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आपराधिक मुकदमों के आधार पर नियुक्ति से इंकार करते समय नैसर्गिक न्याय का करें पालन

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा है कि चयनित अभ्यर्थी को उस पर दर्ज आपराधिक मुकदमों के आधार पर नियुक्ति देने से इंकार करते समय नैसर्गिक न्याय के सिद्धांतों का पालन करना अनिवार्य है। अभ्यर्थी को उसके खिलाफ उपलब्ध तथ्यों से अवगत करना आवश्यक है ताकि वह उन तथ्यों को पेश कर सके जो उसके पक्ष में है। यदि आवश्यक हो तो अभ्यर्थी को निष्पक्ष सुनवाई का मौका भी दिया जाए। यूपी पुलिस कांस्टेबल पद चयनित अभ्यर्थी सनी कुमार की याचिका पर सुनवाई कर रहे न्यायमूर्ति अजय भनोट ने यह आदेश दिया। याची को जालौन पुलिस ने उसके खिलाफ दर्ज मुकदमों को देखते हुए नियुक्ति देने से इंकार कर दिया था। याची का कहना था कि उसने पूरी ईमानदारी से अपने खिलाफ लंबित आपराधिक मुकदमों की जानकारी दी थी। दो मुकदमों में उसके खिलाफ आरोपपत्र दाखिल नहीं हुए हैं। जबकि राज्य सरकार के अधिवक्ता का कहना था कि याची के खिलाफ कई आपराधिक मुकदमे दर्ज हैं जिनमें से एक नैतिक अधमता का भी है। मामले की सुनवाई करते हुए कोर्ट ने सुप्रीमकोर्ट द्वारा अवतार सिंह केस में दिए निर्णय पर भी विचार किया।  अवतार सिंह केस में सुप्रीमकोर्ट ने कहा है कि जहां कर्मचारी ने अपने खिलाफ उन सभी मुकदमों की जानकारी दी है जो पूरे हो चुके हैं वहां भी नियोक्ता के पास अन्य बातों का विचार करने का अधिकार है और नियोक्ता को ऐसे अभ्यर्थी को नियुक्ति देने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है। सनी कुमार के मामले में कोर्ट ने कहा कि याची को नियुक्ति देने से इंकार करने से पूर्व  सुनवाई का पूरा मौका दिया गया है। इसलिए मामले में हस्तक्षेप करने का कोई औचित्य नहीं है। कोर्ट ने कहा कि पुलिस एक अनुशासित बल है। कानून व्यवस्था कायम करना उसकी जिम्मेदारी है। इनसे अच्छे चरित्र की अपेक्षा की जाती है।