यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोडिमिर ज़ेलेंस्की इन दिनों लड़ाकू विमानों की खरीद में व्यस्त हैं। पिछले 30 दिनों में, उन्होंने 250 आधुनिक लड़ाकू विमानों की खरीद के लिए दो ‘रुचि पत्र’ (Letter of Interest – LOI) पर हस्ताक्षर किए हैं। कुछ दिन पहले, उन्होंने स्वीडन से 150 साब ग्रिपेन-ई (Saab Gripen-E) लड़ाकू विमान खरीदने के लिए एक रुचि पत्र पर हस्ताक्षर किए। यदि यह सौदा पूरा हो जाता है, तो कीव ग्रिपेन-ई विमानों का दुनिया का सबसे बड़ा ऑपरेटर बन जाएगा। यूक्रेन में ग्रिपेन ई/एफ (Gripen E/F) जेट की संख्या उनके निर्माता देश स्वीडन से भी अधिक हो जाएगी।

यूक्रेन फ्रांस से 100 राफेल (Rafale) विमान भी खरीद सकता है। 17 नवंबर को, ज़ेलेंस्की ने फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों के साथ एसएएमपी/टी (SAMP/T) अगली पीढ़ी की वायु रक्षा प्रणाली और 100 राफेल लड़ाकू विमानों की खरीद के लिए एक रुचि पत्र पर हस्ताक्षर किए। यदि यह रुचि पत्र एक औपचारिक समझौते में बदल जाता है, तो यूक्रेन राफेल विमानों का सबसे बड़ा विदेशी ऑपरेटर बन जाएगा। यह संयुक्त अरब अमीरात (UAE) को पीछे छोड़ देगा, जिसने दिसंबर 2021 में लगभग 19 बिलियन डॉलर में 80 राफेल F4 वेरिएंट खरीदने का सौदा किया था।
हालांकि, यह देखना बाकी है कि क्या यूक्रेन 30 दिनों के भीतर 250 लड़ाकू विमानों के लिए अपने रुचि पत्रों को वास्तविक अनुबंधों में बदल पाता है।
**रुचि पत्र क्या होता है?**
यूक्रेन के 250 उन्नत लड़ाकू विमानों के लिए रुचि पत्र ने सुर्खियां बटोरी हैं, लेकिन ये औपचारिक समझौते नहीं हैं। इनमें किसी भी पक्ष के लिए कोई बाध्यकारी दायित्व नहीं होता है। रुचि पत्र केवल राजनीतिक इरादे को दर्शाता है, न कि अंतिम खरीद या बिक्री को। कोई भी पक्ष किसी भी स्तर पर पीछे हट सकता है।
इस पर हस्ताक्षर करना, सौदा पक्का करने से कहीं आसान है। उदाहरण के लिए, फ्रांस के साथ यूक्रेन के वर्तमान रुचि पत्र में 10 वर्षों में 100 राफेल की आपूर्ति की प्रतिबद्धता का उल्लेख है। इसमें मूल्य, डिलीवरी शेड्यूल, वित्तपोषण या यूक्रेन अपनी धनराशि से भुगतान करेगा या यूरोपीय एकजुटता कार्यक्रमों के माध्यम से, जैसे विवरण शामिल नहीं हैं।
**अनसुलझे सवाल**
रुचि पत्र यह स्पष्ट नहीं करता है कि सौदे में हथियारों के पैकेज या लड़ाकू पायलट प्रशिक्षण शामिल हैं या नहीं। इसमें प्रौद्योगिकी हस्तांतरण, स्थानीय स्तर पर पुर्जे खरीदने की आवश्यकता वाली ऑफसेट शर्तों या कितने विमान तैयार-टू-फ्लाई (ready-to-fly) वितरित किए जाएंगे बनाम यूक्रेन में असेंबल किए जाएंगे, इसका कोई उल्लेख नहीं है।
**कैसे भारत ने फ्रांस को गंवाए 90 राफेल**
2012 में, भारत ने एक दशक तक चली मीडियम मल्टी-रोल कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (MMRCA) प्रतियोगिता के बाद फ्रांस से 126 राफेल लड़ाकू विमानों का चयन किया था। इनमें से 18 विमान तैयार-टू-फ्लाई वितरित किए जाने थे और 108 का निर्माण हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) द्वारा भारत में किया जाना था, जिसमें व्यापक प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और ऑफसेट क्लॉज शामिल थे।
भारत ने अंतिम अनुबंध के लिए विस्तृत बातचीत शुरू करने के लिए डसॉल्ट एविएशन (Dassault Aviation) को एक आशय पत्र (Letter of Intent) जारी किया था।
**भारत ने सभी 126 राफेल क्यों नहीं खरीदे?**
मूल्य निर्धारण पर असहमति, औद्योगिक ऑफसेट और हथियारों के एकीकरण की गारंटी ने भारतीय वायु सेना और डसॉल्ट के बीच गतिरोध पैदा कर दिया। राफेल निर्माण फर्म ने HAL में निर्मित विमानों के प्रदर्शन की जिम्मेदारी लेने से इनकार कर दिया।
बातचीत लंबी खिंचती रही। इस बीच, 2014 में भारत में सरकार बदल गई, और पिछली सरकार द्वारा हस्ताक्षरित कई रक्षा सौदों को लेकर भ्रष्टाचार के आरोप सामने आए।
**फ्रांस के साथ अंतिम सौदा**
मोदी सरकार ने 2015 में मूल 126-राफेल सौदे को रद्द कर दिया। इसके बाद, एक सरकारी-से-सरकारी समझौते के तहत भारत ने केवल 36 राफेल तैयार-टू-फ्लाई खरीदे।
इसके परिणामस्वरूप, फ्रांस को लगभग 90 लड़ाकू विमानों का नुकसान हुआ, जो मूल रूप से भारत के लिए नियोजित थे।





