ईरान और इज़राइल के बीच 12 दिनों तक चली जंग के दौरान, तुर्की ने भले ही सैन्य रूप से ईरान का साथ न दिया हो, लेकिन उसने कूटनीतिक समर्थन ज़रूर दिया था। अंकारा ने इज़राइल के हवाई हमलों की कड़ी निंदा की और ईरान की जवाबी कार्रवाई के अधिकार का बचाव किया। अब स्थिति बदल गई है। तुर्की ने एक ऐसा महत्वपूर्ण कदम उठाया है जिसने ईरान को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर और मुश्किल में डाल दिया है।
तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तैय्यप एर्दोआन के आदेश पर, तुर्की सरकार ने ईरान से जुड़े कई संगठनों और कंपनियों की संपत्तियां फ्रीज़ कर दी हैं। इन संस्थानों पर ईरान के परमाणु कार्यक्रम, यूरेनियम संवर्धन और शोध गतिविधियों में शामिल होने का आरोप है। यह निर्णय देश के आधिकारिक राजपत्र में प्रकाशित हुआ, जिससे यह तुरंत प्रभावी हो गया।
इस कदम के तहत, ईरान के ऊर्जा, बैंकिंग, शिपिंग और शोध क्षेत्रों के कई प्रमुख संगठनों को ब्लैकलिस्ट किया गया है। इनमें ईरान की परमाणु ऊर्जा संगठन, बैंक सेपाह और यूरेनियम कन्वर्ज़न व न्यूक्लियर फ्यूल प्रोडक्शन से जुड़ी कंपनियां शामिल हैं। इसके अतिरिक्त, इस्फ़हान न्यूक्लियर फ्यूल रिसर्च एंड प्रोडक्शन सेंटर (NFRPC), इस्फ़हान न्यूक्लियर टेक्नोलॉजी सेंटर (ENTC), फर्स्ट ईस्ट एक्सपोर्ट बैंक, ईरानो-हिंद शिपिंग कंपनी, और तामस कंपनी भी इस सूची में हैं।
दरअसल, संयुक्त राष्ट्र (UN) ने हाल ही में ‘स्नैपबैक मैकेनिज्म’ के माध्यम से ईरान पर पहले से हटाए गए प्रतिबंधों को फिर से लागू किया है। 2015 के परमाणु समझौते के तहत ये पाबंदियां हटाई गई थीं, लेकिन यूरोपीय देशों ने आरोप लगाया कि ईरान समझौते का पालन नहीं कर रहा। इसके बाद, संयुक्त राष्ट्र ने पुराने प्रतिबंधों को दोबारा लागू करने का निर्णय लिया।
तुर्की ने 2006, 2015 और 2021 में भी संयुक्त राष्ट्र की सिफारिशों पर इसी तरह के कदम उठाए थे। इस बार का फैसला दिखाता है कि अंकारा अंतरराष्ट्रीय समुदाय के साथ खड़ा है और ईरान के परमाणु कार्यक्रम को रोकने के प्रयासों में शामिल है।
यह ध्यान देने योग्य है कि तुर्की और ईरान के बीच आर्थिक और राजनीतिक संबंध जटिल हैं। दोनों देश कई क्षेत्रों में व्यापार और सहयोग करते हैं, लेकिन ईरान के परमाणु कार्यक्रम को लेकर तुर्की ने स्पष्ट संकेत दिया है कि वह वैश्विक दबाव का हिस्सा बनेगा। संक्षेप में, तुर्की का यह कदम ईरान के लिए एक झटका है।