लेबनान में हिज़्बुल्लाह को हथियार डालने के लिए मजबूर करने की अमेरिकी कोशिशों को एक बड़ा झटका लगा है। अमेरिकी दूतों ने लेबनानी नेतृत्व पर दबाव बनाने की कोशिश की, लेकिन सेना ने स्पष्ट कर दिया है कि वह प्रतिरोध के खिलाफ कोई भी ऐसा कदम नहीं उठाएगी जिससे देश की शांति भंग हो।
17 अगस्त को अमेरिकी प्रतिनिधि थॉमस बैरक और मॉर्गन ऑर्टेगस बेरूत पहुंचे और उन्होंने राष्ट्रपति जोसेफ औन, प्रधानमंत्री नवाफ सलाम और संसद अध्यक्ष नबीह बेरी से मुलाकात की। बैरक ने सेना प्रमुख जनरल रोडोल्फ हेकल से सीधे पूछा कि क्या सेना हिज़्बुल्लाह को हथियार डालने के लिए मजबूर कर सकती है। जनरल हेकल का जवाब स्पष्ट था: सेना ऐसा कोई कदम नहीं उठाएगी जो देश की शांति के खिलाफ हो।
सलाम सरकार ने हाल ही में एक रोडमैप पारित किया है, जिसके तहत अगले वर्ष तक हिज़्बुल्लाह को निशस्त्र करने की योजना है। लेकिन सरकार अब खुद संकट में फंसी है। लेबनानी अधिकारियों ने अमेरिकी दूतों से कहा है कि यदि कोई कदम उठाना है तो इज़राइल को भी समानांतर कदम उठाने होंगे। शिया समुदाय ने हथियार डालने से इनकार कर दिया और कहा कि वे अपने हथियारों की रक्षा करेंगे, चाहे उन्हें कर्बला जैसी जंग लड़नी पड़े।
जाफरी मुफ्ती अहमद कबालान ने लेबनानी राष्ट्रपति औन को संदेश दिया कि हिज़्बुल्लाह को कमजोर करने की युद्धोन्मादी बयानबाजी देश को और गहरे संकट में धकेल सकती है। उन्होंने कहा कि हिज़्बुल्लाह के हथियार सेना के साथ मिलकर लेबनान की सुरक्षा के लिए ज़रूरी हैं। इज़राइल ने भी दक्षिणी लेबनान में अपनी चौकियों को मजबूत किया है और इज़राइली सेना प्रमुख एयाल जामिर ने कब्जाए इलाकों से पीछे हटने से इनकार कर दिया, जिससे लेबनानी सरकार की मुश्किलें बढ़ गई हैं।
अमेरिकी दूतों ने बातचीत में दावा किया कि इज़राइल को भी अंतरराष्ट्रीय नियमों का पालन करना होगा, लेकिन लेबनानी नेताओं को इन वादों पर भरोसा नहीं है। उन्हें याद दिलाया जा रहा है कि पिछले साल अमेरिका शांति की बात कर रहा था, और उसी दौरान हिज़्बुल्लाह के वरिष्ठ कमांडर फौआद शुकर की हत्या हो गई थी। इसी तरह, हालिया युद्ध की शुरुआत में अमेरिकी आश्वासनों के बावजूद हिज़्बुल्लाह प्रमुख सैय्यद हसन नसरल्लाह की हत्या हुई।