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Keshav Baliram Hedgewar Biography

डॉ. केशवराव बलिराम हेडगेवार : जीवन परिचय


राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के संस्थापक डॉ केशव बलिराम हेडगेवार का जन्म एक अप्रैल 1889 को नागपुर में हुआ था। ब्रिटिश झंडा हटाने के लिए बचपन में खोद दी थी सुरंग।

आरएसएस की 30 साल की तपस्‍या का नतीजा है मणिपुर में भाजपा की जीत, 99 फीसदी ईसाई वोटर्स वाली सीट पर भी दिलाई जीत।

  राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ विश्व में सबसे बड़ी सर्वाधिक सदस्यों वाली संस्कृत्तिक गैर राजनितिक संस्था है।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ विश्व में सबसे बड़ी सर्वाधिक सदस्यों वाली संस्कृत्तिक गैर राजनितिक संस्था है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के संस्थापक डॉ केशव बलिराम हेडगेवार का जन्म एक अप्रैल 1889 को नागपुर में हुआ था। पेशे से चिकित्सक हेडगेवार ने 1925 में महज 36 साल की उम्र में में आरएसएस की स्थापना की थी।
21 जून 1940 को हुई उनकी मृत्यु से लेकर आज तक उनके व्यक्तित्व का मूल्यांकन अलग-अलग विद्वानों ने अलग-अलग नजरिए से किया है. इस दौरान हेडगेवार पर लिखने वालों ने अपने-अपने वैचारिक आग्रह के अनुरूप तमाम मिथक भी गढ़े हैं और तमाम सच्चाइयों की अनदेखी भी की गई है.
हेडगेवार को लेकर दो अहम सवाल अक्सर सुनने में आते हैं. पहला, स्वतंत्रता की लड़ाई में हेडगेवार की भूमिका क्या थी, और दूसरा यह कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना के पीछे हेडगेवार का उद्देश्य क्या था? इन सवालों की सतह पर जमी धूल हटाने पर तमाम ऐसे तथ्य सामने आते हैं जो डॉ हेडगेवार के बहुआयामी व्यक्तित्व को दिखाते हैं. डॉ हेडगेवार शुरुआती दिनों में बाल गंगाधर तिलक से प्रेरित स्वतंत्रता आंदोलन के प्रतिबद्ध सेनानी के रूप में नजर आते हैं. हालांकि उनके जीवन से जुड़े इस पक्ष पर खास वैचारिक आग्रह वाले इतिहासकारों ने पूरी ईमानदारी से काम नहीं किया है.
देशभक्ति का भाव और अंग्रेजों के प्रति विद्रोह की मंशा हेडगेवार के मन में बचपन से थी. ब्रिटेन की महारानी विक्टोरिया के राज्यारोहण के साठ वर्ष पूरे होने के अवसर पर 22 जून 1897 को भारत में जश्न मनाने का आदेश हुकूमत द्वारा दिया गया था.
आठ वर्ष के बालक केशव बलिराम हेडगेवार के स्कूल में भी मिठाई बंटी. लेकिन बालक केशव मिठाई अस्वीकार करते हुए कहा, ‘लेकिन वह हमारी महारानी तो नहीं हैं.’ एक और प्रकरण 1901 का है. इंग्लैण्ड के राजा एडवर्ड सप्तम के राज्यारोहण का विरोध करते हुए हेडगेवार ने कहा था, ‘विदेशी राजा का राज्यारोहण मनाना हमारे लिए शर्म की बात है.’ भारत सरकार के प्रकाशन विभाग द्वारा प्रकाशित पुस्तक आधुनिक भारत के निर्माता में लिखा है कि नागपुर के सीताबर्डी किले के ऊपर अंग्रेजी हुकूमत का प्रतीक यूनियन जैक, उन्हें मन ही मन कचोटता था.
हेडगेवार में देशभक्ति की भावना बचपन से ही प्रबल थी और इसका प्रमाण बचपन से मिलने लगा था। ऐसी ही एक घटना का जिक्र हेडगेवार की आधिकारिक जीवन में किया गया है। इस जीवनी के लेखक हैं नाना पालकर जो आरएसएस के स्वयंसेवक थे। जीवनी की भूमिका संघ के दूसरे प्रमुख माधव सदाशिवराव गोलवरकर ने लिखी थी।
जीवनीकार के अनुसार स्कूली जीवन में ही छत्रपति शिवाजी महाराज की जीवनी पढ़कर बालक हेडगेवार के मन में ब्रिटिश शासन के खिलाफ विचारों के बीज पड़ गये थे। नागपुर के सीताबर्डी किले पर ब्रिटिश शासन का प्रतीक “यूनियन जैक” फहरता देख बालक हेडगेवार और उसके दोस्तों की आत्मसम्मान आहत होता था। हेडगेवार और उनके दोस्तों ने सोचा कि अगर यूनियन जैक को हटाकर वहां भगवा ध्वज फहरा दिया जाए तो किला फतह हो जाएगा।
सभी बच्चों ने अपनी मंशा को अंजाम देने के लिए योजना बनानी शुरू कर दी। किले पर हर दम पहरा रहता था इसलिए उन सबने तय किया कि वो पाठशाला से किले तक एक सुरंग बनायी जाएगी और उसके रास्ते अंदर घुसकर ब्रिटिश झंडा हटा दिया जाएगा। योजना बनते ही उस पर अमल भी शुरू हो गया। हेडगेवार और उनके दोस्त जिस वेदशाला में पढ़ते थे वो प्रसिद्ध विद्वान श्री नानाजी वझे के नेतृत्व में चल रही थी। योजना के अनुरूप पढ़ाई के कमरे में बच्चों ने कुदाल-फावड़े से सुरंग खोदने का काम शुरू कर दिया। बच्चों की इस गुप्त योजना के परिणामस्वरूप नानाजी वझे के घर का पढ़ाई का कमरा कुछ ज्यादा ही बंद रहने लगा। कुछ दिनों बाद पढ़ाई के कमरे को अक्सर बंद देखकर नानाजी वझे को शंका हुई। अपनी शंका के निराकरण के लिए जब वो कमरे के अंदर गए तो वहां एक तरफ गड्ढा खुदा हुआ था और दूसरी तरफ मिट्टी का ढेर लगा था।
गुरु ने रंगे हाथ चोरी पकड़ ली ये सोचकर बालक हेडगेवार और उनके दोस्त भय से सहम गए। लेकिन उनके नानाजी वझे ने उन्हें पीटने की जगह पूछा कि “ये क्या व्यर्थ का उद्यम लगा रखा है?” हेडगेवार और उनके मित्रों ने सच-सच बता दिया। बच्चों की बात सुनकर नानाजी वझे  ने उन्हें समझाया कि इस प्रकार व्यर्थ के पचड़ों में समय बर्बाद नहीं करना चाहिए। लेकिन वो मन-मन अपने शिष्यों के अंदर पल रहे देशभक्ति की भावना देखकर बहुत खुश हुए।
जीवनीकार के नाते जब हेडगेवार उच्च शिक्षा के लिए कोलकाता चले गए तब नानाजी वझे इस घटना की दूसरों के संग अक्सर चर्चा किया करते थे। हेडगेवार डॉक्टरी की पढ़ाई करने के बाद 1915 में नागपुर लौटे और डॉक्टर के तौर प्रैक्टिस करने लगे।शुरुआत में वो गांधीजी के नेतृत्व में कांग्रेस से जुड़े रहे। 1925 में आरएसएस की स्थापना के बाद भी वो कुछ साल कांग्रेस से जुड़े रहे थे लेकिन बाद में वो कांग्रेस से पूरी तरह अलग हो गए थे। 21 जून 1940 को 51 वर्ष की उम्र में उनका नागपुर में निधन हो गया।

 21 जून को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक और प्रथम सर संघचालक डॉ केशव बलिराम हेडगेवार की पुण्यतिथि है. 21 जून 1940 को हुई उनकी मृत्यु से लेकर आज तक उनके व्यक्तित्व का मूल्यांकन अलग-अलग विद्वानों ने अलग-अलग नजरिए से किया है. इस दौरान हेडगेवार पर लिखने वालों ने अपने-अपने वैचारिक आग्रह के अनुरूप तमाम मिथक भी गढ़े हैं और तमाम सच्चाइयों की अनदेखी भी की गई है.
हेडगेवार को लेकर दो अहम सवाल अक्सर सुनने में आते हैं. पहला, स्वतंत्रता की लड़ाई में हेडगेवार की भूमिका क्या थी, और दूसरा यह कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना के पीछे हेडगेवार का उद्देश्य क्या था? इन सवालों की सतह पर जमी धूल हटाने पर तमाम ऐसे तथ्य सामने आते हैं जो डॉ हेडगेवार के बहुआयामी व्यक्तित्व को दिखाते हैं. डॉ हेडगेवार शुरुआती दिनों में बाल गंगाधर तिलक से प्रेरित स्वतंत्रता आंदोलन के प्रतिबद्ध सेनानी के रूप में नजर आते हैं. हालांकि उनके जीवन से जुड़े इस पक्ष पर खास वैचारिक आग्रह वाले इतिहासकारों ने पूरी ईमानदारी से काम नहीं किया है.
हेडगेवार का बचपन और स्वाधीनता का भाव
देशभक्ति का भाव और अंग्रेजों के प्रति विद्रोह की मंशा हेडगेवार के मन में बचपन से थी. ब्रिटेन की महारानी विक्टोरिया के राज्यारोहण के साठ वर्ष पूरे होने के अवसर पर 22 जून 1897 को भारत में जश्न मनाने का आदेश हुकूमत द्वारा दिया गया था.
आठ वर्ष के बालक केशव बलिराम हेडगेवार के स्कूल में भी मिठाई बंटी. लेकिन बालक केशव मिठाई अस्वीकार करते हुए कहा, ‘लेकिन वह हमारी महारानी तो नहीं हैं.’ एक और प्रकरण 1901 का है. इंग्लैण्ड के राजा एडवर्ड सप्तम के राज्यारोहण का विरोध करते हुए हेडगेवार ने कहा था, ‘विदेशी राजा का राज्यारोहण मनाना हमारे लिए शर्म की बात है.’ भारत सरकार के प्रकाशन विभाग द्वारा प्रकाशित पुस्तक आधुनिक भारत के निर्माता में लिखा है कि नागपुर के सीताबर्डी किले के ऊपर अंग्रेजी हुकूमत का प्रतीक यूनियन जैक, उन्हें मन ही मन कचोटता था.
वह बचपन से ही क्रांतिकारी प्रवृति के थे और उन्हें अंग्रेज शासको से घृणा थी | अभी स्कूल में ही पढ़ते थे कि अंग्रेज इंस्पेक्टर के स्कूल में निरिक्षण के लिए आने पर केशव राव (Keshav Baliram Hedgewar) ने अपने कुछ सहपाठियों के साथ उनका “वन्दे मातरम” जयघोष से स्वागत किया जिस पर वह बिफर गया और उसके आदेश पर केशव राव को स्कूल से निकाल दिया गया | तब उन्होंने मैट्रिक तक अपनी पढाई पूना के नेशनल स्कूल में पुरी की |
उन्होंने 1925 में विजय दशमी के अवसर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की स्थापना की थी, लेकिन इसे यह नाम एक वर्ष बाद दिया गया। इस संगठन के बारे में पहली घोषणा एक साधारण वाक्य – ‘’मैं आज संघ (संगठन) की स्थापना की घोषणा करता हूं‘’  के साथ की गई। इस संगठन को आरएसएस का नाम साल भर के गहन विचार-विमर्श और अनेक सुझावों के बाद दिया गया, जिनमें – भारत उद्धारक मंडल (जिसका अस्पष्ट अनुवाद- भारत को पुनर्जीवित करने वाला समाज) और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ शामिल थे। इसका प्रमुख उद्देश्य आंतरिक झगड़ों का शिकार न बनने वाले समाज की रचना करना और एकजुटता कायम करना था, ताकि भविष्य में कोई भी हमें अपना गुलाम न बना सके। इससे पहले वे कांग्रेस के सक्रिय सदस्य और कांग्रेस के प्रसिद्ध नागपुर अधिवेशन के आयोजन के सह-प्रभारी रह चुके थे। उन्होंने असहयोग आंदोलन में भाग लिया था और  आजादी के लिए जोशीले भाषण देने के कारण उन्हें एक साल के सश्रम कारावास की सजा सुनाई गई थी। वह अनुशीलन समिति के क्रांतिकारियों और उसके नेता पुलिन बिहारी बोस के साथ संबंधों के कारण भी ब्रिटेन के निशाने पर  थे।
जब हेडगेवार पर लगा राजद्रोह का मुकदमा
1908 में दशहरे के दौरान रामपायली गांव की सीमा के पास वर्षों से चला आ रहा सीमोलंघन का कार्यक्रम आयोजित किया गया था. इस कार्यक्रम को संबोधित करते हुए हेडगेवार ने कहा था कि आज हम अनेक सीमाओं में बंधे हैं. उन्हें पार करना हमारा कर्तव्य है. सबसे बड़ी पीड़ादायक और शर्मनाक बात हमारा परतंत्र होना है. अत: अंग्रेजों को सात समुंदर पार भेज देना ही सही मायने में सीमोलंघन कहा जाएगा.
प्रोफेसर राकेश सिन्हा ने अपनी पुस्तक में लिखा है कि इस भाषण के बाद वहां वंदेमातरम गूंजने लगा और इसके लिए डॉ हेडगेवार के ऊपर धारा 108 के तहत अंग्रेजी हुकूमत ने ‘राजद्रोह’ का मुकदमा दर्ज करा दिया. अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह मामले में यह उनकी पहली गिरफ्तारी थी.
जमानत के बाद रामपायली में उनके भाषण पर प्रतिबंध लगा दिया गया था. बीसवीं शताब्दी का पहला दशक बीतते-बीतते हेडगेवार को अंग्रेजी हुकूमत वाली सरकार अपने लिए खतरा मानने लगी थी. इसका प्रमाण 1914 में तत्कालीन अंग्रेज हुकूमत वाली भारत सरकार के क्रिमिनल इंटेलिजेंस द्वारा भारत के राजनीतिक अपराधियों की एक पुस्तिका से मिलता है. इस सूचि में उन लोगों को शामिल किया गया था जो क्रांतिकारी संगठनों से जुड़े थे और अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ गर्म विद्रोह को हवा दे रहे थे. इस ‘बुक 1914’ में हेडगेवार का नाम भी शामिल था.

21 जून को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक और प्रथम सर संघचालक डॉ केशव बलिराम हेडगेवार की पुण्यतिथि है. 21 जून 1940 को हुई उनकी मृत्यु से लेकर आज तक उनके व्यक्तित्व का मूल्यांकन अलग-अलग विद्वानों ने अलग-अलग नजरिए से किया है. इस दौरान हेडगेवार पर लिखने वालों ने अपने-अपने वैचारिक आग्रह के अनुरूप तमाम मिथक भी गढ़े हैं और तमाम सच्चाइयों की अनदेखी भी की गई है.
हेडगेवार को लेकर दो अहम सवाल अक्सर सुनने में आते हैं. पहला, स्वतंत्रता की लड़ाई में हेडगेवार की भूमिका क्या थी, और दूसरा यह कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना के पीछे हेडगेवार का उद्देश्य क्या था? इन सवालों की सतह पर जमी धूल हटाने पर तमाम ऐसे तथ्य सामने आते हैं जो डॉ हेडगेवार के बहुआयामी व्यक्तित्व को दिखाते हैं. डॉ हेडगेवार शुरुआती दिनों में बाल गंगाधर तिलक से प्रेरित स्वतंत्रता आंदोलन के प्रतिबद्ध सेनानी के रूप में नजर आते हैं. हालांकि उनके जीवन से जुड़े इस पक्ष पर खास वैचारिक आग्रह वाले इतिहासकारों ने पूरी ईमानदारी से काम नहीं किया है.
हेडगेवार का बचपन और स्वाधीनता का भाव
देशभक्ति का भाव और अंग्रेजों के प्रति विद्रोह की मंशा हेडगेवार के मन में बचपन से थी. ब्रिटेन की महारानी विक्टोरिया के राज्यारोहण के साठ वर्ष पूरे होने के अवसर पर 22 जून 1897 को भारत में जश्न मनाने का आदेश हुकूमत द्वारा दिया गया था.
आठ वर्ष के बालक केशव बलिराम हेडगेवार के स्कूल में भी मिठाई बंटी. लेकिन बालक केशव मिठाई अस्वीकार करते हुए कहा, ‘लेकिन वह हमारी महारानी तो नहीं हैं.’ एक और प्रकरण 1901 का है. इंग्लैण्ड के राजा एडवर्ड सप्तम के राज्यारोहण का विरोध करते हुए हेडगेवार ने कहा था, ‘विदेशी राजा का राज्यारोहण मनाना हमारे लिए शर्म की बात है.’ भारत सरकार के प्रकाशन विभाग द्वारा प्रकाशित पुस्तक आधुनिक भारत के निर्माता में लिखा है कि नागपुर के सीताबर्डी किले के ऊपर अंग्रेजी हुकूमत का प्रतीक यूनियन जैक, उन्हें मन ही मन कचोटता था.
बडे भाई से प्रेरणा
केशव के सबसे बड़े भाई महादेव भी शास्त्रों के अच्छे ज्ञाता तो थे ही मल्ल-युद्ध की कला में भी बहुत माहिर थे। वे रोज अखाड़े में जाकर स्वयं तो व्यायाम करते ही थे गली-मुहल्ले के बच्चों को एकत्र करके उन्हें भी कुश्ती के दाँव-पेंच सिखलाते थे। महादेव भारतीय संस्कृति और विचारों का बड़ी सख्ती से पालन करते थे। केशव के मानस-पटल पर बडे भाई महादेव के विचारों का गहरा प्रभाव था। किन्तु वे बडे भाई की अपेक्षा बाल्यकाल से ही क्रान्तिकारी विचारों के थे। जिसका परिणाम यह हुआ कि वे डॉक्टरी पढ़ने के लिये कलकत्ता गये और वहाँ से उन्होंने कलकत्ता मेडिकल कॉलेज से प्रथम श्रेणी में डॉक्टरी की परीक्षा भी उत्तीर्ण की; परन्तु घर वालों की इच्छा के विरुद्ध देश-सेवा के लिए नौकरी का प्रस्ताव अस्वीकार कर
दिया। डॉक्टरी करते करते ही उनकी तीव्र नेतृत्व प्रतिभा को भांप कर उन्हें हिन्दू महासभा बंगाल प्रदेश का उपाध्यक्ष मनोनीत किया गया
जब हेडगेवार पर लगा राजद्रोह का मुकदमा
1908 में दशहरे के दौरान रामपायली गांव की सीमा के पास वर्षों से चला आ रहा सीमोलंघन का कार्यक्रम आयोजित किया गया था. इस कार्यक्रम को संबोधित करते हुए हेडगेवार ने कहा था कि आज हम अनेक सीमाओं में बंधे हैं. उन्हें पार करना हमारा कर्तव्य है. सबसे बड़ी पीड़ादायक और शर्मनाक बात हमारा परतंत्र होना है. अत: अंग्रेजों को सात समुंदर पार भेज देना ही सही मायने में सीमोलंघन कहा जाएगा.
प्रोफेसर राकेश सिन्हा ने अपनी पुस्तक में लिखा है कि इस भाषण के बाद वहां वंदेमातरम गूंजने लगा और इसके लिए डॉ हेडगेवार के ऊपर धारा 108 के तहत अंग्रेजी हुकूमत ने ‘राजद्रोह’ का मुकदमा दर्ज करा दिया. अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह मामले में यह उनकी पहली गिरफ्तारी थी.
जमानत के बाद रामपायली में उनके भाषण पर प्रतिबंध लगा दिया गया था. बीसवीं शताब्दी का पहला दशक बीतते-बीतते हेडगेवार को अंग्रेजी हुकूमत वाली सरकार अपने लिए खतरा मानने लगी थी. इसका प्रमाण 1914 में तत्कालीन अंग्रेज हुकूमत वाली भारत सरकार के क्रिमिनल इंटेलिजेंस द्वारा भारत के राजनीतिक अपराधियों की एक पुस्तिका से मिलता है. इस सूचि में उन लोगों को शामिल किया गया था जो क्रांतिकारी संगठनों से जुड़े थे और अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ गर्म विद्रोह को हवा दे रहे थे. इस ‘बुक 1914’ में हेडगेवार का नाम भी शामिल था.
कांग्रेस से जुड़ाव और अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन
यह बात लगभग सभी को पता है कि हेडगेवार कांग्रेस से जुड़े रहे. कांग्रेस के नेताओं के साथ उन्होंने शुरुआत से काम किया था. उनकी क्षमता को देखते हुए मध्यप्रांत में प्रांतीय कांग्रेस ने ‘संकल्प’ पत्रिका के प्रकाशन का निर्णय लिया. इस पत्रिका के प्रसार आदि के लिए हेडगेवार ने व्यापक भ्रमण किया.
इस संबंध में व्यापक जानकारी नेहरू मेमोरियल एवं लाइब्रेरी में संग्रहित मुंजे पेपर्स में मिलती है. हेडगेवार के लिए बड़ा अवसर यह आया कि वर्ष 1920 में कांग्रेस का अधिवेशन नागपुर में होना तय हुआ था. कांग्रेस का नया अध्यक्ष चुना जाना था. नागपुर कांग्रेस समिति के संयुक्त सचिव होने की हैसियत से डॉ. हेडगेवार ने डॉ. अरविंद घोष का नाम प्रस्तावित करने का विचार रखा, लेकिन अरविंद तबतक पॉन्डिचेरी में सन्यासी का जीवन अपना चुके थे. उन्होंने इस प्रस्ताव को नकार दिया.
नागपुर के इस कांग्रेस अधिवेशन के लिए बनाई गई स्वागत समिति में भी डॉ. हेडगेवार की महत्वपूर्ण भूमिका तय थी. इस अधिवेशन के समय हेडगेवार ने अध्यक्ष पद के लिए विजयराघवाचार्य के नाम का विरोध किया था, क्योंकि विजयराघवाचार्य असहयोग आंदोलन से पूर्ण सहमत नहीं थे और जलियावाला बाग हत्याकांड के समय वे मद्रास प्रांत के राज्यपाल के निमंत्रण पर चाय पार्टी में चले गए थे.
देश में अंग्रेजों के खिलाफ असहयोग आंदोलन के दौरान भी डॉ. हेडगेवार ने अहम भूमिका निभाई थी. उस दौरान मराठी मध्य प्रांत की तरफ से डॉ. हेडगेवार की अगुवाई में बनाई गई असहयोग आंदोलन समिति ने कार्यकर्ताओं को आंदोलन के प्रति जागृत करने का काम किया. मराठी मध्यप्रांत में यह आंदोलन काफी सफल भी रहा था. वर्ष 1921 में आंदोलन को कुचलने के लिए अंग्रेज हुकूमत ने दमन की नीति अपनाते हुए राजद्रोह का मुकदमा दर्ज करना शुरू किया. डॉ. हेडगेवार को भी अनेक मुकदमों में गिरफ्तार कर लिया गया. हालांकि जब वे जेल से बाहर निकले तबतक महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन वापस ले लिया था.
स्वातंत्र्य का संपादन
जेल से बाहर आने के बाद राष्ट्र की आवाज को बुलंद करने के लिए नारायण राव वैद्य एवं एबी कोल्हटकर के साथ मिलकर डॉ हेडगेवार ने मराठी दैनिक ‘स्वातंत्र्य’ का प्रकाशन शुरू किया. इसके माध्यम से वे क्रांतिकारियों के विचार व आंदोलनों को मुखरता देने जैसी सामग्री प्रकाशित करते थे. इसी वजह से पत्रकारीय सरोकार भी उनके जीवन का अहम हिस्सा है.
डॉ. हेडगेवार ने अंग्रेज हुकूमत के खिलाफ स्वतंत्रता आंदोलन में अपना लंबा समय दिया था. लेकिन एक सवाल उनके मानस पटल से नहीं जा रहा था कि आखिर हम गुलाम क्यों बने? राकेश सिन्हा ने अपनी पुस्तक आधुनिक भारत के निर्माता में इसका जिक्र किया है. इसी के समाधान के विचार मंथन में उन्होंने वर्ष 1925 के विजयदशमी के दिन 25 लोगों के साथ विचार मंथन करके एक संगठन की बुनियाद रखी. इस संगठन को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का नाम 17 अप्रैल 1926 को मिला. संघ के उद्देश्य को स्पष्ट करते हुए उन्होंने कहा था, ‘स्व-प्रेरणा एवं स्वयंस्फूर्ति से राष्ट्रसेवा का बीड़ा उठाने वाले व्यक्तियों का केवल राष्ट्रकार्यार्थ संघ ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ है.’
1928 में संघ कार्य के लिए धन जुटाने के लिए ध्वज को समर्पित गुरु दक्षिणा कार्यक्रम की शुरुआत उन्होंने की थी, जो आज भी अनवरत जारी है. इस दौरान कुछ लोगों ने डॉ. हेडगेवार की जीवनी लिखने की इच्छा जताई, लेकिन उन्होंने यह कहते हुए मना कर दिया कि संघ कार्य में व्यक्ति महत्वहीन है और कार्य महत्वपूर्ण. संघ ने अपने स्तर पर स्वतंत्रता की लड़ाई में पूर्ण स्वराज्य की अवधारणा को बल दिया. दिनांक 27-28 अप्रैल 1929 को 100 स्वयंसेवकों के प्रशिक्षण शिविर में सार्वजनिक तौर पर घोषणा की गई कि संघ का उद्देश्य स्वतंत्रता को प्राप्त करना है.
राष्ट्र को सुदृढ़ बनाने के साथ-साथ हिन्दू समाज को संगठित, अनुशासित एवं शक्तिशाली बनाकर खड़े करना अत्यन्त आवश्यक है । हिन्दू समाज के स्वार्थी जीवन, छुआछूत, ऊंच-नीच की भावना, परस्पर सहयोग की भावना की कमी, स्थानीय नेताओं के संकुचित दृष्टिकोण को वे एक भयंकर बीमारी मानते थे ।
इन सब बुराइयों से दूर होकर देश के प्रत्येक व्यक्ति को चरित्र निर्माण और देश सेवा के लिए संगठित करना ही संघ-शाखा का उद्देश्य है । हिन्दुत्व के साथ-साथ देशाभिमान का स्वप्न लेकर आज देश-भर में इसकी शाखाएं लगती हैं, जिसमें सेवाव्रती लाखों स्वयंसेवक संगठन के कार्य में जुटे हैं ।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ विश्व में सबसे बड़ी सर्वाधिक सदस्यों वाली संस्कृत्तिक गैर राजनितिक संस्था है।