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कानपुर का अनोखा जगन्‍नाथ मंदिर, जहां चमत्‍कारी पत्‍थर से टपकती पानी की बूंदें देती हैं मॉनसून का संकेत

कानपुर में भगवान जगन्नाथ का एक ऐसा मंदिर है जिसके गर्भगृह में लगा चमत्कारी पत्थर मॉनसून आने की भविष्यवाणी करता हैभगवान जगन्नाथ की मूर्ति के ठीक ऊपर छत पर लगे इस पत्थर से मॉनसून के ठीक पहले पानी की बूंदे छलकने लगती हैंये टपकती हुई बूंदे इस बात का संकेत देती है कि 15 दिनों बाद मॉनसून दस्तक देने वाला हैसुमित शर्मा, कानपुरकानपुर में भगवान जगन्नाथ का एक ऐसा मंदिर है जिसके गर्भगृह में लगा चमत्कारी पत्थर मॉनसून आने की भविष्यवाणी करता है। भगवान जगन्नाथ की मूर्ति के ठीक ऊपर छत पर लगे इस पत्थर से मॉनसून के ठीक पहले पानी की बूंदे छलकने लगती हैं। ये टपकती हुई बूंदे इस बात का संकेत देती है कि 15 दिनों बाद मॉनसून दस्तक देने वाला है। ग्रामीण इसे भगवान का चमत्कार मानते हैं। ग्रामीण मंदिर से टपकती हुई इन बूंदों को देखकर अपनी फसल की बुआई और कटाई करते हैं। यह परंपरा यहां पर सदियों से चली आ रही है। यह मंदिर कानपुर शहर से 57 किलोमीटर दूर घाटमपुर तहसील के भीतरगांव ब्लॉक के बेहटा बुजुर्ग गांव में मौजूद है। मंदिर का निर्माण सांची के स्तूप के आकार में हुआ है, जिसका गुंबद गोल है। इस प्राचीन मंदिर के इतिहास की सटीक जानकारी किसी के पास नहीं है। इसकी खास बात यह है कि इसे किसी भी दिशा से देखा जाए तो गुंबद गोल ही नजर आता है। बल्कि यह भी कहा जा सकता है कि पूरा मंदिर एक गुंबद की भांति नजर आता है। मंदिर पर लगा अलौकिक पत्थर प्रदेश में मॉनसून आने का संकेत देता है।अतिप्राचीन मंदिर में भगवान जगन्नाथ, सुभद्रा और बलभद्र की प्राचीन प्रमिमाएं स्थापित हैं। भगवान जगन्नाथ की ऐसी प्रतिमाएं उत्तर भारत में कहीं मौजूद नहीं हैं। भगवान जगन्नाथ की प्रतिमा के ठीक ऊपर एक ऐसा चमत्कारी पत्थर लगा है जो साल के 11 महीने और 15 दिन सूखा रहता है। इस चमत्कारी पत्थर पर पानी की बूंदे हीरे-मोतियों की तरह उस वक्त छलकती हैं जब भीषण गर्मी से पशु , पक्षी और इंसान बेहाल होते हैं। ग्रामीणों का कहना है कि इस पत्थर से पानी की बूंदे उस वक्त टपकती है जब मॉनसून आने वाला होता है। चमत्कारी पत्थर से पानी की बूंदे तब तक टपकती हैं, जबतक मॉनसून नहीं आ जाता है ।मॉनसून मंदिर के निर्माण में ग्रामीणों की धारणाएंभगवान जगन्नाथ के इस मंदिर का निर्माण किसने कराया और यह मंदिर कैसे बनकर तैयार हुआ इसकी सटीक जानकारी किसी के पास नहीं है। लेकिन ग्रामीणों का मानना है कि इस मंदिर का निर्माण राजा दधीची ने कराया था। भगवान राम जब लंका से लौटे थे तो मंदिर परिसर में बने सरोवर में राजा दशरथ का पिंडदान किया था। इसके बाद से यह सरोवर रामकुंड कहलाने लगा। वहीं कुछ लोगों का कहना है कि इस मंदिर का निर्माण देवी-देवताओं ने किया था। देवों पर संकट के वक्त इस मंदिर को बनवाया गया था, जब 6 माह की रात हुई थी।जब पानी की बूंदे नहीं टपकी हैं तो प्रदेश में सूखे खतरा मंडराता हैग्रामीणों का मानना है कि यदि इस चमत्कारी पत्थर से पानी की बूंदे नहीं टपकती हैं तो इसे अशुभ माना जाता है। यह इस बात का संकेत है कि प्रदेश में सूखा पड़ने वाला है। साथ ही लोगों का यह भी कहना है कि भगवान जगन्नाथ के आदेश से ही पत्थर से पानी की बूंदे छलकती हैं। मंदिर के आसपास के सैकड़ों गांव के ग्रामीण अपनी फसलों की बुआई की तैयारी मंदिर के चमत्कारी पत्थर पर पानी की बूंदो को देखकर करते हैं। आसपास के गावों के किसान आज भी मौसम वैज्ञानिकों से ज्यादा मॉनसून मंदिर की भविष्यवाणी पर भरोसा करते हैं।