटर नवारो के बयानों पर विदेश मंत्रालय ने टिप्पणी की और नवारो के बयानों को गुमराह करने वाला बताया।
भारत के बाद अब ट्रंप ने यूरोप के देशों पर भी हमला शुरू कर दिया है। हाल ही में पेरिस में हुई बैठक के बाद, उन्होंने यूरोपीय संघ (EU) के नेताओं से बात की और यूरोप पर रूसी तेल की खरीद बंद करने का दबाव बनाया। ट्रंप ने कहा कि रूसी तेल खरीदने से रूस की सेना मजबूत हो रही है। हंगरी और स्लोवाकिया जैसे देश अभी भी तेल खरीद रहे हैं। इस बातचीत के दौरान माहौल काफी गर्म रहा। यूरोपीय नेताओं ने सफाई दी कि वे रूसी तेल पहले से कम खरीद रहे हैं।