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प्रयागराज में गंगा की रेत से फिर निकले 23 शव, दिन भर जलती रहीं चिताएं

फाफामऊ घाट पर गंगा की कटान नगर निगम के लिए आफत बनकर बढ़ रही है। बुधवार को कटान की जद में आई रेती से 23 शव बाहर निकले। किनारा धंसने से गंगा में बह रहे कुछ शवों को छानकर बाहर निकाला गया। करीब दो सौ मीटर केदायरे में चिताएं लगाकर इन लावारिस शवों का अंतिम संस्कार किया गया। इसी के साथ फाफामऊ घाट पर अब तर रेती से निकलने वाले शवों की संख्या बढक़र 70 हो गई है। महीने भर से रेत से लगातार शवों के निकलने से कोरोना काल में हुई मौतों और उस दौरान शवों के अंतिम संस्कार को लेकर जूझने वाले लोगों की मुसीबतों का अंदाजा लगाया जा सकता है।
मंगलवार की रात जलस्तर बढ़ने से धारा तेज हुई तो कटान का क्षेत्रफल भी बढ़ने लगा है। ऐसे में रेती में हर कदम पर दफन शव एक-एक कर निकल रहे हैं। बुधवार की सुबह छह बजे से ही रेत से शवों के दिखने का सिलसिला आरंभ हो गया। दोपहर बाद तक इस घाट पर रेत कटती गई और उसमें से शव बाहर आते गए। एक महिला का शव कटान केसाथ ही गंगा में गिरकर बहने लगा। प्रवाह तेज होने के बावजूद निगम कर्मियों और मजदूरों की तत्परता से शव गंगा मं बहने से रोक लिया गया और उसे छानकर बाहर निकाल लिया गया।
शाम तक मजदूरों की मदद से रेती से कुल 23 शव निकाले गए। रेत से निकलने वाले शवों की यह अब तक की सबसे बड़ी संख्या है। नगर निगम के जोनल अधिकारी नीरज कुमार सिंह खुद सुबह से ही घाट पर डटे रहे। उन्होंने शवों को निकलवाया भी और फिर लकड़ी, रामनामी और अन्य सामान मंगाकर चिताएं सजाई गईं। फिर इन शवों का अंतिम संस्कार किया गया। इस दिन फिर कर्मकांड, श्राद्ध के साथ शवों का अंतिम संस्कार कराया गया, ताकि उन भटकती आत्माओं को शांति मिल सके। हालांकि इन शवों में कई ऐसे थे, जिनके शरीर का काफी हिस्सा गल चुका था। इन शवों से दुर्गंध उठ रही थी। ऐसे शवों से संक्रमण फैलने का भी खतरा बना हुआ है।
जोनल अधिकारी ने अब तक दी 82 शवों को मुखाग्नि
फाफामऊ घाट पर मिल रहे लावारिस शवों का अंतिम संस्कार नगर निगम के जोनल अधिकारी नीरज कुमार सिंह करा रहे हैं। बुधवार को भी उन्होंने ही सभी शवों को मुखाग्नि दी। एक दिन में 23 शवों को जलाने की पीड़ा बयां कर बुधवार को उनकी आंखें भर आईं। वह इस घाट पर अब तक 82 शवों को मुखाग्नि दे चुके हैं। इससे पहले कोरोना संक्रमण के दौरान 12 ऐसे शवों को उन्होंने जलाया था, जिनके वारिस नहीं थे। अब वह रेत से निकलने वाले शवों का हर रोज अंतिम संस्कार करा रहे हैं।

फाफामऊ घाट पर गंगा की कटान नगर निगम के लिए आफत बनकर बढ़ रही है। बुधवार को कटान की जद में आई रेती से 23 शव बाहर निकले। किनारा धंसने से गंगा में बह रहे कुछ शवों को छानकर बाहर निकाला गया। करीब दो सौ मीटर केदायरे में चिताएं लगाकर इन लावारिस शवों का अंतिम संस्कार किया गया। इसी के साथ फाफामऊ घाट पर अब तर रेती से निकलने वाले शवों की संख्या बढक़र 70 हो गई है। महीने भर से रेत से लगातार शवों के निकलने से कोरोना काल में हुई मौतों और उस दौरान शवों के अंतिम संस्कार को लेकर जूझने वाले लोगों की मुसीबतों का अंदाजा लगाया जा सकता है।

गलवार की रात जलस्तर बढ़ने से धारा तेज हुई तो कटान का क्षेत्रफल भी बढ़ने लगा है। ऐसे में रेती में हर कदम पर दफन शव एक-एक कर निकल रहे हैं। बुधवार की सुबह छह बजे से ही रेत से शवों के दिखने का सिलसिला आरंभ हो गया। दोपहर बाद तक इस घाट पर रेत कटती गई और उसमें से शव बाहर आते गए। एक महिला का शव कटान केसाथ ही गंगा में गिरकर बहने लगा। प्रवाह तेज होने के बावजूद निगम कर्मियों और मजदूरों की तत्परता से शव गंगा मं बहने से रोक लिया गया और उसे छानकर बाहर निकाल लिया गया।

शाम तक मजदूरों की मदद से रेती से कुल 23 शव निकाले गए। रेत से निकलने वाले शवों की यह अब तक की सबसे बड़ी संख्या है। नगर निगम के जोनल अधिकारी नीरज कुमार सिंह खुद सुबह से ही घाट पर डटे रहे। उन्होंने शवों को निकलवाया भी और फिर लकड़ी, रामनामी और अन्य सामान मंगाकर चिताएं सजाई गईं। फिर इन शवों का अंतिम संस्कार किया गया। इस दिन फिर कर्मकांड, श्राद्ध के साथ शवों का अंतिम संस्कार कराया गया, ताकि उन भटकती आत्माओं को शांति मिल सके। हालांकि इन शवों में कई ऐसे थे, जिनके शरीर का काफी हिस्सा गल चुका था। इन शवों से दुर्गंध उठ रही थी। ऐसे शवों से संक्रमण फैलने का भी खतरा बना हुआ है।

फाफामऊ घाट पर मिल रहे लावारिस शवों का अंतिम संस्कार नगर निगम के जोनल अधिकारी नीरज कुमार सिंह करा रहे हैं। बुधवार को भी उन्होंने ही सभी शवों को मुखाग्नि दी। एक दिन में 23 शवों को जलाने की पीड़ा बयां कर बुधवार को उनकी आंखें भर आईं। वह इस घाट पर अब तक 82 शवों को मुखाग्नि दे चुके हैं। इससे पहले कोरोना संक्रमण के दौरान 12 ऐसे शवों को उन्होंने जलाया था, जिनके वारिस नहीं थे। अब वह रेत से निकलने वाले शवों का हर रोज अंतिम संस्कार करा रहे हैं।