विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने बच्चों को शारीरिक दंड देना एक वैश्विक सार्वजनिक स्वास्थ्य चिंता घोषित किया है। WHO ने माना है कि बच्चों को किसी गलती पर मारना या डांटना उनके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को गंभीर नुकसान पहुंचाता है, साथ ही यह उनमें आपराधिक व्यवहार को जन्म दे सकता है।
WHO ने निम्न और मध्यम आय वाले 49 देशों में एक सर्वेक्षण किया, जिसमें पाया गया कि शारीरिक दंड का सामना करने वाले बच्चे, जिन्हें मारा गया हो या कुछ हद तक दर्द या असुविधा पैदा करने के लिए कोई सजा दी गई हो, ऐसे बच्चों के विकास की संभावना उन बच्चों की तुलना में 24% कम थी, जो शारीरिक दंड के संपर्क में नहीं आए थे।
दुनिया भर में, औसतन 1.2 अरब बच्चे हर साल शारीरिक दंड का शिकार होते हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले महीने शारीरिक दंड का शिकार हुए सभी बच्चों में से 17% को गंभीर रूप से दंडित किया गया, जैसे कि सिर, चेहरे या कान पर चोट लगना, या जोर से और बार-बार मारा जाना।
माता-पिता, शिक्षक या चाइल्ड केयर टेकर बच्चों के साथ ऐसा क्यों कर रहे हैं? इसके जवाब में, वे कहते हैं, “वह अपने बच्चे को सुधारना चाहते हैं, उसे डिसिप्लिन में रखना चाहते हैं। बच्चों को मारना हमारे प्यार का नतीजा है, हम चाहते हैं कि वह बिगड़ न जाए।” लेकिन ये तर्क सही नहीं हैं।
WHO के डिपार्टमेंट फॉर हेल्थ डिटरमिनेंट, प्रमोशन एंड प्रीवेंशन के डायरेक्टर एटिएन क्रुग ने कहा, “अब इस बात के स्पष्ट वैज्ञानिक प्रमाण मौजूद हैं कि शारीरिक दंड बच्चों के स्वास्थ्य के लिए कई तरह के जोखिम पैदा करता है, इससे बच्चों के व्यवहार, विकास या कल्याण को कोई फायदा नहीं होता और न ही माता-पिता या समाज को इससे कोई लाभ होता है।”
फोर्टिस हेल्थकेयर में क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट अनुना बोर्डोलोई ने बताया कि बच्चों को मारना-पीटना या कोई भी सख्त सजा देना उनके गुस्से और जिद्दीपन में इजाफा करता है। इसलिए, फिजिकल पनिशमेंट सही रास्ता नहीं है।
अनुना ने फिजिकल पनिशमेंट की जगह दूसरे उपाय अपनाने की सलाह दी, जिसमें:
* तार्किक बातचीत: बच्चे को प्यार से समझाएं कि उसका व्यवहार गलत क्यों है और उसके क्या नतीजे हो सकते हैं।
* अच्छे व्यवहार की तारीफ करना: जब बच्चा अच्छा करे, उसे जरूर शाबाशी दें और उसकी हौसला अफजाई करें। इससे वह वही अच्छा व्यवहार दोहराना चाहेगा।
इन तरीकों से बच्चे का व्यवहार बिना डराए-धमकाए और प्यार से सुधारा जा सकता है।
संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास 2030 एजेंडे के कई लक्ष्यों में बच्चों के खिलाफ हिंसा को खत्म करने का आह्वान किया गया है, इसके लक्ष्य 16.2 में साफ तौर से कहा गया है, “बच्चों के खिलाफ दुर्व्यवहार, शोषण, तस्करी और सभी प्रकार की हिंसा और यातना को समाप्त होनी चाहिए,” लेकिन महज 5 साल बचने के बाद भी इस पर लगाम नहीं लग पाई है।
शारीरिक दंड दुनिया भर में और विभिन्न संस्कृतियों में प्रचलित है, फिर भी क्षेत्र के हिसाब से इसमें फर्क देखने मिलता है। उदाहरण के लिए, यूरोप और मध्य एशिया में करीब 41% बच्चों को घरों में शारीरिक दंड दिया जाता है, जबकि मध्य पूर्व और उत्तरी अफ्रीका में यह आंकड़ा 75% है।
स्कूलों में यह असमानता और भी ज़्यादा है, पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र में सिर्फ 25% बच्चे ही अपनी स्कूली शिक्षा के दौरान शारीरिक दंड का अनुभव करते हैं, जबकि अफ्रीका और मध्य अमेरिका में यह आंकड़ा 70% से ज़्यादा है। अगर लड़कियों और लड़कों की बात करें, तो दोनों को लगभग समान रूप से इसका अनुभव करना पड़ता है। हालांकि कई जगह लड़कियों को अलग व्यवहार और अलग-अलग तरीकों से दंड मिल सकता है।
रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि विकलांग बच्चों को शारीरिक दंड मिलने का खतरा ज्यादा होता है। इसके अलावा, गरीब समुदायों और आर्थिक या नस्लीय भेदभाव का सामना करने वाले समुदायों में शारीरिक दंड मिलने की संभावना बढ़ जाती है।
शारीरिक दंड के साथ अक्सर मनोवैज्ञानिक दंड भी जुड़ा होता है, जिसमें बच्चे को नीचा दिखाना, अपमानित करना, डराना शामिल होता है। कई समाजों में शारीरिक दंड को गलत नहीं समझा जाता है, कई समुदायों में धर्म और सांस्कृतिक परंपराओं से भी इसे जोड़ा जाता है।
आज 193 में से 68 देशों में शारीरिक दंड पर पूरी तरह से प्रतिबंध है। इस पर प्रतिबंध लगाने वाला पहला देश स्वीडन था, जिसने 1979 में ऐसा किया था। ब्रिटेन में स्कॉटलैंड और वेल्स में यह प्रतिबंधित है, लेकिन इंग्लैंड और उत्तरी आयरलैंड में घरेलू परिस्थितियों में अभी भी इसकी इजाजत है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि इसको रोकने के लिए कानून लागू करने के साथ-साथ जागरूकता बढ़ाने के अभियान भी चलाए जाने चाहिए। अनुना बोर्डोलोई कहती हैं, “हम माता-पिता को यह समझा सकते हैं कि मार-पीट का बच्चों के दिमाग और मन पर बुरा असर पड़ता है। उन्हें प्यार और समझ से सिखाने के नए तरीके बताकर मदद कर सकते हैं। एक बात और, बच्चे जो देखते हैं, वही सीखते हैं। इसलिए अगर माता-पिता चाहते हैं कि उनके बच्चे अच्छा व्यवहार करें, तो सबसे पहले खुद भी वैसा ही करके दिखाना चाहिए।”
रिपोर्ट से पता चलता है कि अगर माता-पिता बच्चों के लिए दंड के दूसरे और ज्यादा प्रभावी तरीकों के बारे में जानते, तो वे उनका इस्तेमाल करेंगे।