काशी की अड़भंगी होली का रंग देश भर में अनूठा है। बाबा विश्वनाथ जहां अपने भक्तों के संग रंगों से होली खेलते हैं तो अपने गणों के साथ चिता-भस्म से। इसी तरह काशी की होलिकाओं का भी अपना अलग ही अंदाज है। गंगा घाट से लेकर वरुणा पार तक काशी ने अपनी प्राचीनता को संजो कर रखा है।
विश्व की प्राचीनतम नगरी काशी में होलिकाओं का स्वरूप भी उतना ही प्राचीन है। हर मोहल्ले, चौराहे और गलियों में होलिका दहन की परंपरा निभाई जाती है। काशी में कई होलिकाएं ऐसी भी हैं जो कई सदियों से जलती आ रही हैं। शीतलाघाट की होलिका जहां गंगा से भी प्राचीन मानी जाती है वहीं कचौड़ी गली की होलिका 14वीं शताब्दी से जलती आ रही है। आगे की स्लाइड्स में जानते हैं इनके बारे में…
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