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UNSC में भारत की अध्यक्षता से चीन पर बना दबाव, समुद्री सीमा पर दादागिरी होगी खत्म

11 AUG 2021

यूएनएससी में भारत की अध्यक्षता से चीन पर बना दबाव बना है वह पूरी तरह से अंतराष्ट्रीय देशों के सामने खुलकर एक्सपोज होने वाला है। इसका उदाहरण है कि वर्तमान में भारत का पुराना साथी रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने समुद्री सुरक्षा पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की उच्च स्तरीय बहस में हिस्सा लिया और उसके बाद बैठक बुलाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को धन्यवाद दिया। वीडियो कॉन्फ्रेंस इवेंट के दौरान, पुतिन ने पीएम मोदी से कहा कि उनकी पहल उस रचनात्मक भूमिका के अनुरूप है जो भारत ने पारंपरिक रूप से अंतरराष्ट्रीय क्षेत्र में निभाई है।
सोमवार को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने “समुद्री सुरक्षा” पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की बैठक की अध्यक्षता की, जिसका उद्देश्य समुद्री इलाके में शांति स्थापित करना था। इस बैठक में उन सारी गतिविधियों पर चर्चा की गई जिससे समुद्री सीमाओं पर शांति बहल हो सके। चीन उन देशो में से है जो समुद्री क्षेत्र में अपना दबदबा बनाने के लिए बदनाम है। वह अंतर्राष्ट्रीय संधियों के बावजूद दक्षिणी चीन सागर को अपनी जागीर मानता रहा है। भारत की अध्यक्षता में ऐसी बैठक होना उसके लिए एक कड़ा सन्देश है। बैठक में रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन 16 साल बाद पहली बार आए, उन्होंने समुद्री सुरक्षा के लिए पहल करने पर पीएम मोदी की भी सराहना की।
रूस एक लम्बे वक़्त से एक शांतिप्रिय राष्ट्र को अपने समर्थक के रूप में देखना चाहता है। भारत वह राष्ट्र हमेशा से रहा है। हालाँकि, सोवियत संघ के वक्त से वैचारिक समानताओ के कारण रूस चीन के भी साथ खड़ा रह चुका है। जब अमेरिकी फ़ ौज शीत युद्ध के समय कोरिया में जंग लड़ रही थी तब चीन और रूस एक साथ मिलकर साम्यवादी उत्तरी कोरिया की मदद कर रहे थे। बदलते समय के साथ जब चीन आर्थिक रूप से मजबूत हुआ तो उसकी समज्र्यवादी आकांक्षाये बढऩे लगी। ऐसे भी मामले आये जब रूस की सीमा के भीतर बसे शहर को चीन ने अपना क्षेत्र बता दिया।
रूस चीन के साम्राज्यवादी आकांक्षाओं से भलीं-भांति परिचित है। वह जानता है की भविष्य में व्लादिवोस्टोक के साथ कई अन्य शहरों को चीन अपना शहर बता सकता है। चीन की आदत यह भी रही है की वह दुसरे राष्ट्रों के सुरक्षा को नजरंदाज करके ख़ुफिय़ा जानकारी जुटाता रहा है। एक रिपोर्ट के अनुसार, हाल ही में चीन के हैकर्स ने गोपनीय सरकारी डेटा चुराने के उद्देश्य से रूसी सरकारी एजेंसियों की वेबसाइटों को हैक करने के लिए अद्वितीय दुर्भावनापूर्ण सॉफ़्टवेयर का उपयोग किया था। रिपोर्ट अमेरिकी कंपनी सेंटिनलऑन द्वारा जारी की गई थी। यह पिछले महीने रूस की प्रमुख जासूसी एजेंसियों में से एक फेडरल सिक्योरिटी सर्विस (स्नस्क्च) और टेलीकॉम फर्म रोस्टेलकॉम की साइबर यूनिट द्वारा जारी एक रिपोर्ट पर आधारित है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि कैसे थंडरकैट्स (चीन से जुड़े) नामक एक हैकर समूह ने रूसी सरकारी एजेंसियों की वेबसाइटों को हैक कर लिया। विशेषज्ञ इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि चीन के हैकर्स ने मेल-ओ नामक एक अद्वितीय दुर्भावनापूर्ण सॉफ़्टवेयर (मैलवेयर) विकसित किया है – वास्तव में, एक डाउनलोडर प्रोग्राम जो बाहरी रूप से रूड्डद्बद्य.ह्म्ह्व त्रह्म्शह्वश्च ष्ठद्बह्यद्म-ह्र से एक वैध उपयोगिता जैसा दिखता है। विशेषज्ञों के अनुसार, साइबर अपराधियों ने एक विदेशी राज्य के हितों में काम किया, जो की सम्भवत: चीन है।
एक और रिपोर्ट के अनुसार, रूस आने वाले वर्षों में अपने उत्तरी समुद्री मार्ग को खोलने पर विचार कर रहा है, और वह नहीं चाहता कि चीन आर्कटिक को दुनिया के अगले युद्धक्षेत्र में बदल दे। रिपोर्ट के अनुसार, चीन के साथ रूस के लगातार घनिष्ठ आर्थिक सहयोग से मॉस्को की उम्मीदों पर पानी फिर सकता है। मॉस्को की अपेक्षा के अनुरूप रूस को मजबूत करने के बजाय, बीजिंग अपने आप को साझेदार पर हावी होने की स्थिति में ला सकता है। दरअसल, उत्तरी समुद्री मार्ग (एनएसआर) के साथ चीन की भागीदारी, रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की एक प्रमुख चिंता है। रूस को डर है कि रूस के लक्ष्यों में बीजिंग जो कुछ भी योगदान दे रहा है, वह एक साथ चीन के लिए भी मंच तैयार कर सकता है, यहां तक ??कि रूस को एक तरफ भी किया जा सकता है।
इस पुरे घटनाक्रम में,बीजिंग “एक ध्रुवीय रेशम मार्ग” स्थापित कर सकता है, जिसमें रूस एक सहायक भूमिका में सीमित हो जाएगा। यह संभावना अब इतनी वास्तविक हो गई है कि यह न केवल रूस में बल्कि पश्चिम में भी चिंता पैदा कर रही है, जिसे डर है कि चीन के प्रभुत्व वाला हृस्क्र बीजिंग को आर्कटिक में शक्ति प्रोजेक्ट करने की स्थिति में ला सकता है और न केवल रूसी हितों को चुनौती दे सकता है बल्कि पश्चिमी देशों को भी चुनौती दे सकता है।
चीन के साथ ऐसे हताशा पूर्ण सम्बन्ध के चलते रूस एक नई संभावना की तलाश में है और भारत में उसे एक अच्छी सम्भावना दिखती है। पुतिन की मोदी के साथ दोस्ती चीन के लिए एक बड़े चिंता से कम नहीं है।